गढ़वाली साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गजल- घोऽर कऴजुग

घोऽर कऴजुग
काम- काज करि, थकदि छै- देऽ- कै बगत.
वर्डसप चलै-चलै, थकि जांणू गात-ये बगत..
सवेरा दिन- दिना ब्यखुन्या, राती- अधाराती,
पेट भ्वना खांणा छीं, जैकु लगा लग-जै बगत..
छ्वीं-बात लगांण तका, बग्त नीच-कैम इबरी,
फेसबुक-वर्डसप छोड़ी, कुछ कना नि-रै बगत..
फोन-हेड फोन,क्य-क्य कोच्यां-कंदुणु भितर,
क्वी बात सुड़ांणकु कु, बौन पोड़द छै-छै बगत..
फोन चल़ाणा बग्त च, पर नांण-खांण बक्त नि,
हे प्रभू बोल कख हरच, आजा लोगौ-सै बगत..
कनु रैंदु छौ- पैलि, काम- काजा नीम- धरम
काम कैरी-कनि भलि, निंदआंदि छै वे बगत..
‘दीन’ आजा बग्त कनु, अणमेलु-अणकसि ऐ,
यो-च-घोऽर कऴजुग, न ब्वाला येकु-नै बगत..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।