अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की गजल
अपनी हिन्दी का सदा सम्मान होना चाहिए।
देश की ये अस्मिता है, ध्यान होना चाहिए।।
भूल निज भाषा जहाँ में देश ज़िंदा कब बचा है?
जान इसको जान अब उत्थान होना चाहिए।।
हिंद तब तक है सलामत, शान हिंदी जब रहे।
फूल की ख़ुशबू समझ अभिमान होना चाहिए।।
राजभाषा अब तलक हिंदी अधूरी है बनी।
पूर्ण दर्जे के लिए अभियान होना चाहिए।।
हिंद की बिंदी है हिंदी, ये हिमालय-सा मुकुट।
अब हमें इसके लिए क़ुर्बान होना चाहिए।।
जर्मनी जर्मन से है, जापान जापानी से है।
हिंद हिंदी से सजे, अरमान होना चाहिए।।
ये रुपेला चाहता है गर्व हिंदी पर करें।
शर्म तजकर हिंदी का गुण गान होना चाहिए।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
डा. रूपेण जी को सुंदर रचना के लिए बधाई??