दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की गजल- कुछ सोच ज़रा देखो, लालच तो बुराई है
कुछ सोच ज़रा देखो, लालच तो बुराई है।
लालच ने हँसी जग की, दिन रात चुराई है।।
की तुमने जमाखोरी, सामान हुआ महंगा।
कंगाल मरे भूखे, ये कैसी कमाई है।।
आई महामारी है, कोई न सहायक है।
हैं लोग तड़प मरते, मिलती न दवाई है।।
गोदाम भरे तुमने, कुछ काम कहाँ आए।
पत्नी ने बीमारी में, कल जान गँवाई है।।
दौलत ये महल सारे, हैं साथ नहीं जाते।
ये देह सोने-जैसी, मिट्टी में समाई है।।
परिवार चले जिससे, धन उतना ही काफी है।
सीमा से अधिक माया, करवाती लड़ाई है।।
सुख छिनता है लालच से, सुख दान से है मिलता।
है शांति मिली उसको, जिसने की भलाई है।।
सेवा से बड़ी दौलत, है जग में नहीं कोई।
राहत है ये आफ़त में, सच्ची ये कमाई है.।।
संतोष रुपेला कर, सुख चैन से जीना तुम।
लालच ने ज़माने की, हर नींद उड़ाई है।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर लालच ने नींद उड़ाई है