Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

September 20, 2024

1700 साल पहले देहरादून के इस स्थान पर किया गया था गरूड़ अश्वमेध यज्ञ, अब फिर जुटेंगे ग्रामीण

1 min read
यहां तीसरी शती (आज से 1700 वर्ष पूर्व) शीलवर्मन ने इस क्षेत्र गरूड़ के आकार की यज्ञ वेदिका (श्येन चिति) बनाकर अश्वमेध किया। अब यहां ग्रामीण जुटने जा रहे हैं।


देहरादून के विकासनगर विकासखंड के अंतर्गत बाड़वाला ग्रामसभा में एक ऐसा स्थान है, जो दुनिया की नजर से अभी लगभग ओझल है। इस स्थान की ऐतिहासिकता व महत्ता का पता वर्ष 1952 से 54 के बीच की गई खुदाई में पता चल गया, लेकिन सरकारों की उदासीनता के चलते यह स्थल अभी भी उपेक्षित है। संरक्षण के नाम पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस स्थल पर चाहरदीवारी को बनाई है, लेकिन यहां तक कैसे पहुंचे ये भी सरकारों ने अभी तक तय नहीं किया है। इस स्थान के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। निजी व्यक्ति के बगीचे से होकर इस स्थल तक पहुंचा जाता है। हम बात कर रहे हैं जगतग्राम स्थित ऐतिहासिक विरासत गरूड़ हिन्दू विश्व सम्पदा अश्वमेध यज्ञ स्थली है। यहां तीसरी शती (आज से 1700 वर्ष पूर्व) शीलवर्मन ने इस क्षेत्र गरूड़ के आकार की यज्ञ वेदिका (श्येन चिति) बनाकर अश्वमेध किया। जो सम्पूर्ण भारत में दुर्लभ है। यह स्थान निर्जन बिना पहुँच मार्ग तथा उपेक्षा का शिकार था।


इस स्थान के पुनरूद्धार के लिए पूर्व सांसद तरूण विजय ने भारतीय पुरातत्तव सर्वेक्षण से अनुरोध कर किया। तब यहां कुछ काम किया गया। वहीं, उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से अनुरोध किया। इसे उन्होंने स्वीकृति दे दी है।
यहां हैं प्राचीन अवशेष
यह प्राचीन साइट थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने यहां वर्ष 1952 से 54 के बीच खुदाई की थी। तब यहां चार यज्ञ के अवशेष मिले थे। यहां मिली उत्कीर्ण ईंटे यहां यज्ञ की अग्नि को प्रमाणित करती है। साथ यज्ञ स्थली के अवशेष प्रमाणित करते हैं कि यहां गरूड़ अश्वमेध यज्ञ किए गए थे। जो तीसरी शताब्दी के हैं। राजा शील वर्मन युगशैल पौन जो वृषगण गोत्र के थे, उन्होंने यहां चार अश्वमेध यज्ञ किए।


यह क्षेत्र स्पष्ट रूप से तीसरी शताब्दी ईस्वी के दौरान मध्य हिमालय का कम से कम पश्चिमी भाग था, जिसे यूगसियाला के नाम से जाना जाता है। भारतीय संदर्भ में ऐसी वेदी अत्यंत दुर्लभ हैं। यह विश्व सम्पदा अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पर्यटकों को आकृषित करने के साथ ही स्थानीय निवासियों के लिए गौरव का विषय है।


कल जुटेंगे ग्रामीण
पूर्व सांसद तरूण विजय ने बताया कि इस स्थल को दुनिया की नजरों में लाने के लिए अब ग्रामीण भी आगे आ रहे हैं। कल 14 फरवरी की सुबह साढ़े दस बजे इस स्थान पर हेरिटेज वॉक (Heritage WalK) का आयोजन किया जा रहा है। इसमें आसपास के क्षेत्र के ग्रामीणों को आमंत्रित किया गया है। उन्हें इस हिन्दू प्राचीन धरोहर से परिचय कराया जाएगा। यहां भारतीय पुरातत्वत सर्वेक्षण के अधिकारी ग्रामीणों को इस स्थान की महत्ता से अवगत कराएंगे।


जगतग्राम के प्रधान अरूण खत्री के मुताबिक गरूड़ अश्वमेध यज्ञ (श्येन चिति) बहुत ही दुर्लभ यज्ञ माना गया है। अभी ये स्थान काफी वीरान है। लोगों को यहां तक पहुंचने का रास्ता तक नहीं मालूम। न ही यहां के लिए कोई सड़क है। उन्होंने कहा कि यदि यहां का प्रचार प्रसार किया जाए तो इस स्थान को टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा सकता है। पूर्व सांसद की पहल पर ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए हेरिटेज वॉक का आयोजन किया जा रहा है।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “1700 साल पहले देहरादून के इस स्थान पर किया गया था गरूड़ अश्वमेध यज्ञ, अब फिर जुटेंगे ग्रामीण

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *