गढ़वाली लघु कथाः हुणत्यळि मवसि-लेखिका सरिता मैन्दोला

हुणत्यळि मवसि
हे शिब्बू की ब्वै ! हे वीं बुढड़ी……. पर कख? क्वी जवाब ना, तब सुबदार साब। जगतराम जी नौ छौ तौंकु, पर सब्या जगती सुबदार बुल्दा छा। तब ऊन खट्वला मां देखि त बुढड़िकि खटुलि खाली! तब ऊ बड़ बड़ करदा भैर जंगल्या मां ऐनि त द्याखि कि बुढड़ी चौकमा,घुस,घुस दाथि छै पळ्योणि। ऊन बोलि कि आज इतगा फजल लेकि किलै उठि तू ? बुढडि़न ब्वाल कि रगड़क सारी ग्यूं पक गेनि, सुगरुन सैरि पुंगडि रंदै यालि ह्वैली। बगतल जांदू अर सुंगरौंक लंदण्यां बलड़ा टीपिकी ल्हैयांदु। बुढ्याजिन बोलि कि सदनि त ब्वारी जांदी त तु क्यांकु रपर्याणि छे।
बुढड़ी-स्या सौणुकि ब्वै बिच जाणि त दगडुं बि छैंच। अर यीं ब्वारिन जाण बि कनकै लग्या वुथका दूर। पैलि घार फुण्ड सैंटु समाळ कारलि, दुफरा ह्वै जालि घारीमा। अर रस्वै बणाण त म्यार बसत निच तैचिले इकछुणा ई रौलू, रस्वै खाण तक त मि ऐ बि जौलु। यीं रूड़ि भूडी़म स्या ब्वारी ई दुख्यरि ह्वै। जालि त धवासन कैरिकत स्यू शिब्बू मादेब मा घैड़ि चढै तब ह्वै। तब जरा अब अयां छा मानै मा तब्बी यीं ब्वारि अर नाति नतणौ वळा हुयां छां, यीं ब्वारिकु ख्याल त रखणीच हमन स्याच कुरबरिम उठिकी हमथैं खवांणि पिवाणि, जरा मीबि हत्त सरै द्यूलु त वींथैबि अराम मिल जालु।
तब्बी सौणूकि ब्वैकु धवड़ि लगण बैजंदिन-हे! दिदि शिब्बूकि ब्वै चल औ अबेर हूणी चा, दुफरामात मि बि नि कै सकुद काम। द्विया लग जंदिन बाटु ग्यूं लैणा कुणी। इने शिब्बु की ब्वारी अपणी द्विइ बेट्यूं तैं ददि क कट्यां ग्यूं ल्हाणाकुणि पठै दींद। द्वि बैणि ददि कुण बल्दिन कि चल ददि लगौ बिठकि हम अयां छां ग्यूंकि बिठगि लिजाणा कुणि त जनि ददि वूं कु बुल्यूं यनु सुणदि त चट वूं कि भुक्की पेंदी अर बुल्दी कि बबा यूंयी दिनुक बाना त हम बुढ्या गांठा गंठ्याणा रंदा कि हमरा खूब ह्वाला,अर हमथैं सारु। द्याला, हमरि अदरि आला।
लेखिका का परिचय
नाम- सरिता मैन्दोला
सहायक अध्यापक, राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय, गूमखाल, ब्लॉक द्वारीखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
वाह बहुत सुन्दर कहानी