शिक्षक विजय प्रकाश रतूड़ी की गढ़वाली कविता-आश को उमाळ छ

आश को उमाळ छ।
फिर ऐगी सू कोरोना, तेज तैकी चाल छ।
फिर घरों म कैद दुनिया,दुखी छ बेहाल छ।
ना त देखी ना सुणी थै, खतरनाक रोग यो ।
भैर जाला घर छोड़ी तैं, मौत को फिर जाळ छ।
हाथ धोवा, मास्क पैरा, सेनेटाइजर हाथ म।
आ मिली तैं ठेप ल्योला, भगौंण यो काल छ।
छोड़ा कुछ दिन ब्यो बराती, पौंणखी को भात भी।
अजकलो को यो मंडाण मौत की अंगवाळ छ।
एक धक्का हम मिली तै अब हम लगौला साथ म।
अफरी अफरी रक्षा कौला यनि मिलौण ताल छ।
पौर तक त थै अंधायारू, ऐंसु जगणूं दीप जी।
टीका ऐगी कोरोना कू, आश कू उमाळ छ।
डन नीन पर सुरक्षा नेम हम सब माणला।
बीति जाला औखा दिन यी, नजीकू बग्वाळ छ।
‘विजय’ निश्चित छ हमारी, कुछ दिनों की बात बस।
यो कोरोना शान्त होलू,आज जो विकराळ छ।
कवि का परिचय
नाम-विजय प्रकाश रतूड़ी
प्रधानाध्यापक राजकीय प्राथमिक विद्यालय ओडाधार, विकासखंड भिलंगना, जनपद टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
अच्छी रचना