शिक्षिका सरिता मैन्दोला की गढ़वाली कविता-मेरी मातृभाषा मेरी पछ्याण

मेरी मातृभाषा मेरी पछ्याण
म्यारा गढ़देशी भै बैण्यों,
टक लगैकी सूण ल्यावा।
हर्चणि च दूधबोली हमरी,
अपणी बोलि, भाषा बचावा।।
कनी मयळ्दी, भली रस्याण च,
गढ़-कुमौं बोली हमरी पछ्याण च।
आठ्वीं अनुसूची मा दूधबोली तैं ,
जरूर हमन पौंछाण च।।
हूंदी नीच क्वी बि शरम,
हमनी बचाण दूधै लाज।
अपणी बोली भाषा मा बच्याओ,
विनती करणूं छौं मी आज।।
हौरी भाषा बि बोली-चालि ल्या,
नीच यामां क्वी बि हर्ज।
उत्तराखंड की भाषा बचौण ,
हम सब्यूंक च यो फर्ज।।
हम छौं कुमौनी, जौनसारि, गढवळी,
या ही हमरी पछ्याण चा।
मातृभूमि बि आशीष द्याली,
मातृभाषा बचाण चा।।
कवयित्री का परिचय
नाम- सरिता मैन्दोला
सहायक अध्यापक, राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय, गूमखाल, ब्लॉक द्वारीखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।
भौत भलि रचना, प्रेरणादींणवलि बात, लाजवाब सोच.