Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 7, 2024

गढ़वाली साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल-रगड़ा-झगड़ा

दीनदयाल बन्दूणी 'दीन' की गढ़वाली गजल-रगड़ा-झगड़ा । लेखक पौड़ी गढ़वाल के मूल निवासी हैं। वह वर्तमान में दिल्ली में निवासरत हैं।


रगड़ा-झगड़ा

सोचु भिंडि च-हमन, जीवन म अपड़ा भी.
क्य ब्वन-दगड़म चल़णा छिं, सौ रगड़ा भी..

मनखी सोच्यूं-अर गड़्यूं, कख तक ह्वे पूरू.
आज यख-बात पीछा, ह्वे जांद झगड़ा भी..

क्वी यख-रोजा लारा – लत्ता, बदल़णा छन.
कैक-गात ढकणा कु, नि मिलणा-कपड़ा भी..

को चांद-सुख छोड़ी दुख, यख छन सौ मुक.
दगड़म- लग्यां रंदी, दुन्या भरा- दुखड़ा भी..

नौकरि- चाकरि-पैंसा-पढै, क्य-क्य खोजदीं.
इतगै ना-चैंणा छन, भल- भला मुखड़ा भी..

आज लोगु थैं-क्य ह्वेग्या, नि डरदा कै देखि.
हे प्रभु इन-कन बड़ैं तिन, निठुर जिकुड़ा भी..

‘दीन’-द्यखदै जावा, क्य-क्य होलु-अगनैं चलि.
समऴिक- रयां सबि , बचै रख्यां- जबड़ा भी..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “गढ़वाली साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल-रगड़ा-झगड़ा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page