दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल-होरी बाद
होरी बाद
उनिंदु ह्वे पराण, कुजड़ि- झड़ि क्य बात ह्वे.
होरी कुछ नी खेलि, दिन-द्वफरि क्य रात ह्वे..
गात थकि ग्या – हैण तचि ग्या, पोड़ि – पोड़ी.
पोड़्यां-पोड़्यांम,ब्वाला इनि क्य बकिबात ह्वे..
ऋतु – बदलि ह्वा, कुजड़ि – गरमि बढि ग्या.
होरी बादम-एक रातम, इनी क्य चल़क्वात ह्वे..
सुवेर ह्वा-कांणा बसी, निंद नि खुलड़ी अज्यूं.
क्य ह्वे-कनु ह्वे, आज-इनि क्य सरक्वात ह्वे..
क्य बोलू – कनै बोलू – कैम बोलू, ह्य मेरि ब्वे.
आज- स्वीणौं दगड़, इनि क्य- मुलाकात ह्वे..
झुरझुरी लाग- ब्याऴि तक, गातम-हर बातम.
आज-आजम उकत्याट ह्वे, झड़ि क्य बात ह्वे..
‘दीन’ समै कु चक्र, बदलि जांद होरि क बाद.
पूछ ना जै-कैम, स्वाचा ना – क्य बड़िबात ह्वे..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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