दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल-मातृभाषा दिन
मातृभाषा दिन
कख ! हरच बोलि-भाषा, वीं खुज्यांणा छवां हम.
हम छवां- भाषा हितैषी, इनु बतांणा छवां हम..
उन त भाषा कठमऴ्ये ग्या, मनख्यूं का हि जन.
अफी-अफी छ्वीं लगै, ज्यू- बुथ्यांणा छवां हम..
म्यार बोल्यूं सभी सूंणा, तुमरु बोल्यूं नी सुड़णूं.
जनबि हो-पर मेरि हो, अपड़ीं चलांणा छवां हम..
तू बोलदी- राम बांणि, मीं बोलदू- ज्यू जऴांणि.
सबछिं अपड़ा-इनम कैकु, ज्यू जऴांणा छवां हम..
गौं भि त-अब गौं नि रैग्या, ना हऴ्या -ना-ग्वेर.
सैरि बड़्या नौंनू दगड़, हिन्दि बच्याणा छवां हम..
तुमरु – हमरु-पकड़ी रख्यूं, मातृभाषा ज्यूणु.
खैंचि- खैचि ह्वे-तंद्यूण, वे गठ्यांणा छवां हम..
मानकीकरण कनम होलु, गढ्वऴि भाषा कू.
मिलि-जुली ऑखरौं माऴा, बड़ांणा छवां हम..
‘दीन’ अब भि बचीं आस, छोड़ि नीं हमन सांस.
मातृभाषा दिन च आज, ये मनाणा छवां हम..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
मातृभाषा दिन कि सब्यूंथैं सधै.
अपड़ा बच्चों थैं अपड़ि दुधबोलि भाषा बोल़ण-बच्याण सिखावा अर ऊं दगड़ गढवऴि भाषा म बचावा.
धन्यवाद??