गणेश चतुर्थी आज, 11 दिन तक रहेगा उत्सव, जानिए पूजन की विधि, त्योहार से जुड़ी कथाः डॉ. आचार्य सुशांतराज
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महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश में गणेश चतुर्थी प्रमुखता के साथ मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी पर कई लोग अपने घरों में गणेश भगवान की प्रतिमा बैठाते हैं और उसकी प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। गणेश चतुर्थी तक रतजगा, गणेश भगवान के भजन, अखंड दीपक और पूजा-पाठ चलता है। अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश भगवान को विदाई दी जाती है। इसी के साथ यह प्रार्थना भी की जाती है कि हे गणपति बप्पा अगले साल जल्दी आना। कुछ लोग गणेश चतुर्थी के पर्व को दो दिन और कोई पूरे दस दिन तक मनाते हैं। इसे गणेश महोत्सव भी कहा जाता है।
शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख, समृद्धि आती है और शांति बनी रहती है। सनातन धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। यही वजह है कि गणेश चतुर्थी का भी विशेष महत्व है। 9 सितंबर की रात के बाद 12 बजकर 17 मिनट पर चतुर्थी तिथि का प्रारम्भ हो गई। 10 सितंबर की रात्रि 10 बजे तक इसका समय है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद पूजा के स्थान और मंदिर को साफ कर लें। इसके बाद गणेश जी को दूर्वा घास अर्पित करें। श्री गणेश के प्रिय मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। फिर गणेश जी की आरती की जाती है। सामग्रीमान्यता है कि विधिवत भगवान श्री गणेश की पूजा करने से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं। पूजा के लिए गणेश जी की प्रतिमा, जल कलश, पंचामृत, लाल कपड़ा, रोली, अक्षत, कलावा जनेऊ, इलाइची, नारियल, चांदी का वर्क, सुपारी, लौंग पंचमेवा, घी कपूर, पूजा के लिए चौकी, लाल कपड़ा, गंगाजल पहले से इकट्ठा कर लें।
पूरे दस दिन चलता है उत्सव
गणेश चतुर्थी का उत्सव पूरे दस दिनों तक चलता है। महाराष्ट्र में इस उत्सव की धूम को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। गणपति के भक्त चतुर्थी के दिन अपने बप्पा को ढोल नगाड़ों के साथ घर लेकर आते हैं और उन्हें घर में बैठाते हैं। यानी स्थापित करते हैं। ये स्थापना 5, 7, 9 या पूरे 10 दिन की होती है। इन दिनों में गणपति की भक्त गण खूब सेवा करते हैं। उनके पसंदीदा भोग उन्हें अर्पित करते हैं। पूजा पाठ और कीर्तन किया जाता है। इसके बाद उनका विसर्जन कर दिया जाता है।
मान्यता
शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है, जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। भाद्रपद-कृष्ण-चतुर्थी से प्रारंभ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चंद्रोदयव्यापिनीचतुर्थी के दिन व्रत करने पर विघ्नेश्वरगणेश प्रसन्न होकर समस्त विघ्न और संकट दूर कर देते हैं। प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात् व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है।
ये है कथा
शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्र संहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।
शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गज मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्र पूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शनि मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
मो. 9412950046
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।