कोरोना रोकथाम में सहायक हो सकता है गन्द्रायण चोराः डॉ. महेंद्र पाल सिंह परमार

चोरा को उत्तराखंड में चोरु व हिंदी में चोरक या गन्द्रायण के नाम से जाना जाता है। इसका वानास्पतिक नाम Angelica glauca Edgew. (ऐंजेलिका ग्लॉका) है। ये आसानी से भोटिया जनजाति के लोंगों के पास मिल जाता है। या मसालों वाली दुकानों व किराना स्टोर पर भी मिल जाता है। ये Apiaceae (ऐपिएसी) कुल का है और इसको अंग्रेजी में Angelica (एन्जेलिका)) कहते हैंय़ इसको हिंदी में गन्द्रायण संस्कृत में षङिकत, चण्ड, दुष्पत्र, क्षेमक, रिपु, फलचोरक, चपल, दुठकुल, ग्रन्थि, सुगन्धि, पर्णचोरक, तिबती में सा रोन (Tsa ron); आदि नामों से जाना जाता है।
चोरा अथवा चोरक मधुर, तीखा, ठंडा, लघु, कड़वा, कफवात को आराम देने वाले, हृदय संबंधी बीमारी, संज्ञास्थापक; तीखे गन्धयुक्त तथा वर्णप्रसादक होता है। चोरक में पौष्टिकारक गुण होता है।
ये हैं इसके औषधीय गुण
चोरा कोरोना बीमारी के चलते सिरदर्द में, नजला में, श्वसनिका-शोथ या ब्रोंकाइटिस के कष्ट से राहत दे सकता है। 2-4 ग्राम चोरक जड़ को चूर्ण के रूप में शहद मिलाकर खाने से सांस की नली की सूजन, सीने से संबंधित दुर्बलता तथा खाँसी में लाभ होता है। इसके अलावा 1-2 ग्राम चोरक-जड़-चूर्ण का सेवन शहद के साथ करने से दिल के जलन में लाभ होता है। वैसे तो पेट की बीमारियों में भी 1-2 ग्राम चोरक-जड़ के चूर्ण को गर्म जल के साथ सेवन करने से अजीर्ण या कम भूख लगना, कब्ज तथा पित्त संबंधित बीमारियों में लाभ होता है। चोरा का उपयोग पाण्डु रोग धमनियों के सिकुड़ जाने मानसिक रोग के इलाज में भी फायदेमंद बताया गया है।
सेवन की हैं और भी विधि
कोरोना बीमारी के चलते चोरा की जड़ो को चाय में, गरम पानी में, शहत व मसालों में, गिलोय, कालीनमिर्च पुदीना का काडा बनाकर भी पिया जा सकता है। या इसकी जड़ों को सीधे को जलाकर नाक से सूंघकर भी आसानी से कोरोना से बचाव किया जा सकता है। ये दवा तो नहीं पर इसके गुणों के आधार पर ये कारगर है।
बुखार से मिलता है आराम
बुखार के कारण शरीर में जो कष्ट होता है उससे राहत पाने में चोरक का सेवन फायदेमंद होता है। इसके जड़ का काढ़ा बनाकर 15-30 मिली मात्रा में सेवन करने से बुखार से आराम मिलता है।
यदि आप किसी खास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए चोरक का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो इसका 1-3 ग्राम चूर्ण ले सकते हैं। इस औषधि का अधिक मात्रा में आंतरिक रूप से प्रयोग करने से इसमें उपस्थित फ्युरोकूमेरिन्स के कारण त्वचा में सूजन होने का खतरा रहता है। इस पौधे का प्रयोग गर्भवती महिलाओं के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। इसलिए इसका उपयोग सावधानी पूर्वक करना जरूरी भी है।
लेखक का परिचय
नाम -डॉ. महेंद्र पाल सिंह परमार ( महेन)
शिक्षा- एमएससी, डीफिल (वनस्पति विज्ञान)
संप्रति-सहायक प्राध्यापक ( राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी)
पता- ग्राम गेंवला (बरसाली), पोस्ट-रतुरी सेरा, जिला –उत्तरकाशी-249193 (उत्तराखंड)
मेल –mahen2004@rediffmail.com
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।