पूर्व सीएम हरीश रावत पहुंचे भराड़ीसैंण, सीएम और विधानसभा अध्यक्ष से की मुलाकात
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उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत आज चमोली जिले की ग्रीष्मकालीन राजधानी भराड़ीसैंण पहुंचे। यहां उन्होंने सीएम आपास में विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात की।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत आज चमोली जिले की ग्रीष्मकालीन राजधानी भराड़ीसैंण पहुंचे। यहां उन्होंने सीएम आपास में विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात की। इस मौके पर उनके साथ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश भी थे। इस दौरान उन्होंने प्रदेश के विकास के लिए सीएम और विधानसभा अध्यक्ष को सुझाव भी दिए।
विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन चमोली जिले के घाट क्षेत्र के लोगों के सड़क चौड़ीकरण की मांग को लेकर प्रदर्शन के दौरान पुलिस की ओर से किए गए लाठीचार्ज से हरीश रावत काफी खफा थे। उन्होंने घोषणा की थी कि यदि सरकार की लाठी इनती बेचैन है तो मैं भराड़ीसैंण जाउंगा।
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार अच्छी मार्किंग में नहीं आती। न ही एवरेज सरकार है। उन्होंने कहा कि हमने सरकार को सुझाव दिया विधासभा में ऐसे मुद्दों पर बहस होनी चाहिए, जिससे राज्य के विकास में रोड मैप तैयार हो सके। राजनीति से उपर उठकर ऐसा करना पड़ेगा।
मैं भी घसियारी का बेटा हूं
सोशल मीडिया में तरह तरह की पोस्ट डालकर सक्रिय रहने वाले कांग्रेस नेता एवं पूर्व सीएम हरीश रावत ने फिर प्रदेश सरकार की कुछ योजनाओं पर सवाल उठाए। साथ ही अपने कार्यकाल की उन योजनाओं का जिक्र किया जो वर्तमान सरकार ने बंद कर दी। उन्होंने पोस्ट डाली कि-ज
मैं भी आम उत्तराखंडी की तरीके से घसियारी का बेटा हूं। मैं खुद भी घसियार रहा हूं। अपने भाई के साथ। माँ घास काटती थी और हम उसको बांध करके घर लाते थे। त्रिवेंद्र सिंह जी घसियारी के सर से बोझ हटाना चाहते हैं। जब मैंने कैसे हटाएंगे उस व्यवस्था को देखा तो मुझे बड़ी जोर से हंसी आयी। क्योंकि कालसी में चाटन भेली जो भूसे और घास, गुड़ आदि का समिश्रण करके बनाई जाती है, वो उसके बेचने की व्यवस्था को और व्यापक करना चाहते हैं, अच्छी बात है। लेकिन इससे बोझ हटेगा नहीं। जब घास ही नहीं है, जंगलों में घास के लिए जाते थे उस पर प्रतिबंध हो गया है।
उन्होंने लिखा कि-पहले जाड़ों में हमारी भैंसें मालू के पत्ते खाती थी। इसलिये जब मुझे मौका मिला मैंने मालू, तिमला, भिमल, गेठी आदि चारा प्रजाति के वृक्षों पर 300 रुपये की बोनस राशि “मेरा वृक्ष-मेरा धन योजना” के तहत प्रारम्भ की थी, जिसे घसियारी के कल्याण के लिये सोचने वाली, वर्तमान सरकार ने बंद कर दिया है। मैंने दूध पर बोनस की योजना शुरू की और महिला दुग्ध समितियों को प्रोत्साहन दिया, आज वो प्रोत्साहन भी केवल हवा में है। मैंने, गंगा-गाय योजना और मुख्यमंत्री विधवा बकरी पालन योजना शुरू की, आज ये योजनाएं भी समाप्त कर दी गई हैं।
उन्होंने आगे लिखा कि- मगर मुख्यमंत्री जी को घसियारी याद आ रही है। बहरहाल मैं संघर्ष करूंगा कि घसियारी इसका सर्वेक्षण करवा करके उनको पेंशन योजना के दायरे में लाऊं। यूं हमने घसियारी के कष्ट को देखते हुये “तीलू रौतेली पेंशन” योजना प्रारंभ की थी। जो असहाय महिलाओं के लिए थी। उस योजना का विस्तार सार्वभौम तरीके से सब घसियारी महिलाओं के लिये किया जाय। यह मेरा अगला लक्ष्य होगा।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।