पिछले विधानसभा चुनाव में हार को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत ने खंगाले रिकॉर्ड, निकाला ये निष्कर्ष, विरोधियों को दिया जवाब

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत का अपने ही संगठन के लोगों से विवाद से का नाता टूटने का नाम नहीं ले रहा है। बार-बार उन पर वर्ष 2017 के चुनाव में हार का ठीकरा फोड़ा जा रहा है। वहीं, वे सोशल मीडिया में अपनी पोस्टों के जरिये हार के कारण गिनाते हैं, साथ ही हार की जिम्मेदारी भी लेते आ रहे थे। इस बार फिर उन्होंने विरोधियों को करारा जवाब दिया। इसके कारण गिनाएं और उन पर तंज भी कसा।
विवाद यहां से शुरू हुआ था जब हरीश रावत ने आगामी चुनावों में मजबूती से उतरने के लिए कांग्रेस का चेहरा घोषित करने की मांग की। उनकी इस मांग को लेकर कांग्रेस के कई दिग्गजों ने खारिज करते हुए विरोध किया। साथ ही पिछले चुनाव में हुई हार को लेकर उन पर प्रहार भी करते रहे हैं। वहीं हरीश रावत अपनी मांग को मजबूती से रखने के लिए बार-बार सोशल मीडिया में पोस्ट डालते रहते हैं।
पिछले चुनाव में वह हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे। दोनों जगह उन्हें हार देखनी पड़ी थी। आज उन्होंने चुनाव में अपनी हार का एक कारण अपना खुद का प्रचार न करना बताया। उन्होंने सोशल मीडिया में पोस्ट डाली और लिखा-
आज मैंने पुराने रिकॉर्ड तलाशे। विधानसभा चुनाव 2017 में चुनाव के दौरान मैंने 94 सार्वजनिक सभाएं की। इनमें किच्छा में नामांकन के दिन की सार्वजनिक सभा भी सम्मिलित है। हरिद्वार में तो मैं कोई सार्वजनिक सभा कर ही नहीं पाया। शायद मेरे मन में यह विश्वास रहा कि सारे राज्य में चुनाव प्रचार का दायित्व मेरा है और किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण में चुनाव प्रचार का दायित्व मेरे सहयोगी-साथी संभाल लेंगे।
फिर किया ये कटाक्ष
उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं पर तंज कसते हुए कहा कि- यह भी एक बड़ी विडंबना है कि जो लोग चुनाव के दौरान अपने क्षेत्र से बाहर, किसी भी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार में नहीं गये, वो मुझसे 59 सीटों की हार का हिसाब चाहते हैं। हारें पहले भी हुई, हारें बाद में भी हुई। मैंने न बाद की हारों का हिसाब मांगा है, क्योंकि मैंने उन हारों को भी सामूहिक समझा है। जो पहले की हारें हैं, मैंने किसी से यह नहीं पूछा कि क्या कारण है।
उन्होंने आगे लिखा कि-जो चुनावी जीत के विशेषज्ञ हैं, उनके चारों तरफ की सीटों में 2007 से हम लगातार क्यों हारते आ रहे हैं? यह भी एक खोज का विषय है। जो आज अपने को अपराजेय मानकर चलते हैं, चुनावी हारों के कड़वे घूट तो सबको कभी न कभी पीने पड़ते हैं। एक ऐसा चुनाव हुआ था जिसमें एक राष्ट्रीय दल की आंधी चली थी और उसके ऐसे भी उम्मीदवार थे जो अपनी जमानत नहीं बचा पाये थे, लेकिन समय का फेर है।
उन्होंने कहा कि- कांग्रेस की शक्ति जब हाथ में आई तो वो लोग कभी पराजित न होने वाले योद्धा की तरीके से दिखाई देते हैं तो जीत का श्रेय कभी-कभी हमको, पार्टी के उन साथियों के साथ भी बांटना चाहिये, जिनके परिश्रम के बल पर हमको यह सौभाग्य हासिल होता है। मैंने तो 2017 की चुनावी पराजय का केवल 2 ही सीटों पर क्यों? 59 सीटों पर भी हार का दायित्व अपना माना है। उसके लिये पूरी जिम्मेदारी, अपने कंधों पर ली है।
“जय हिंद, जय उत्तराखंड”।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।