लोकतांत्रिक मोर्चा की बैठक में सैन्य धाम निर्माण संघर्ष समिति का गठन, सैन्यधाम के प्रस्तावित स्थल पर उठाए सवाल
उत्तराखंड लोकतांत्रिक मोर्चा की बैठक में सैन्यधाम निर्माण संघर्ष समिति का गठन किया गया। इस मौके पर सरकार की ओर से सैन्य धाम के लिए प्रस्तावित स्थल का विरोध किया गया। साथ ही मांग उठाई गई कि सैन्यधाम को देहरादून की जगह किसी दूसरे स्थान पर बनाया जाए।
लोकतांत्रिक मोर्चा के अध्यक्ष एसएस पांगती की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में गठित सैन्यधाम निर्माण संघर्ष समिति का अध्यक्ष ब्रिगेडियर सर्वेश दत्त डंगवाल को बनाया गया। वहीं, सेल टैक्स के पूर्व संयुक्त आयुक्त शांति नॉटियाल को सचिव, रमेश बलूनी, ह्रदय भूषण डिमरी, विनीता नेगी, मनबर रावत को सदस्य बनाया गया है। इस मौके पर मोर्चा के संयोजक पीसी थपलियाल, रंजना रावत, डा. बसंत ओली भी मौजूद रहे।
बैठक के दौरान कहा गया कि उत्तराखंड एक सैन्य बहुल्य प्रदेश है और यहां के सेवारत और सेवानिवृत्त सशस्त्र सेनिकों कि यह लम्बे समय से मांग थी कि यहां की राजधानी देहरादून में एक युद्ध स्मारक का निर्माण हो। इस अपेक्षा को उत्तराखंड सरकार की ओर से देहरादून छावनी में स्थित चीड़बाग में जमीन के आवंटन से संभव किया जा रहा है। इसको शौर्य स्थल की पहचान और नाम दिया गया है। साथ ही भारत के प्रधान मंत्री ने यह उद्धघोषणा भी की है कि उत्तराखंड की देवभूमि एक वीरभूमि भी है और इसलिए यहां पावन चार धाम के इलावा एक सैन्य धाम भी होना चाहिए। यह उत्तराखंड के समस्त सशस्त्र सैनिकों के लिए एक गर्व और सम्मान की बात है कि यहां सैन्य धाम बनाया जायेगा। साथ ही इस पर बैठक में कई सवाल उठाए गए।
सवाल उठाया गया कि क्या यह सैन्य स्थल एक प्रादेशिक स्मारक होगा या राष्ट्रीय स्मारक ? यह प्रश्न इसलिए उठता है क्योंकि इसकी संकल्पना और मूल विचार प्रधान मंत्री जी की उद्धघोषणा से हुआ। इसके ऊपर केन्द्र और प्रदेश सरकार, दोनों द्वारा स्पष्टीकरण अनिवार्य है। इस सैन्य धाम के लिए जो स्थान चुना गया है, वह इस स्मारक के लिए सबसे उपयुक्त नहीं है। इसके लिए प्रदेश में देहरादून के पुरकुल गांव में चिह्नित की गयी जमीन से बेहतर जगह उत्तराखंड में हैं।
वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड में तीन रेजिमेंटल प्रक्षिक्क्षण केन्द्र रूड़की, लैंसडौन और रानीखेत में हैं । व्यवाहरिक बुद्धि यह कहती है कि जब देहरादून में शौर्य स्थल निर्माणाधीन है और अपने निर्धारित समय में पूर्ण हो जायेगा, तो फिर यहां एक और सैन्य धाम को निर्माण करने की क्या आवश्यकता है ? पुरकुल गाँव की सैन्य दृष्टि से क्या ऐतिहासिक मान्यता है जो यहां यहाँ सैन्य धाम का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए उत्तराखंड के 1400 से अधिक शहीदों के घरों के आंगन से मिट्टी को लाकर एक भावुक कोण दिया जा रहा है। यह स्पष्ट तरीके से सैन्य धाम को अपनी वर्तमान जगह और स्थान में बनाने के लिए एक राजनीतिकरण से प्रेरित प्रयास है। इसकी प्रदेश के हर सशस्त्र सैनिक को, चाहे वह सेवारत हो या फिर सेवानिवृत्त हो अपनी पूर्ण शक्ति से विरोध और भर्त्सना करनी चाहिए।
बैठक में कहा गया है कि हम इस वास्तविकता से भी अवगत हैं कि देश – प्रदेश में हम स्मारक का निर्माण तो कर लेते हैं, किन्तु उसके उपरान्त हम उसके रख रखाव के प्रति लापरवाही दिखाते हैं। इस कारण वश लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचती है और स्मारक का अपमान भी होता है। इसलिए यह उचित होता है कि हम स्मारक या फिर सैन्य धाम को ऐसी जगह और स्थान पर बनायें जहाँ कोई सैन्य इकाई/ संगठन पहले से उपस्थित है। इसके कारण उसका रख रखाव और देखभाल अपेक्षित और सम्मानीय तरीके से हो सके।
साथ ही ये भी तर्क दिया गया कि उत्तराखंड की जनता यह भी जानती है कि देहरादून-मसूरी के रस्सा मार्ग का प्रस्थान बिन्दु पुरकुल में चिह्नित किया गया है। सरकार के हाल के बयान में यह भी कहा गया है कि इस धाम के परिसर को इस तरह से विकसित किया जायेगा कि यह एक बहुउद्देशीय मकसद से उपयोग किया जा सकेगा। इससे व्यवसाय एवं रोजगार की सम्भावनायें भी पैदा हो सकेंगी। यह सोच बहुत ही हीन और तुच्छ है। क्योंकी इससे धाम की गरिमा और पवित्रता को बहुत ठेस लगेगी और यह उत्तराखंड के सशस्त्र सैनिकों को कदापि स्वीकार नहीं होगी। इस संबंध में नवनियुक्त समिति के अध्यक्ष ने राज्यपाल को पत्र भेजकर सैन्यधाम के स्थल पर उचित निर्णय लेने की मांग भी की।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।