उत्तराखंड में कट रहे जंगल, देहरादून का तापमान पहुंच रहा 43 के पार, गलती सुधार लो सरकार
उत्तराखंड में राजधानी देहरादून से लेकर पर्वतीय जिलों में गर्मी से लोग परेशान हैं। ऐसा अचानक नहीं हुआ है, बल्कि पर्यावरण को बिगाड़ने का खेल पिछले कई साल से चल रहा है। विकास के नाम पर जंगलों में आरी चल रही है, लेकिन एवज में शायद ही कहीं पेड़- पौधे उस अनुपात में पनपाए जा रहे हैं। यदि पनपाए गए तो सरकार को इसके आंकड़े जारी करने चाहिए। फिलहाल तो यही नजर आ रहा है कि विकास योजनाओं के नाम पर सरकार जो गलती कर रही, यदि समय रहते हुए नहीं सुधारा गया तो आने वाले दिनों में हालात और अधिक बिगड़ जाएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसमें भी खास ये है कि जितने पेड़ काटे जाते रहे हैं, उनकी एवज में यदि पेड़ लगाए गए तो वे पनपे या नहीं, ये देखने वाला कोई नहीं है। ना ही सरकार ऐसे आंकड़े जारी करती है कि पर्यावरण के नाम पर जितने पौधे रोपे गए, उनमें कितने पौधे पनप पाए। वृक्षारोपण के नाम पर पौधरोपण की फोटो जारी तो होती हैं, लेकिन फिर पौधों का हाल जानने का प्रयास नहीं होता है। होना ये चाहिए कि पहले पौधरोपण किया जाए और जब तक वे पेड़ों का रूप धारण नहीं कर लेते, उससे पहले पेड़ों का कटान नहीं किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दस दिन से देहरादून का तापमान 40 डिग्री के पार
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में जहां गर्मियों में दूसरे राज्यों से लोग कुछ राहत के लिए पहुंचते थे, अब ये शहर भी भट्टी की तरह तपने लगा है। देहरादून समेत ज्यादातर मैदानी क्षेत्रों में आसमान से आग बरस रही है। करीब 10 दिन से देहरादून का अधिकतम तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच रहा है। इसमें कई दिन तो 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
टूट रहे गर्मी के रिकॉर्ड
देहरादून में इस सीजन में तीसरी बार पारा 43 डिग्री के पार गया है। मई से अभी तक कुछ दिनों को छोड़ लगातार गर्म हवाएं झुलसा रही हैं। सोमवार 17 जून को दून का अधिकतम तापमान सामान्य से नौ डिग्री इजाफे के साथ 43.1 डिग्री रहा। इससे पहले साल 1902 की चार जून को अधिकतम तापमान 43.9 डिग्री रहा था, जो अभी तक का ऑल टाइम रिकॉर्ड है। यानि कि 122 वर्षों में सर्वाधिक रिकॉर्ड के करीब तापमान इस सीजन में तीन बार पहुंच चुका है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बड़ी परियोजनाओं के नाम पर पेड़ों की बलि
उत्तराखंड में पेड़ों के बड़े स्तर पर कटान की बात करें तो वर्ष 2016 से आल वेदर रोड परियोजना के नाम पर चारधाम सड़क के चौड़ीकरण से इसकी शुरूआत की गई। इस परियोजना के तहत भले ही सरकारी आंकड़े 35 से 50 हजार पेड़ों के कटान की जानकारी देते हैं, वहीं पर्यावरण प्रेमियों का दूसरा तर्क है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
10 साल में दस लाख पेड़ों को काटने का दावा
पर्यावरणविद सुरेश भाई कहते हैं कि इस परियोजना के तहत करीब डेढ़ लाख पेड़ों को काटा गया है, या फिर काटा जा रहा है। उनका कहना है कि कटान के लिए छपान बड़े पेड़ का होता है। वहीं, उसके साथ छोटे पेड़ और पोधे भी निर्माण कार्यों की भेंट चढ़ जाते हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री तक के पर्यावरण पर पेड़ों के कटान का असर देखने को मिल रहा है। उन्होंने दावा किया कि पिछले दस साल में उत्तराखंड में करीब दस लाख पेड़ों को काटा गया है। ऐसे पेड़ों में देवदार, साल और पीपल के पेड़ों की संख्या भी अधिक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस कारण बिगड़ रहा दून का पर्यावरण
देहरादून में बिगड़े पर्यावरण में कई योजनाओं को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सहस्त्रधारा रोड के चौड़ीकरण में दो हजार से ज्यादा पेड़ों की बलि दी गई। अब खलंगा में बड़ा जलाशय बनाने के नाम पर दो हजार पेड़ों को काटने की तैयारी है। भले ही सरकारी आंकड़ों में ये संख्या कम हो सकती है, लेकिन एक पेड़ के आसपास ऐसे छोटे छोटे पेड़ों की संख्या भी अधिक होती है, जो कई साल में विशाल पेड़ का रूप धारण कर लेते हैं। ऐसे पेड़ों पर ना ही कोई निशान होता है और ना ही छपान। पर्यावरणविद सुरेश भाई कहते हैं कि देहरादून दिल्ली हाईवे के निर्माण में भी हजारों पेड़ों को काटा गया है। यदि पूरे देशभर में सड़कों के चौड़ीकरण की बात की जाए तो एक करोड़ से ज्यादा पेड़ ऐसी सड़कों की भेंट चढ़ चुके हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जमरानी बांध निर्माण में भी चार हजार पेड़ों की दी जाएगी बलि
नैनीताल जिले के हल्द्वानी स्थित रामगंगा की गौला नदी पर जमरानी बांध बनना प्रस्तावित है। जमरानी बांध के निर्माण का बड़ा हिस्सा वनभूमि से जुड़ा है। वन विभाग की 350 हेक्टेयर जमीन का इस्तेमाल इसके लिए होगा। बांध से जुड़े मुख्य निर्माण कार्य का दायरा करीब 50 हेक्टेयर है। यहां झाड़ी व अन्य प्रजाति के अधिकतम चार हजार पेड़ हैं। सर्वे पूरा हो चुका है। अभी बड़े हिस्से में नए सिरे से पेड़ों की गणना बाकी है। फायर सीजन से निपटते ही वन विभाग इस कार्य में जुट जाएगा। ऐसे में साफ है कि यहां भी बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटा जाना तय है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बड़ी संख्या में जलमग्न होंगे पेड़
जमरानी बांध के निर्माण में 350 हेक्टेयर वनभूमि और 50 हेक्टेयर निजी जमीन का इस्तेमाल होगा। छह गांवों से जुड़ी इस निजी भूमि पर भविष्य में दस किमी लंबी झील नजर आएगी, जिसमें बांध की जरूरत का पानी स्टोर किया जाएगा। ऐसे में इस क्षेत्र के अधिकांश पेड़ भविष्य में जलमग्न हो जाएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पर्यावरण प्रेमी कर रहे हैं आंदोलन
देहरादून के बिगड़ते पर्यावरण के लिए पर्यावरण प्रेमी सरकार को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। उनका मानना है कि बड़े पैमाने पर सड़क या अन्य निर्माण के चलते पेड़ों की बलि दी जा रही है। पहले सहस्त्रधारा रोड पर सड़क चौड़ीकरण के नाम पर करीब दो हजार पेड़ों को काटा गया। फिर खलंगा में भी पेड़ों पर आरी चलाने की तैयारी है। अब एक और नई मुसीबत सामने आ रही है। कैंट रोड पर भी करीब 200 पेड़ों पर आरी चलाने की तैयारी चल रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हर रविवार को लेते हैं पर्यावरण बचाने का संकल्प
पर्यावरण प्रेमी हर रविवार की सुबह को देहरादून के गांधी पार्क पर एकत्र होकर देहरादून के पर्यावरण बचाने का संकल्प लेते हैं। उन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए आंदोलन का निर्णय किया है। खलंगा में पेड़ों के कटान के विरोध में भी वे लगातार आंदोलन कर रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
23 मार्च को होगा पैदल मार्च
पर्यावरण प्रेमियों ने किया है कि 23 जून को दिलाराम बाजार से सेंट्रियो मॉल तक पैदल मार्च निकाला जाएगा। उनका कहना है कि सड़क चौड़ीकरण के नाम पर दिलाराम बाजार से लेकर सेंट्रियो मॉल तक करीब 200 पेड़ों पर आरी चलाना प्रस्तावित है। पर्यावरण प्रेमी जया, इरा चौहान, रश्मि सहगल, रुचि सिंह, अरंजिका, राधा बोस, जगमोहन मेंदीरत्ता, हरि ओम पाली, विजय भट्ट, मुकेश नॉटियाल, अनिल जग्गी आदि लोगों से इस पैदल मार्च में भाग लेने की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है कि इन पेड़ों को बचाएं, अन्यथा अगले वर्ष पारा देहरादून में 50 डिग्री तक गर्मी झेलने के लिए तैयार रहें।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।