नहीं रहे लोक कलाकार रामरतन काला, हृदयघात से हुआ निधन
उत्तराखंड के लोक कलाकार एवं गढ़वाली सुविख्यात रंगकर्मी रामरतन काला का 86 साल की उम्र में निधन हो गया। बुधवार की देर रात उन्होंने पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार क्षेत्र के पदमपुर स्थित अपने आवास में अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि उन्हें हार्ट अटैक पड़ा था। रामरतन काला ने गढ़वाली गीतों में कलाकार के रूप में वर्ष 1985 से अभिनय करना शुरू किया था। उनकी कई लोकप्रिय एलबम लोगों के बीच में आई और उन्हें बखूबी सराहा गया। बताया जा रहा है कि वर्ष 2008 में उन्हें पैरालाइज का अटैक पड़ा था। इसके बाद से ही उन्होंने अभिनय छोड़ दिया था। तब से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था।
सोशल मीडिया में कई लोगों ने रामरतन काला के अभिनय का भी उल्लेख करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। दूरदर्शन उत्तराखंड के निदेशक सुभाष थलेड़ी ने लिखा कि वे आकाशवाणी और दूरदर्शन के जाने-माने कलाकार रहे। उन्होंने आकाशवाणी नजीबाबाद के ग्राम जगत कार्यक्रम में वे “रारादा” के स्टॉक करेक्टर में सालों भूमिका निभाई। दूरदर्शन देहरादून के कल्याणी कार्यक्रम में वे “मुल्कीदा” की भूमिका में दर्शकों का मनोरंजन करते रहे।
स्व. काला आकशवाणी के लोकसंगीत के “बी हाई” ग्रेड के कलाकार थे। वे 2008 से बीमारी की हालत में थे, लेकिन उसमें सुधार हो गया था। हालांकि उन्होंने इसके बाद फिल्म, रंगकर्म, लोकसंगीत में प्रतिभागिता करना बंद कर दिया था।
गढ़वाली की अनेक फिल्मों में वे हास्य कलाकार की भूमिका निभाते रहे। सतपुली गढ़वाल के मूल निवासी स्व. काला वर्तमान में वे कोटद्वार भाबर में रह रहे थे। उनमें कूटकूट कर हास्य भरा हुआ था। वे बहुत सहज और ग्रामीण पृष्ठभूमि के कलाकार थे। “ब्यौलि खुजे द्यावो”, “अब खा माछा” आदि उनकी अनेक हास्य प्रस्तुतियां देखने-सुनने वालों को आज भी गुदगुदाती हैं।
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र अंथवाल ने लिखा कि- गढ़वाली गीतों-मंचों में अपने अभिनय से हास्य बिखेरने वाले और अनेक मौकों पर गंभीर भूमिकाएं निभाने वाले सुविख्यात लोक कलाकार रामरतनकाला अब हमारे बीच नहीं हैं। कल रात उनका निधन हो गया। 80-90 के दशक और उसके बाद भी वे आकाशवाणी और दूरदर्शन के जाने-माने कलाकार रहे। प्रख्यात लोकगायक नरेंद्र सिंहने गी जी के नौछमीनारैना के हास्य गीत अब खा माछा..में रामरतन काला का अभिनय जहां आज भी लोगों को गुदगुदाता है, तो वहीं नेगी जी के ही एक पुराने गीत कन लड़िक बिगड़ी म्यारू.. में कालाजी एक बेबस पिता की भूमिका में दर्शकों को रुलाते हैं।
‘रॉक एन रोल…’, ‘तीतरी फंसे-चखुली फंसे…’, ‘कै मा ना बोल्यां भैजी जनानी कु मारयूं छौं मि…’, ‘समदौल का दुई दिन…’ जैसे अनेक गीतों को अपने हंसाते-गुदगुदाते अभिनय से उन्होंने लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया। मूलरूप से सतपुली निवासी कालाजी कोटद्वार में रहते थे। 80 के दशक के उत्तरार्ध में आकाशवाणी नजीबाबाद से उनका गाया हास्य गीत-ब्योली खुजे द्यावामि तैं ब्योला बणेद्यावा..’ बहुत लोकप्रिय हुआ था। उन्होंने कई गढ़वाली फिल्मों और म्यूजिक एलबम में अभिनय किया। पहाड़ को अपने सहज-सरल अभिनय से अक्सर हंसाने-गुदगुदाने और कभी-कभी रुलाने वाले लोक कलाकार रामरतन कालाजी की श्रद्धांजलि।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।