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December 17, 2024

विशुद्ध वैज्ञानिकता लिए हुए है फूलदेई का त्योहार, जानिए वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व, बता रहे हैं हेमंत चौकियाल

उत्तराखंड के अधिकांश हिस्सों में फूलदेई पर्व आठ दिनों तक चलता है, जबकि दशज्यूला नागपुर परगने में फूल डालने की इस परम्परा को केवल संक्रांति को ही करते हैं।

चैत्र मास की संक्रांति के साथ ही बच्चों का फूलदेई का त्योहार शुरू हो गया है। उत्तराखंड के अधिकांश हिस्सों में यह त्योहार आठ दिनों तक चलता है, जबकि दशज्यूला नागपुर परगने में फूल डालने की इस परम्परा को केवल संक्रांति को ही करते हैं। उत्तराखंड के अधिकांश हिस्सों में ये फूल डालने का क्रम माह की आठ गते तक मनाया जाता है। टिहरी जनपद के अधिकांश हिस्सों में फूल डालने का यह क्रम पूरे चैत्र माह चलता है। यों तो हिन्दू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है, लेकिन चैत्र मास प्रारंभ होने से बच्चे इसे नव संवत्सर के प्रारंभ होने के रूप में मनाते हैं। एक तरह से इस प्रभात फेरी के पीछे कई वैज्ञानिक कारण हैं। आइए उनका अवलोकन करते हैं।


प्रभातफेरी में शुद्ध औषधीय वायु
पहला कारण यह कि बसंत पंचमी के बाद जहां प्रकृति में बसन्त का आगमन प्रारंभ हो जाता है। चैत्र संक्रांति आते आते अधिकांशतः प्रकृति में रंग-बिरंगे फूल और औषधीय गुणों वाले लता-बेल-पौधे अपने यौवन पर होते हैं। इससे वातावरण सुगन्धमय बना रहता है। पहाड़ी क्षेत्रों में अब तक मौसम में नमी में भी काफी कमी आ जाती है, जिस कारण मौसम काफी सुहाना हो जाता है। ऐसे वातावरण में बच्चे जब प्रभात फेरी करते हैं तो यह उनकी बढ़ती उम्र के लिए संजीवनी का सा काम करता है। प्रकृति से शुद्ध और औषधीय वायु उनके फेफड़ों में जाती है। उनमें नया रक्त निर्माण, बल, बुद्धि, ताजगी व उत्तक निर्माण की प्रक्रिया बहुत तेजी से प्रारंभ होती है।


नेतृत्व क्षमता का विकास
दूसरा कारण कि यह त्योहार बच्चों के आपसी मेल मिलाप से बच्चों के संवेगात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। केवल और केवल यही एक मात्र त्योहार है, जिसमें बच्चे अपने अनुसार अपने कार्यों को संपादित करते हैं। इससे बच्चों की नेतृत्व क्षमता भी निखरती है।


मेलजोल से संबंध होते हैं मजबूत
बच्चों के आपसी मेल जोल से पास पड़ोस में भी बच्चों ही नहीं, बल्कि उनके पारिवारिक संबंध भी मजबूत होते हैं। इससे आपसी प्यार प्रेम में भी बढ़ोतरी होती है। शहरों में अगल – बगल रहने वालों पड़ोसियों में भी जान पहचान न होना जहां एक अलग तरह का भय व्याप्त रहता है, वहीं इस त्योहार के माध्यम से बच्चे एक दूसरे से बातचीत करके उस भय के माहौल को समाप्त करने और परिवारों के बीच सौहार्द बढ़ाने की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।

लेखक का परिचय
नाम- हेमंत चौकियाल
शिक्षक राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय डॉंगी गुनाऊँ, जनपद रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड।
Mail – hemant.chaukiyal@gmail.com

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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