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November 22, 2024

उत्तराखंड के देहरादून में बैठा बुलडोजर का डर, सीपीएम का प्रदर्शन

चाहे कोर्ट की आड़ हो या फिर सरकार की रणनीति। ये तय माना जा रहा है कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में वर्ष 2016 के बाद नदी किनारे बसी बस्तियों पर बुलडोजर चलेगा। इसके चलते ऐसी बस्ती के लोगों में भय का माहौल है। वहीं, विपक्षी दलों के साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। साथ ही सरकार पर कोर्ट में सही तरीके से पैरवी ना करने का आरोप लगा रहे हैं। देहरादून में सीपीआईएम ने गरीबों की बस्तियों को उड़ाने के खिलाफ 16 मई को जिला मुख्यालय के समक्ष प्रदर्शन किय। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कारण ये है कि निगर निगम ने वर्ष 2016 के बाद से नदी किनारे बने भवनों को तोड़ने का नोटिस जारी किया है। कारण हाईकोर्ट का हवाला बताया जा रहा है। ऐसे में आए दिन देहरादून में इन बस्तियों में रह रहे लोगों के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। आज गुरुवार को सीपीआईएम के तत्वावधान में जिला मुख्यालय में जोरदार प्रदर्शन किया गया। साथ ही जिला प्रशासन के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया। इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि गरीबों को उजाड़ने की साजिश को तुरंत बंद किया जाए। वरना सरकार को बड़े जन आन्दोलन का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ज्ञापन की प्रति मुख्य सचिव, गढ़वाल आयुक्त, जिलाधिकारी देहरादून, नगरनिगम आयुक्त को भी प्रेषित की गई। ज्ञापन उपजिलाधिकारी मुख्यालय शालिनी नेगी को सौंपा गया। बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता एवं प्रभावित गरीब परिवार, रेहड़ी, पटरी के लघु व्यावसायी पुराने दिल्ली बस स्टैंड में एकत्र हुए। वहां से जलूस की शक्ल में जिला मुख्यालय पहुंचे। जहां सरकार की गरीब विरोधी नीतियों के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। साथ ही सभा भी आयोजित की गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस अवसर पर वक्ताओं ने सरकार एवं प्रशासन की नीतियों का जमकर विरोध किया। साथ ही चेतावनी दी कि यदि उत्पीड़न नहीं रोका तो सरकार की नीतियों के खिलाफ व्यापक जन आन्दोलन चलाया जायेगा। ज्ञापन में सरकार से अनुरोध किया गया कि सरकार अपना क़ानूनी और संवैधानिक फर्ज निभा कर लोगों को हक दिलाये। न कि कोर्ट के आदेशों का बहाना बनाकर लोगों को बेघर करे।  मलिन बस्ती में रहने वाले लोगों को नगरनिगम देहरादून की ओर से नोटिस जारी किये गए हैं। उसमें स्पष्ट रूप से बस्तियों को उजाड़ने की बात हो रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ज्ञापन में सरकार को याद दिलाया गया कि वर्ष 2016 में ही मलिन बस्तियों का नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए कानून बनाया गया। तब आश्वासन दिया था कि मलिन बस्तियों को तुरन्त मालिकाना हक़ देंगे। इस सन्दर्भ में जन आंदोलन होने के बाद 2018 में सरकार की ओर से अध्यादेश लाकर अध्यादेश की धारा 4 में ही लिख दिया कि तीन साल के अंदर बस्तियों का नियमितीकरण या पुनर्वास होगा। वह कानून जून 2024 में खत्म होने वाला है। आज तक किसी भी बस्ती में मालिकाना हक़ नहीं मिला है। नहीं कोई वैकल्पिक नीति इनके लिऐ नहीं बन पायी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ज्ञापन में कहा गया कि सरकार का वायदा हर परिवार को घर देने का था। हर बस्ती का नियमितीकरण या पुनर्वास का था। सूचना के अधिकार से पता चला है कि 2018 और 2022 के बीच सरकार ने इस संदर्भ में एक भी बैठक नहीं की। आज हज़ारों लोगों के घर का सवाल है, लेकिन हरित प्राधिकरण में एक अप्रैल की सुनवाई में सरकारी विभाग से कोई हाज़िर ही नहीं हुआ। अभी भी इस आदेश के खिलाफ उचित क़ानूनी कदम उठाने पर सरकार खामोश है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

माह जून 2024 में 2018 का अधिनियम खत्म हो रहा है। पुनर्वास और नियमितीकरण के लिए कुछ भी काम नहीं किया गया है। जैसे ही यह कानून ख़त्म हो जायेगा, सारी बस्तियों को उजाड़ा जा सकता है। चाहे वे कितनी भी पुरानी क्यों न हो। अगर कोर्ट में सरकार लापरवाही करती रहेगी, ऐसे भी आदेश आने की पूरी सम्भावना है। कहा गया कि न्यायालय के आदेशों पर कार्रवाई को सिर्फ मज़दूर बस्तियों तक सीमित किया गया है। किसी भी बड़े होटल, सरकारी विभाग या बड़ी इमारत को नोटिस नहीं दिया गया है। इन सबके द्वारा भी पाश इलाकों और नदी नालों में अतिक्रमण हुआ है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये की गई है मांग
-अपने ही वादों के अनुसार सरकार तुरंत बेदखली की प्रक्रिया पर रोक लगाए। कोई भी बेघर न हो, इसके लिए या तो सरकार अध्यादेश द्वारा क़ानूनी संशोधन करे। या हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में जाये।
-2018 के अधिनियम में संशोधन किया जाए। जब तक नियमितीकरण और पुनर्वास की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी, जब तक मज़दूरों के रहने के लिए स्थायी व्यवस्था नहीं बनती, तब तक बस्तियों को हटाने पर रोक लगे।
-दिल्ली सरकार की पुनर्वास नीति को उत्तराखंड में भी लागू किया जाये।
-राज्य के शहरों में उचित संख्या के वेंडिंग जोन को घोषित किया जाये। पर्वतीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में वन अधिकार कानून पर अमल युद्धस्तर पर किया जाये।
-बड़े बिल्डरों एवं सरकारी विभागों के अतिक्रमण पर पहले कार्यवाही की जाये।
– एलिवेटेड रोड के नाम पर रिस्पना तथा बिंदाल नदी किनारे ‌बसी बस्तियों को उजाड़ना बन्द हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

ये रहे मुख्य वक्ता
इस अवसर सीपीएम के जिला सचिव राजेन्द्र पुरोहित, देहरादून सचिव अनन्त आकाश, सहसपुर सचिव कमरूद्दीन, पूर्व जिलापंचायत अध्यक्ष शिवप्रसाद देवली, सीआईटीयू जिला महामन्त्री लेखराज आदि ने विचार व्यक्त किये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये रहे प्रदर्शन में शामिल
प्रदर्शन में शामिल लोगों में सीटू के जिला अध्यक्ष कृष्ण गुनियाल, उपाध्यक्ष भगवन्त पयाल, रविन्द्र नौडियाल, रामसिंह भण्डारी, एआईएलयू के महामन्त्री शम्भू प्रसाद ममगाई, एसएफआई अध्यक्ष नितिन मलैठा, महामंत्री हिमान्शु चौहान, शैलेन्द्र, एजाज, जेएमएम उपाध्यक्ष बिन्दा मिश्रा, अर्जुन रावत, बबिता अनन्त, कनिका, अभिषेक भण्डारी, राजेन्द्र शर्मा, अनिता नैथानी, विजय भट्ट, इन्द्रैश नौटियाल, मिनि जुयाल, अंजलि, सरोजनी ,हरीश कुमार, महैन्द्र राय, शराफत, गुरु प्रसाद, राम प्रसाद मिश्रा, प्रभा, संदीप, ओम प्रकाश, चैतन कुमार, विप्लव अनन्त, सरोजनी, शबनम, कमलेश, गगन गर्ग, सुनिता, एन एस पंवार, सुमित्रा, सरोज देवी, विनोद कुमार आदि थे।
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