उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने में हुए विफल, घाटा पूरा करने को बिजली दर बढ़ाने की तैयारी, कारणों की पड़ताल करती रिपोर्ट
उत्तराखंड में गर्मी के दिनों में निर्बाध बिजली उपलब्ध कराने के सरकार के प्रयास के बीच ऊर्जा निगम निरंतर घाटे में पहुंचता जा रहा है। अब तीन माह के घाटे को पूरा करने के लिए सालभर तक उपभोक्ताओं पर भार डालने की योजना बन गई है।

अप्रैल माह में थपथपाई पीठ अब रेट बढ़ाने की तैयारी
इसी अप्रैल में ऊर्जा निगम बीते वर्ष की वित्तीय उपलब्धियों पर अपनी पीठ थपथपा रहा था। क्योंकि, वर्ष 2021-22 में निगम ने अब तक का सर्वाधिक राजस्व अर्जित किया। जोकि वित्तीय वर्ष 2020-21 से 936 करोड़ रुपये अधिक है। हैरानी की बात है कि बावजूद इसके निगम का घाटा कम नहीं हो पा रहा। अब निगम माली हालत खराब होने का रोना रो रहा है और इससे उबरने के लिए एक साल के भीतर दूसरी बार बिजली दरों में बढ़ोतरी चाहता है। इसके लिए ऊर्जा निगम की ओर से टैरिफ रिवाइज कराने की कसरत भी चल रही है।
अप्रैल माह में भी बढ़ाए गए थे बिजली के रेट
उत्तराखंड पावर कारपोरेशन, यूजेवीएनएल (UJVNL) और पिट्कुल ने नियामक आयोग से बिजली की दरों में बढ़ोतरी के लिए मौजूदा टैरिफ से 10 फीसदी के इजाफे की मांग रखी थी। इसके बाद नियामक आयोग ने अलग अलग जनसुनवाई के बाद फाइनल टैरिफ प्लान जारी कर दिया था। इस टैरिफ के अनुसार, पहली अप्रैल से प्रदेश में बीपीएल कन्जूमर पर 4 पैसा प्रति यूनिट बिजली में बढ़ोतरी की गई। इसके साथ ही सभी अन्य 9 श्रेणियों में आयोग ने बिजली के दामों को बढ़ाया गया। साथ ही नये कनेक्शन लगाने को लेकर भी आयोग ने दाम बढ़ाये हैं। पहली अप्रैल से एक तरफ जहां डोमेस्टिक कंज्यूमर पर प्रति यूनिट बिजली की दरों में 15 पैसे का इजाफा किया गया है, तो दूसरी तरफ कमर्शियल उपभोक्ताओं पर भी नियामक आयोग ने 16 पैसा प्रति यूनिट बढ़ोतरी की गई है। इंडस्ट्रीज पर आयोग ने 15 पैसे की बढ़ोतरी की साथ ही रेलवे पर 32 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी की है।
अब फिर से रेट बढ़ाने की तैयारी
अब उत्तराखंड में नए सिरे से बिजली की दरें बढ़ाने का प्रस्ताव यूपीसीएल की बोर्ड बैठक से पास कर दिया गया है। बोर्ड ने बिजली दरों में साढ़े 12 प्रतिशत इजाफा किए जाने का प्रस्ताव मंजूर किया। इस प्रस्ताव पर यदि विद्युत नियामक आयोग की भी मुहर लगती है, तो बिजली उपभोक्ताओं पर प्रति यूनिट 70 पैसे प्रति यूनिट तक का अतिरिक्त भार पड़ेगा।
ये दिया जा रहा है तर्क
बाजार से महंगी बिजली खरीदने के कारण यूपीसीएल पर हर महीने 300 करोड़ रुपये से अधिक का वित्तीय भार पड़ रहा है। इस अतिरिक्त वित्तीय भार के कारण मार्च, अप्रैल महीने में ही यूपीसीएल की हालत खस्ता हो गई है। अभी कई और महीने ये दिक्कत कायम रहेगी। कोल और गैस की कमी के कारण बाजार में भी बिजली के रेट उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। चार से पांच रुपये प्रति यूनिट में बाजार से आसानी से मिलने वाली 12 रुपये प्रति यूनिट पर भी नहीं मिल रही है। इसी को आधार बनाते हुए यूपीसीएल ने बोर्ड में दरें बढ़ाने का प्रस्ताव रखा। इस पर बोर्ड के सभी सदस्यों ने मुहर लगाते हुए प्रस्ताव पास किया। अब इस प्रस्ताव को विद्युत नियामक आयोग को भेजा जाएगा। आयोग के स्तर पर इस प्रस्ताव पर अंतिम फैसला लिया जाएगा। यूपीसीएल की ओर से बोर्ड बैठक का आयोजन ऑनलाइन किया गया।
हर महीने 140 रुपये तक का पड़ेगा असर
यूपीसीएल ने बिजली दरों में साढ़े 12 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव रखा है। इससे 70 पैसे प्रति यूनिट का भार उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। महीने में 200 यूनिट तक बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं पर 140 रुपये महीने तक का अतिरिक्त भार पड़ेगा। यूपीसीएल ने सितंबर महीने तक 944 करोड़ रुपये के पड़ने वाले अतिरिक्त भार की भरपाई को ये प्रस्ताव आयोग को भेजा है।
सरकार से लगा झटका
यूपीसीएल को सरकार की ओर से भी वित्तीय सहायता मिलती नजर नहीं आ रही है। महंगी बिजली खरीद सस्ती दरों पर जनता को उपलब्ध कराने से यूपीसीएल पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है। इस बोझ की भरपाई को सरकार से 350 करोड़ की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने की मांग की गई थी। शासन के सूत्रों के अनुसार वित्त विभाग ने इस पर आपत्ति लगा दी है। यूपीसीएल को बाजार से लोन लेने की सलाह दी गई है। सूत्र बताते हैं कि जब प्रदेश को 24 घंटे बिजली आपूर्ति के निर्देश दिए गए थे, तब सरकार की ओर से आश्वासन मिला था कि महंगी बिजली खरीद पर होने वाले घाटे की भरपाई के लिए सरकार मदद करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
भेजा जा रहा है प्रस्ताव
यूपीसीएल के एमडी अनिल कुमार का मीडिया में बयान आया कि विद्युत नियामक आयोग को प्रस्ताव भेजा जा रहा है। प्रस्ताव बोर्ड से पास हो गया है। इसे जल्द आयोग को भेज दिया जाएगा। आयोग से अपील की जाएगी कि इस प्रस्ताव को मंजूरी दे। ताकि यूपीसीएल आम जनता को पर्याप्त मात्रा में पूरे समय बिजली उपलब्ध करा सके।
रेवन्यू बढ़ाने के दूसरे तरीकों पर नहीं किया गौर
उत्तराखंड बनने के बाद से ही ऊर्जा निगमों ने राजस्व बढ़ाने के लिए कोई भी ठोस योजना में काम नहीं किया। साथ ही अपने कार्यों की समीक्षा तक नहीं की। पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी की परिकल्पना उत्तराखंड को विद्युत प्रदेश बनाने की थी। वहीं सरकारें परियोजनाओं को पूरा करने में असफल साबित रही। इसके लिए कोई ठोस नीति नहीं बन पाई। टिहरी बांध सेंट्रल सरकार के पैसों से बना है। उससे स्टेट को कुछ नहीं मिलता। अन्य परियोजनाएं भाी निजी क्षेत्र की बनी। उससे सरकार को मात्र 12 फीसद रायल्टी मिलती है। सरकार ने रेवन्यू बढ़ाने के लिए अपनी परियोजनाओं पर फोकस नहीं किया।
उत्तराखंड लक्ष्य से दूर, हिमाचल में मांग से दोगुना उत्पादन
उत्तराखंड में 12000 एमयू बिजली उत्पादन का लक्ष्य था। अभी तक साढ़े तीन एमयू बिजली का उत्पादन ही हो रहा है। वहीं खपत साढ़े सात एमयू की है। वहीं हिमाचल प्रदेश में चार हजार एमयू की खपत है और बिजली का उत्पादन दोगुना है। ऐसे में देखा जाए तो उत्तराखंड में बिजली का उत्पादन बढ़ाने में ठोस कार्य हुए ही नहीं। सिर्फ सरकारें वाहवाही तक सीमित रहीं।
सोलर प्लान की योजना भी नहीं चढ़ी परवान
ऐसा नहीं है कि सरकार के पास योजनाएं नहीं हैं, लेकिन योजनाओं को धरातल पर नहीं उतारा जा रहा है। महत्वपूर्ण प्लान सोलर ऊर्जा के लिए पालिसी बनाई गई। इसमें कहा गया कि प्रदेश में 20 फीसद बिजली सोलर प्लान से होनी चाहिए। यूपीसीएल की ये स्कीम फेल हो गई। घर घर में सोलर प्लान लगे ही नहीं। लोगों को प्रोत्साहित तक नहीं किया गया। गांव में भी लोगों को इस दिशा में नहीं जोड़ा गया। ना ही कंपनियों को प्रोत्साहित किया गया। इक्ता दूक्का मामलों को छोड़कर योजना परवान नहीं चढ़ पाई। प्रदेश में एक हजार नलकूप पर सोलर पैनल लगने थे। केंद्र ने पैसा दिया, पर लगाए नहीं गए। यूपी में लोग सोलर पैनल से घरों में एसी तक चला रहे हैं। वहीं, उत्तराखंड सोलर पैनल हाउस वाली स्कीम फेल हो गई।
बिजली चोरी के मामलों में भी गंभीर नहीं
यूपीसीएल बिजली चोरी रोकने के मामले में भी गंभीर नहीं है। अभी भी लाइन लास और विद्युत चोरी करीब 20 फीसद हो रही है। ये चोरी उद्योगों में भी हो रही है, तो छोटे स्तर पर भी। ऐसे मामलों में हुई कई जांच व कार्रवाई लंबित है। हरिद्वार में 2010 कुंभ में बिजली चोरी, देहरादून, हरिद्वार आदि के मामलों में कई दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। 2019 में जेटको कंपनी पर 62 करोड़ की वित्तीय का आरोप लगा। साथ ही जुर्माना लगाया गया था। इस कंपनी पर पावर परचेज के नाम पर अनियमितता का आरोप लगा। आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई। ना ही वसूली की गई। कंपनी को फिर से पावर परचेज का खाता दे दिया। इसी तरह बिजली चोरी व अनियमितता के कई मामलों में जांच के बाद भी विभागीय अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई।
नहीं बदले जा सकें हैं बीस फीसद पुराने मीटर
2002 में ड्राइव चली थी कि पुराने घिर्री वाले मीटर बदलकर इलेक्ट्रानिक मीटर लगेंगे। ये लगाए भी गए, लेकिन आज भी बीस फिसदी उपभोक्ताओं के मीटर बदले नहीं गए। जो बदले गए उनमें भी काफी संख्या में घर से बाहर नहीं लगाए गए। साथ ही मीटर का रिप्लेसमेंट पूरा नहीं किया गया। ऐसे में पुराने मीटरों में बिजली चोरी की संभावना ज्यादा रहती है।
उद्योगों में बढ़ाए जा सकते हैं रेट
जानकारों का कहना है कि बिजली के रेट आम उपभोक्ताओं के लिए नहीं बढ़ाने चाहिए। इंडस्ट्रीयल टैरिफ बढ़ाया जा सकता है। प्रोडक्शन करने वाली कंपनियां वैसे भी उत्पादों के रेट बढ़ाती रहती है। वहीं, प्रदेश में बिजली की कुल खपत का 50 फीसद इंडस्ट्री ले रही है। घाटे का पचास फीसद उन्हीं से वसूला जाना चाहिए। उद्योगों को फायदा पहुंचाने के नाम पर घरेलू सेक्टर के रेट बढ़ाना गलत है। इससे महंगाई बढ़ेगी आम जनता पर बोझ पड़ेगा।
उद्योगों को क्यों दी जा रही है छूट
जानकारों का कहना है कि घाटे को पूरा करने के लिए आम उपभोक्ताओं के साथ ही छोटे दुकानदारों पर ही बोझ डाला जाता है। वहीं, 50 फीसद से ज्यादा बिजली की खपत उद्योगों में ही होती है। इसके बावजूद उद्योगों पर सरकार की मेहरबानी रहती है। एक तरह बिजली की मांग बढ़ रही है, वहीं उद्योगों को पीक आवर में छूट दी गई है। यहां इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि उद्योगों के लिए पहले शाम चार बजे से पूरी रात भर पीक आवर होता था। पीक आवर के दौरान यदि उद्योगों में काम चल रहा हो तो, उस दौरान बिजली के रेट ज्यादा हो जाते हैं। उद्योगों में ज्यादातार सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक लेबर काम करती है। यानी दो घंटे पीक आवर के दौरान उद्योगों में काम चलता था। सरकार ने उद्योगों को छूट दी और पीक आवर की अवधि को घटाकर कर उसे शाम छह बजे से कर दिया। ऐसे में उद्योगों को बिजली के उपभोग के लिए राहत दी गई है। यदि पीक आवर में छूट नहीं दी गई होती को बिजली की खपत कम होती।
उद्योगों को छूट का लाभ और उपभोक्ताओं पर बोझ
वहीं, देखा जाए तो उत्तराखंड में दवाओं की फैक्ट्रियां भी काफी अधिक हैं। बाजार में दवाओं के दाम निरंतर बढ़ रहे हैं। इससे आमजन ही प्रभावित हो रहा है। वहीं, बिजली में ऐसी फैक्ट्रियां भी सरकार की छूट का फायदा उठा रही हैं। यदि हम दिसंबर 2021 के आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखंड में ऊर्जा निगम ने 9404.56 एमयू बिजली बेची है। इनमें उद्योगों को 4870.99 एमयू बिजली बेची गई है। अब खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम उपभोक्ताओं को बिजली कितनी मिल रही है और घाटा किससे पूरा होगा।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।