कोई बलशाली भी नहीं हिला पाया अंगद का पैर, बोले-मेरे पैर नहीं भगवान राम के पैर पकड़ रावण, क्या युद्ध का ऐलान

लंका को जलाने के बाद वापस लौटकर भगवान राम को हुमान सीता के बारे में समाचार देते हैं। बताते हैं कि वह प्रभु को याद करती रहती है। इसके बाद रावण को जब उनके भाई विभीषण ने समझाने का प्रयास किया तो उसने भाई को लाद मार कर लंका से निकाल दिया। इसके बाद विभीषण सीधे भगवान राम की शरण में आ जाते हैं। राम उन्हें कहते हैं कि रावण का वध कर वह उन्हें लंका का राजा बनाएंगे। इसके बाद वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लंका पर चढ़ाई का निर्णय किया जाता है। सबसे बड़ी समस्या ये आती है कि इतने विशाल समुद्र में कहां से होकर लंका पहुंचा जाए।
इस पर राम समुद्र से ही रास्ता पूछते हैं। कोई जवाब नहीं आने पर वह समुद्र पर ही वाण छोड़ने लगते हैं। तब समुद्र देवता प्रकट होते हैं और उपाय बताते हैं। वह बताते हैं कि वाहर सेना में नल और नील को ऐसा वरदान है कि वे जो भी पत्थर समुद्र में डालेंगे वह डूबेगा नहीं। इस पर समुद्र में पुल का निर्णाण किया जाता है और राम की सेना लंका क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है।
पहले तय होता है कि रावण को अंतिम बार समझाने के लिए किसी दूत को भेजा जाए। तय होता है कि अंगद विद्वान हैं, युवा हैं, इसलिए उन्हें ही रावण को समझाने के लिए भेजा जाए। इस बाली पुत्र युवराज अंगद रावण को समझाने के लिए लंका जाते हैं।
अंगद हर प्रकार से रावण को समझाने का प्रयास करते हैं। इस दौरान दोनों और से बोले गए संवाद से दर्शकों में भारी उत्साह रहा। रावण को अंगद कहते हैं कि-ऐ रावण तू सुन ले गौर से, इसी में तेरा कल्याण है, तू मांग क्षमा प्रभु राम से, जो प्यारी तूझे अपनी जाने है। वहीं रावण अंगद से कहता है कि मैं प्राक्रमी हूं। मेरे जैसा बलशाली कोई नहीं। कुछ इस तरह वह अपनी महिमा को बयां करता है-ज्यादा बक बक लगाई है रे छोकरे, तूने जाना नहीं मेरा नाम है, जानते हैं मुझे प्राक्रमी शिव भी, मैने उठाया कैलाश धाम है।
जब दोनों तरफ से संवाद होता है और कोई हल नहीं निकलता है को अंगद रावण को कहते हैं कि तुम्हारी लंका में ऐसा कोई वीर नहीं है, जो मेरा पैर भी हिला सके। तब रावण का बेटा मेघनाथ, रावण की सेना के सभी योद्धा आदि एक एक कर अंगद के पैर को उठाने उसके पास पहुंचते हैं, लेकिन कोई उसे टस से मस नहीं कर पाते। अंत में रावण खुद अंगद का पैर उठाने के लिए सिंघासन से उतरता है। इस पर अंगद अलग हट जाता है और कहता है-मेरे पैर मत पकड़ रावण, भगवान राम के पैर पकड़, तभी तेरा उद्धार होगा। साथ ही वह युद्ध का ऐलान करके चला जाता है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।