सौ साल पुराने पेड़ के कटान के विरोध में उतरे पर्यावरण प्रेमी, पीडब्ल्यूडी कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन, जानिए यहां की खासियत

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हद ही हो रही है। सड़कों के चौड़ीकरण और विकास के नाम पर हजारों पेड़ों का कटान किया जा रहा है। इसका असर ये है कि पिछले साल तो गर्मी में देहरादून का तापमान कई बार 40 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया। विभिन्न सामाजिक संगठन पेड़ों के कटान के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और कई बार वे अपने इस पुनीत कार्य के उद्देश्य में सफल भी हुए, जब सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा। अब नई मुसीबत फिर से आई को एक बार फिर से पर्यावरण प्रेमी सड़कों पर उतर गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस बार विभिन्न नागरिक समूहों ने देहरादून में राजपुर रोड स्थित राष्ट्रपति आशियाना परियोजना के तहत 100 साल पुराने तून के पेड़ को काटे जाने पर अपनी गहरी निराशा व्यक्त की। साथ ही इसके पीडब्ल्यूडी कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। इससे पहले भी पर्यावरण प्रेमियों ने कैंट रोड और सहस्त्रधारा रोड पर विभिन्न परियोजनाओं के साथ ही अन्य स्थानों पर पेड़ों के कटाने के विरोध में आंदोलन किए और सरकार को झुकाने में सफल भी हुए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस बार बारी थी देहरादून में राजपुर रोड स्थित राष्ट्रपति आशियाना की। राष्ट्रपति आशियाना का दूसरा छोर कैनाल रोड से मिलता है। करीब पचास के ज्यादा कमरों का राष्ट्रपति भवन काफी बड़े एरिया के भीतर है। इसमें पूर्व राष्ट्रपति फकरूद्दीन अली अहमद के साथ ही अन्य राष्ट्रपतियों की यादें जुड़ी हैं। क्योंकि वे यहां आए और उन्होंने इस स्थान पर विश्राम किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

देहरादून स्थित राष्ट्रपति आशियाना या उसके अंतर्गत आने वाली जमीन में कई ऐतिहासिक खंडहर हैं। खंडहर हम इसलिए कह रहे हैं कि ध्यान और मेंटिनेंस ना होने की वजह से इतिहास खंडहर में बदल रहा है। यहां गोशालाएं थी। हाथी को रखने की जगह थी। घुड़साल आज भी हैं। गर्मियों में इन घुड़साल में दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के घोड़ों को लाया जाता था। ताकि वे दिल्ली की गर्मी से बच सकें और देहरादून का तापमान उनके अनुकूल हो। इसी तरह सर्दियों में मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में प्रशिक्षण के लिए उपयोग में लाए जाने घोड़ों को यहां घुड़साल में रखा जाता है। ये परंपरा आज भी कायम है। राजपुर रोड के दूसरे छोर पर राष्ट्रपति आशियाना के खेत भी हैं। इन खेतों पर सेना के डेयरी फार्म में पलने वाली गाय के लिए चारा उगाया जाता था। इसमें शलजम के साथ ही हरी घांस यानि की चरी आदि उगाई जारी रही है। आज मुझे भी पता नहीं कि वहां की क्या स्थिति है। हां, इतना जरूर है कि राष्ट्रपति आशियाना की जमीन पर आम, लीची सहित कई फलों के सैकड़ों पेड़ हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
करते रहे खिलवाड़
राष्ट्रपति आशियाना की देखभाल के लिए दिल्ली के राष्ट्रपति भवन से एक जेसीओ को यहां तैनात किया जाता रहा है। आज की स्थिति हमें पता नहीं है यदि कोई नई व्यवस्था हो गई हो। उस जेसीओ को दफेदार के नाम से जाना जाता है। आज से तीस या 40 साल पहले जो भी दफेदार यहां आए उनमें कुछ लोगों ने इस इलाके के कई पेड़ों को कटवा दिया। या कहें कि बेच खाया। कुछ ने तो जंगल को साफ करने का अभियान चलाया और पेड़ काटने के बाद लकड़ी का चिरान करने के बाद फर्नीचर बनाकर अपने तबादले के बाद साथ ले गए। ये सब जांच का विषय है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
की गई मांग, लेकिन किया नजर अंदाज
पांच मई, 2025 को पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता को देहरादून के वरिष्ठ नागरियों और पर्यावरण प्रेमियों ने एक औपचारिक पत्र सौंपा। इसमें राष्ट्रपति आशियाना में पारिस्थितिकीय खजाने को संरक्षित करने की मांग की। इसके बावजूद इस मांग को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। यहां की खासियत पुराने पेड़ों से है। ये पेड़ राष्ट्रपति आशायाना के साथ ही एनआईवीएच परिसर में भी हैं। इनमें तून के पेड़, आम, लीची के पेड़, चीड़ के पेड़ के साथ ही लिपस्टिक के पेड़ शामिल हैं। ये सब पेड़ विशालकाय हो चुके हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पर्यावरण प्रेमियों का ये है तर्क
पर्यावरण प्रेमियों का तर्क है कि उक्त क्षेत्र में 300 इंच से ज़्यादा की परिधि वाला तून का पेड़ देहरादून के पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। ये पेड़ पक्षियों, कीड़ों और मधुमक्खियों का पोषण करता था। वैसे मेरी याददाश्त के मुताबिक, ऐसे पेड़ों में बबूल के पेड़ भी हैं। साथ ही रीठे के पेड़ भी। इन पेड़ों में तोते भी अपना ठिकाना बनाते रहे हैं। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि ये पेड़ प्राकृतिक वायु शोधक के रूप में काम करते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये दिया सुझाव
पर्यावरण प्रेमी संस्था और सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून ने सुझाव दिया कि योजनाबद्ध फुट-ओवर ब्रिज की चौड़ाई 4 मीटर से घटाकर 2 मीटर करने और पेड़ को बचाने के लिए वैकल्पिक डिज़ाइन तलाशने पर काम होना चाहिए। उन्होंने सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए वास्तुकारों के साथ सहयोग करने की भी पेशकश की। हालांकि, इन सुझावों की अनदेखी की गई और पेड़ को गिरा दिया गया, जिससे शहर की हरी-भरी विरासत में एक खालीपन आ गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पुराने पेड़ को काटने से हुए निराश
पर्यावरण प्रेमी तून के पुराने पेड़ को गिराने को देहरादून के लिए एक दुखद क्षति के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि इस तरह के पेड़ केवल परिदृश्य का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे जीवित विरासत हैं। ये जलवायु को नियंत्रित करते हैं। वायु गुणवत्ता में सुधार करते हैं और जैव विविधता को बनाए रखते हैं। खराब योजनाबद्ध विकास के कारण उन्हें खोना हमारे शहर और इसकी भावी पीढ़ियों के लिए एक अन्याय है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उनका कहना है कि इस राजसी पेड़ को हटाकर एक बड़े फुट ओवर ब्रिज को प्राथमिकता देने का निर्णय निर्माण में खराब सौंदर्य निर्णय को दर्शाता है। जो देहरादून की प्राकृतिक सुंदरता और ऐसे पेड़ों द्वारा शहरी स्थानों में लाए जाने वाले सामंजस्यपूर्ण संतुलन की उपेक्षा करता है। इसके अलावा, यह निराशाजनक है कि पर्यटन की जरूरतों को दून के नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण से अधिक महत्व दिया गया है। इस राजसी पेड़ का गिरना देहरादून के पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ता है और अनियंत्रित शहरी विकास के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
विभिन्न समूहों के नागरिकों ने भविष्य में इस तरह के नुकसान को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की। इसमें सख्त वृक्ष संरक्षण कानून, विकास परियोजनाओं के लिए अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव आकलन और निर्णय लेने में अधिक सामुदायिक भागीदारी शामिल है। विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वालों में डॉ रवि चोपड़ा, कमला पंत, विजय भट्ट, जगमोहन मंदिरत्ता, त्रिलोचन भट्ट, इरा सिंह, राघवेंद्र न्यासधाम, हिमांशु अरोड़ा, रुचि एस राव, अनीश लाल, इरा चौहान , रश्मि सहगल थे।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।