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March 13, 2025

एनकाउंटर 2- तू डाल-डाल मैं पात-पात, कितना भी हो शातिर, होता है बुरा अंत

कई बार पुलिस के लिए सिरदर्द बने बदमाश और पुलिस के बीच शह और मात का खेल चलता रहता है। यह खेल तब तक जारी रहता है, जब तक बदमाश की मौत नहीं हो जाती।

कई बार पुलिस के लिए सिरदर्द बने बदमाश और पुलिस के बीच शह और मात का खेल चलता रहता है। यह खेल तब तक जारी रहता है, जब तक बदमाश की मौत नहीं हो जाती। या फिर बदमाश की जिंदगी में नया मोड़ आता है और वह बदमाशी छोड़ देता है। अमूमन किसी शहर के लोगों के लिए मुसीबत बने बदमाशों की जिंदगी ज्यादा लंबी नहीं होती। या तो वे आपसी रंजिश में मारे जाते हैं, या फिर पुलिस की गोली का शिकार हो जाते हैं। इसके बावजूद भी वे इतिहास से सबक नहीं लेते और जब तक जिंदा रहते हैं, तब तक समाज के लिए मुसीबत बने रहते हैं। यहां दो बदमाशों की कहानी बता रहा हूं, लेकिन नाम बदलकर। हो सकता है कहानी में कुछ स्थान व घटनाएं काल्पनिक हों, इसलिए इसे सिर्फ नसीहत समझकर पढ़ा जाना चाहिए कि एक दुर्दांत अपराधी का हमेशा बुरा अंत ही होता है।
रीतू व बिरजू की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जो शहर के लिए मुसीबत बन गए थे और पुलिस के लिए चुनौती। बचपन से ही स्कूली दोस्त रीतू व बिरजू दोनों ही काफी बिगड़े हुए थे। परिजन स्कूल पढ़ने के लिए भेजते, लेकिन दोनों ही बच्चों के बैग से पैन, कापी व अन्य सामान चुराने में भी पीछे नहीं रहते। घर से स्कूल को निकलने के बावजूद रास्ते में बंक मारने की आदत भी उनमें पढ़ रही थी। आठवीं तक पहुंचते ही दोनों स्कूल में बदनाम हो चुके थे। साथ ही आसपड़ोस के घर से भी मौका देखकर सामान पर हाथ साफ कर देते। या यूं कहें कि चोरी में दोनों माहिर होते जा रहे थे।
देहरादून में वे जिस स्कूल में पढ़ रहे थे, वहां आठवीं के दौरान ही दोनों को स्कूल से निकाल दिया गया। इसके बाद दोनों आवारागर्दी करने लगे। साथ ही चोरी करते और पकड़े भी जाते। जैसे-जैसे दोनों किशोर अवस्था में पहुंचे, वैसे-वैसे उनके चोरी का ग्राफ बढ़ता चला गया। खाली घर में सेंधमारी करना उनकी आदत बन गई। कई बार पुलिस ने पकड़ा भी, लेकिन परिजन पुलिस की मुट्ठी गरम कर उन्हें छुड़ा लाते।
बीड़ी, सिगरेट, शराब के आदी हो रहे इन किशोरों ने एक रात सेना के किसी रिटायर्ड अफसर के घर धावा बोला। घर में कोई नहीं था। नकदी, जेवर में हाथ साफ करने के दौरान उन्हें एक चीज और मिली, जिसे वे अपने साथ ले गए। यह वस्तु थी 32 बोर की रिवाल्वर। रिवाल्वर हाथ लगते ही रीतू और बिरजू ने समझा कि सारी दुनियां की ताकत उनके हाथ आ गई। जिस फौजी ने देश सेवा की कसमें खाई और कई मोर्चों में अग्रणीय रहा, उसके घर से रिवाल्वर चोरी करने के बाद रीतू व बिरजू ने राह चलते एक स्कूटर सवार को रोका। कोई दुश्मनी न होने पर भी उन्होंने स्कूटर सवार युवक को गोली मार दी और स्कूटर छीन कर भाग गए। यहीं से दोनों की गिनती खुंखार बदमाशों में होने लगी।
पुलिस दोनों को पकड़ने को जाल बिछाती, लेकिन वे वारदात करने के बाद गायब हो जाते। चोरी के लिए देहरादून के राजपुर क्षेत्र में तो एक कोठी में धावा बोलकर उन्होंने घर में बुजुर्ग दंपत्ती को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद किसी की हत्या करना उनके लिए मामूली बात हो गई। इस हत्या के बाद दोनों शहर से गायब हो गए। पुलिस देहरादून व आसपास के क्षेत्र में इन्हें तलाश रही थी, लेकिन वे गढ़वाल के उत्तरकाशी जनपद के दुरस्थ क्षेत्र पुरोला के आसपास जाकर वे छिप गए।
ग्रामीणों को उन्होंने बताया कि वे व्यापारी हैं। जब वे किसी दुकान से बीस रुपये का सामान खरीदते और छुट्टे पैसे न होने पर बाकी दुकानदार के पास ही छोड जाते, तो लोगों को उन पर शक हुआ। इस पर किसी ने पुलिस को सूचना दी और पुलिस ने जब उन्हें पकड़ा, तो पता चला कि वे वही शातिर बदमाश हैं, जिन्हें दो साल से दून पुलिस तलाश कर रही है। जेल में रहने के दौरान ही रीतू और बिरजू की कई अन्य अपराधियों से दोस्ती हुई और उन्होंने जेल मे ही गिरोह गठित कर दिया।
करीब दस साल तक रीतू व बिरजू गिरोह ने देहरादून में आतंक मचा कर रखा। उन्होंने उस वकील तक को नहीं छोड़ा, जो हर बार अपने कानूनी दांव पेंच से उन्हें अदालत से दोषमुक्त करा देता था। एक सुबह आत्मसमर्पण व जमानत कराने के बहाने वकील साहब के घर पहुंचे। वकील ने पहले अपनी फीस मांगी, तो उन्होंने वकील के घर के सभी सदस्यों को बंधक बनाकर घर का सारा कीमती सामान ही लूट लिया। इनकी खासियत यह थी कि वारदात करने के बाद गिरोह के सदस्य देहरादून से कहीं दूर फरार हो जाते। रीतू और बिरजू एक साथ निकलते और अन्य सदस्य अलग-अलग ग्रुप में भागते। जब पुलिस का दबाव ज्यादा बढ़ता तो वे चुपके से अदालत में आत्मसमर्पण कर देते। कई बार दूसरे शहरों में चल रहे पुराने मामले में जमानत तुड़वा देते और जेल के भीतर जाकर खुद को पुलिस से बचने का सुरक्षित उपाय तलाश लेते। इस लूट के दौरान भी ऐसा ही हुआ। इन बदमाशों का रीतू और बिरजू तो फरार हो गए, लेकिन इनका एक ग्रुप जंगलों में पुलिस से घिर गया और उनमें से एक मारा गया।
करीब दस साल से पुलिस की नाक में दम कर रहे इन बदमाशों को मुठभेड़ में मार गिराने की पुलिस की हर चाल विफल हो जाती। पुलिस के पकड़ते ही मानवाधिकार आयोग को इसकी शिकायत पहुंच जाती कि कहीं अवैध हिरासत में रखकर पुलिस एनकाउंटर न कर दे। एक भरी दोपहर को देहरादून में एक कोठी की चाहरदीवारी फांद कर कुछ बदमाश भीतर घुसे। घर में महिलाएं व बच्चे थे। हथियारों की नोक पर उन्होंने सभी सदस्यों को डराधमका कर जमकर लूटपाट की। फिर अपना काम पूरा करने के बाद भागने लगे। दीवार फांदते हुए एक बदमाश गमले में उलझ गया और जमीन पर गिर पड़ा। उसके पैर पर चोट लग गई थी। तब तक उसके साथी आगे निकल चुके थे।
जिस घर में डकैती पड़ी थी, उस घर की एक सहासी महिला ने उस बदमाश को दबोच लिया और शोर मचा दिया। ऐसे में भीड़ आ गई और लोगों ने पुलिस को भी फोन कर दिया। उन दिनों रीतू व बिरजू दूसरे शहरों में ही ज्यादा वारदात कर रहे थे। दून में उन पुलिस थानेदारों के भी जनपद के बाहर तबादले हो चुके थे, जो उन्हें पहचानते थे। जब संबंधित थाने का थानेदार बदमाश को पकड़ने आया तो वह भी उसे कोई छोटा-मोटा चोर समझ रहा था। इसी बीच दूसरे थाने का एक थानेदार भी वहीं पहुंच गया। वह बदमाश को पहचान गया, लेकिन उसने अपने साथियों को नहीं बताया। इस थानेदार ने अधिकारियों से कहा कि पकड़े गए बदमाश को पूछताछ के लिए वह अपने साथ ले जा रहा है। पूछताछ के बाद संबंधित थाने को सौंप देगा।
कुछ घंटे अपने साथ रखने के बाद वह बदमाश को जंगल में ले गया और उसे गोली मार दी। फिर पुलिस की कहानी कुछ ऐसे बनी कि एक घर से लूटपाट की सूचना पर पुलिस ने चारोंतरफ नाकेबंदी कर दी। मालदेवता के जंगलों की तरफ एक संदिग्ध कार को रुकने का इशारा किया तो कार की गति तेज हो गई। इस पर पुलिस ने पीछा किया। बदमाश कार से उतरकर जंगल की तरफ भागे और पुलिस पर फायर किया। आत्मरक्षा में पुलिस ने गोलियां चलाई। एक बदमाश ढेर हो गया, जो कुख्यात रीतू था। अन्य बदमाशों की तलाश में पुलिस कांबिंग कर रही है। अब मौत के बाद देखिए। परिजनों ने शव लेने से इंकार कर दिया। कुछ दिन तक शव को मॉर्चरी में रखा गया। शव में कीड़े तक पड़ गए। तब जाकर बदमाश का पोस्टरमार्टम किया गया।
रीतू को निपटाने के बाद पुलिस ने बिरजू को पकड़ने का जाल फैलाया, लेकिन तीन माह बाद पुलिस को पता चला कि वह तो पुलिस की नजरों से बचने के लिए दिल्ली की जेल में है। पुराने मामले में जमानत तुड़वाकर उसने खुद को जेल की चाहरदीवारी में सुरक्षित कर लिया था। अब पुलिस कई मामलों में बिरजू को पूछताछ के लिए लाना चाहती ती। इसके लिए न्यायालय से वारंट बी जारी करवाया गया।
दिल्ली जेल से वारंट बी के आधार पर पुलिस बिरजू को लेकर दून के लिए चली। रास्ते भर मे बिरजू पूरे आत्मविश्वास के साथ था कि उसका कुछ नहीं होगा। कुछ दिन पुलिस पूछताछ करेगी और फिर वह जेल में सुरक्षित पहुंच जाएगा। दून पहुंचते ही एकांत में पुलिस की कार को दूसरी कार ने ओवरटेक किया। आगे जाकर पुलिस की गाड़ी के आगे दूसरी कार खड़ी कर दी गई। तेजी से दूसरी कार से बदमाश निकले और हथियारों की नोक पर पुलिस को घेर लिया। बदमाशों ने बिरजू को पुलिस से छुड़ाया और शहर की सीमा से बाहर निकलने के लिए हरिद्वार रोड की तरफ कार दौड़ा दी।
फिर वही हुआ जो पुलिस की कहानी में होता है। बदमाशों की कार का पुलिस ने पीछा किया। एक नदी के पास कार छोड़कर बदमाश भागे। दोनों तरफ से फायरिंग हुई। मुठभेढ़ में बिरजू मारा गया। अन्य बदमाश फरार हो गए। सब कुछ फिल्मी अंदाज में हुआ। पुलिस के चुंगल से बिरजू को छुड़ाने वाले बदमाश भी पुलिसवाले ही थे। जैसे ही उन्होंने बिरजू को अपनी गाड़ी में बैठाया, तो वह भी समझ गया कि उसका अंत आ गया। मौत सामने देखकर वह पहले सभी के पैरों पर लौटने लगा। फिर उसने यही कहा कि मैने जो भी बुरा किया, भगवान मुझे माफ कर दे। इसके बाद एनकाउंटर होने तक वह मौन ही रहा। (समाप्त)
पढ़ेंः एनकाउंटर-1, पत्रकार की सक्रियता के चलते नहीं हो पाई फर्जी मुठभेड़
भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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