तस्वीरें हैं गवाहः कोरोना का टीका बुजुर्गों का फूला रहा दम, घोड़े पर सवार होकर लड़ने जा रहे जंग, 12 किमी तक चल रहे पैदल

उत्तराखंड में तो सब कुछ अच्छा है। दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्र में सड़कें इसलिए नहीं हैं कि लोग पैदल चलना भूल जाएंगे। ऐसे में स्वस्थ कैसे रहेंगे। अब बुजुर्गों को ही देख लीजिए। कोरोना का टीका लगाने के लिए उन्हें सात से 12 किलोमीटर की दूरी पैदल नापनी पड़ रही है। प्रशासन का फरमान और बुजुर्गों की आफत। इस दूरी को नापने में तो बुजुर्गों का दम वैसे ही फूल जाएगा। फिर क्या गारंटी है कि टीका लगाने के बाद स्वास्थ्य सामान्य रहे। जो चल सकते हैं वे चलकर जा रहे हैं। जो नहीं चल सकते वे घोड़ों और खच्चरों पर बैठ कर जा रहे हैं, क्योंकि कोरोना से जंग तो लड़नी है।
मामला उत्तरकाशी जिले में सर बडियार पट्टी के अंतर्गत आने वाले गांवों का है। यहां पक्की सड़क नहीं है। ऐसे में सड़क तक पहुंचने के लिए कच्चे रास्ते, पगडंडी का सफर, नदी नालों को पार करना, जंगल से होकर गुजरना, ये ही ग्रामीणों की नियति है। ग्रामीण बताते हैं कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से बताया गया था कि 30 मार्च से 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों को कोरोना के टीके लगेंगे।
पहले टीकाकरण के सर क्षेत्र के गांव, लेवटाड़ी और किमडार के लिए सर बडियार उपकेंद्र में टीकारण सेंटर बनाया गया था। कंसलौं, छानिका, डिंगाड़ी, पौंटी, गौल गांव के लिए पौंटी में टीकाकरण केंद्र बनाया गया। इन दोनों केंद्रों पर 30 मार्च को टीकाकरण होना था। ऐन वक्त पहले स्वास्थ्य विभाग ने सूचना दी कि टीकारण के लिए सरनौल गांव में पहुंचे। ऐसे में इन गांवों के लोगों को सात से 12 किलोमीटर की दूरी टीकाकरण के लिए नापनी पड़ रही है। सर बडियार क्षेत्र के आठ गावों के लोगों को तो बेहद मुश्किल हो गई है।
सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश रावत ने बताया कि पहले से वैक्सीनेशन को 8 गांव के लिए पौंटी व सर गांव प्राथमिक विद्यालय में केंद्र बनाया गया। अब आनन-फानन दो दिन पहले अचानक नौ किमी दूर सरनोल गांव में टीकाकरण के लिए पहुंचने की सूचना दी गई। इस पर लोगों में भारी आक्रोश है। असमर्थ लोगों को खच्चर अथवा पीठ में उठाकर सरनोल लाना पड़ रहा है। वहीं, बीमार लोग वैक्सीन के लिए नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग का तर्क है कि सड़क मार्ग पर टीकाकरण केंद्र इसलिए बनाया गया है कि यदि कोई स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत आए तो समीपवर्ती अस्पताल पहुंचाया जा सके।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
दूर दराज गावों में बहुत कठिनाई है