Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 22, 2024

शिक्षा छात्रों का मौलिक अधिकार, इससे नहीं किया जा सकता है वंचितः डॉ. सुनील अग्रवाल

एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंसड इंस्टीट्यूटस उत्तराखंड के अध्यक्ष और ऑल इंडिया अनऐडेड विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने एक बार फिर से नई शिक्षा नीति के तहत उत्तराखंड के छात्रों को हो रहे नुकसान पर व्यवस्थाओं पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि शिक्षा हर छात्र का मौलिक अधिकार है। इससे किसी भी छात्र को वंचित नहीं किया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एक समाचार पत्र में गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति के हवाले से छपी खबर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के चलते कई महाविद्यालयों में इस बार आधे से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं। इसके बावजूद उत्तराखंड में छात्रों के हित में कोई ठोस निर्णय नहीं लिए जा रहे हैं। ऐसे में छात्रों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने बताया सीयूईटी के संबंध में 28 अगस्त को ही दिल्ली हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा एवं जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ के समक्ष दिल्ली यूनिवर्सिटी के एलएलबी प्रवेश की एक अधिसूचना पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें केंद्र सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल ने यह स्वीकार किया की सीयूईटी सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए बाध्यता नहीं है। प्रवेश में विश्वविद्यालय को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है। जनहित याचिका में कहा गया था कि सीयूईटी से एडमिशन की बाध्यता से संविधान के आर्टिकल 14 समानता के अधिकार एवं संविधान के आर्टिकल 21 शिक्षा का अधिकार का उल्लंघन होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कोर्ट मे केंद्र सरकार की स्वीकारोक्ति अपने आप में सिद्ध करती है कि विश्वविद्यालय को प्रवेश के संबंध में पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है और सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय इससे प्रवेश देने के लिए बाध्य नहीं है। इसके साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा यूजीसी को भेजे गए15 मार्च 2022 के पत्र द्वारा 10 केंद्रीय विश्वविद्यालयों असम यूनिवर्सिटी, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी, मिजोरम यूनिवर्सिटी, तेजपुर यूनिवर्सिटी, मणिपुर यूनिवर्सिटी, सिक्किम यूनिवर्सिटी, त्रिपुरा यूनिवर्सिटी, राजीव गांधी यूनिवर्सिटी एन ईएच यू यूनिवर्सिटी, नागालैंड यूनिवर्सिटी को जागरूकता और साधनों के अभाव के कारण सीयूईटी की बाध्यता से मुक्त रखने के लिए कहा गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने बताया कि उक्त पत्र में केंद्र सरकार ने स्वयं ही यूजीसी को इन विश्वविद्यालय को सीयूईटी की बाध्यता से मुक्त रखने को कहा है। इसके बाद से ही केंद्र सरकार के पत्र में उल्लिखित 10 विश्वविद्यालयों में से कुछ विश्वविद्यालय बिना सीयूईटी के ही छात्रों को प्रवेश दे रहे हैं। अगर कोई छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय में बिना सीयूईटी के प्रवेश के लिए सर्च करता है तो उसे दिखाई देता है कि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय सहित यह 10 विश्वविद्यालय बिना सीयूईटी के छात्रों को प्रवेश दे सकते हैं। ऐसे में गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति का बयान भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

डॉ. सुनील अग्रवाल के मुताबिक, एक तरफ केंद्र सरकार यह मानती है कि विश्वविद्यालय को प्रवेश में पूर्ण स्वायत्तता है। कोर्ट में भी इसे स्वीकार करती है। यूजीसी को पत्र भी भेजती है। दूसरी तरफ गढ़वाल विश्वविद्यालय कि कुलपति कहती हैं कि केंद्र सरकार और यूजीसी ने बिना सीयूईटी के प्रवेश को मना कर दिया है। छात्रों से ही कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं। इसलिए छात्रों के शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन संविधान का उल्लंघन है।कुलपति से यह उम्मीद है कि वह छात्र हित में निर्णय लेंगी।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *