अफगानिस्तान में आया भूकंप, उत्तराखंड से लेकर दिल्ली एनसीआर तक मची अफरा तफरी
मंगलवार की देर रात करीब दस बजकर 17 मिनट पर भारत में दिल्ली, एनसीआर, उत्तराखंड, यूपी, जम्मू कश्मीर, पंजाब सहित कई राज्यों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। भूकंप के झटकों से दिल्ली में लोग घरों से बाहर निकल गए। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के मुताबिक, भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान हिंदुकुश रीजन में था। इसका आक्षांस 36.09 और देशांतर 71.35 था। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 6.6 थी और गहराई जमीन के 156 किलोमीटर भीतर थी। भूकंप के झटके भारत के साथ पाकिस्तान, तजाकिस्तान, चीन में भी महसूस किए गए। खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिल्ली-एनसीआर में मंगलवार रात अफगानिस्तान में आए झटकों के दो मिनट बाद 10 बजकर 19 मिनट पर तेज भूकंप महसूस किए गए। झटके इतने तेज थे कि लोग घबराकर अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। हर जगह अफरा-तफरी का माहौल रहा। घरों में बंद पंखे हिलने लगे। उत्तराखंड में भी देहरादून, हरिद्वार के साथ यूपी के मेरठ और सहारनपुर आदि में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। हरियाणा के गुरुग्राम में भूकंप के झटके इतने तेज थे कि मेट्रो को भी रोक दिया गया। वहीं यूपी के गाजियाबाद में ये झटके इतने तेज थे कि लोग अपने घरों से बाहर निकल आए।खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड बेहद संवेदनशील है। राज्य के अति संवेदनशील जोन पांच की बात करें इसमें रुद्रप्रयाग (अधिकांश भाग), बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जिले आते हैं। ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी व अल्मोड़ा जोन चार में हैं और देहरादून व टिहरी दोनों जोन में आते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तराखंड में आ चुके हैं दो बड़े भूकंप
उत्तराखंड के उत्तरकाशी और चमोली जिले में दो बड़े भूकंप आ चुके हैं। इससे भूकंप के हलके झटके से ही लोग दहशत में आ जाते हैं। उत्तरकाशी में 20 अक्टूबर 1991 को 6.6 तीव्रता का भूकंप आया था। उस समय हजारों लोग मारे गए थे। साथ ही संपत्ति को भी अत्यधिक क्षति हुई थी। इसके बाद 29 मार्च 1999 में चमोली जिले में उत्तराखंड का दूसरा बड़ा भूकंप आया। भारत के उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) राज्य में आया यह भूकंप हिमालय की तलहटियों में 90 वर्षों का सबसे शक्तिशाली भूकंप था। इस भूकंप में 103 लोग मारे गए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हैं भूकंप के कारण
भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले चार सालों में मेन सेंट्रल थ्रस्ट पर 71 से ज्यादा बार भूकंप के झटके आ चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह क्षेत्र कितना सक्रिय है। उनका कहना है कि छोटे-छोटे भूकंप के झटके बड़े झटकों की संभावनाओं को रोक देते है। मेन सेंट्रल थ्रस्ट के रूप में जाने जानी वाली दरार 2500 किमी लंबी और कई भागों में विभाजित है। इंडियन और एशियन प्लेट के बीच दबाव टकराने और घर्षण से भूकंप की घटना होती है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।