शनिवार की सुबह कांप उठी उत्तराखंड की धरती, दहशत में आए लोग, भूकंप के तेज झटकों का चमोली जिला रहा केंद्र
उत्तराखंड में शनिवार की सुबह उत्तराखंड की धरती कांप उठी। प्रदेश के कई जिलों में भूकंप की झटके महसूस किए गए। भूकंप के झटके काफी तेज थे, इससे लोग घरों से भी बाहर निकल गए।
उत्तराखंड में शनिवार की सुबह उत्तराखंड की धरती कांप उठी। प्रदेश के कई जिलों में भूकंप की झटके महसूस किए गए। भूकंप के झटके काफी तेज थे, इससे लोग घरों से भी बाहर निकल गए। भूकंप का केंद्र चमोली जिले के गोपेश्वर मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूरी पर जमीन के भीतर करीब पांच किलोमीटर नीचे था। यही नहीं इससे प्रभावित इलाकों में भारत नेपाल और चीन हैं। सुबह करीब 5 बजकर 58 मिनट पर ये झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 4.7 मैग्नीट्यूड रही। भूकंप के तेज झटके चमोली, पौड़ी, अल्मोड़ा आदि जिलों में महसूस किए गए। हालांकि अभी भूकंप से नुकसान की कोई सूचना नहीं है। चमोली जिले में वर्ष 1999 में बड़ा भूकंप आ चुका है। ऐसे में यहां के लोग भूकंप से हल्के झटकों से भी दहशत में आ जाते हैं।भूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड संवेदनशील
भूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड बेहद संवेदनशील है। राज्य के अति संवेदनशील जोन पांच की बात करें इसमें रुद्रप्रयाग (अधिकांश भाग), बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जिले आते हैं। ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी व अल्मोड़ा जोन चार में हैं और देहरादून व टिहरी दोनों जोन में आते हैं।
उत्तराखंड में आ चुके हैं दो बड़े भूकंप
उत्तराखंड के उत्तरकाशी और चमोली जिले में दो बड़े भूकंप आ चुके हैं। इससे भूकंप के हलके झटके से ही लोग दहशत में आ जाते हैं। उत्तरकाशी में 20 अक्टूबर 1991 को 6.6 तीव्रता का भूकंप आया था। उस समय हजारों लोग मारे गए थे। साथ ही संपत्ति को भी अत्यधिक क्षति हुई थी। इसके बाद 29 मार्च 1999 में चमोली जिले में उत्तराखंड का दूसरा बड़ा भूकंप आया। भारत के उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) राज्य में आया यह भूकंप हिमालय की तलहटियों में 90 वर्षों का सबसे शक्तिशाली भूकंप था। इस भूकंप में 103 लोग मारे गए थे।
ये हैं भूकंप के कारण
भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले चार सालों में मेन सेंट्रल थ्रस्ट पर 71 से ज्यादा बार भूकंप के झटके आ चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह क्षेत्र कितना सक्रिय है। उनका कहना है कि छोटे-छोटे भूकंप के झटके बड़े झटकों की संभावनाओं को रोक देते है। मेन सेंट्रल थ्रस्ट के रूप में जाने जानी वाली दरार 2500 किमी लंबी और कई भागों में विभाजित है। इंडियन और एशियन प्लेट के बीच दबाव टकराने और घर्षण से भूकंप की घटना होती है।





