Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 21, 2024

पूर्व की ओर झुक रही है धरती, भारत और अमेरिका जिम्मेदार, ये है वजह

एक नए अध्ययन के अनुसार हमारी धरती पूर्व की ओर झुक रही है। इसके लिए इंसान ही जिम्मेदार है। लोगों ने जमीन से भारी मात्रा में पानी को निकाल कर इसे कहीं और ले जाकर छोड़ दिया है। इसके कारण पृथ्वी 1993 से 2010 के बीच लगभग 80 सेंटीमीटर या 31.5 इंच पूर्व की ओर झुक गई है। इंटरनेशनल रिसर्चर्स के एक ग्रुप ने पाया है कि इंसानों द्वारा ग्राउंड वॉटर की बेतहाशा पंपिंग से हमारी पृथ्‍वी दो दशकों से भी कम वक्‍त में 4.36 सेंटीमीटर/प्रतिवर्ष की स्‍पीड से लगभग 80 सेंटीमीटर पूर्व की ओर झुक गई है। जलवायु मॉडल के आधार पर, वैज्ञानिकों ने पहले अनुमान लगाया था कि लोगों ने 2,150 गीगाटन भूजल निकाल लिया था, जो कि 1993 से 2010 तक समुद्र के स्तर में छह मिलीमीटर यानी 0.24 इंच से अधिक वृद्धि के बराबर था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये है अध्ययन
अध्ययन के अनुसार पृथ्वी घूमने वाले ध्रुव के साथ बनी हुई है, जो कि वह बिंदु है, जिसके चारों ओर यह घूमती है। यह ध्रुवीय गति नामक एक प्रक्रिया के दौरान चलती है, जो तब होती है जब पृथ्वी के घूर्णी ध्रुव की स्थिति क्रस्ट के सापेक्ष अलग होती है। ग्रह पर पानी का वितरण इसे प्रभावित करता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि पानी की भारी मात्रा को कैसे वितरित किया जाता है। पृथ्वी थोड़ा अलग तरीके से घूमती है, क्योंकि इसके चारों ओर पानी घूमता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

भारत-अमेरिका हैं सबसे बड़े गुनहगार
जियोफ‍िजिकल रिसर्च लेटर्स में पब्लिश इस स्‍टडी में बताया गया है कि ग्राउंड वॉटर का सबसे ज्‍यादा दोहन अमेरिका के पश्चिमी इलाके और उत्तर-पश्चिमी भारत में हुआ है। यहां ना सिर्फ जमीन से पानी को निकाला गया है, बल्कि रिडिस्ट्रिब्‍यूट किया गया है। इससे पृथ्‍वी के रोटेशनल पोल के बहाव पर असर हुआ है। भूजल का स्थान इस बात के लिए मायने रखता है कि यह ध्रुवीय बहाव को कितना बदल सकता है। मध्य अक्षांशों से पानी के दोबारा विभाजन का घूमने वाले ध्रुव पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। अध्ययन की अवधि के दौरान मध्य अक्षांश पर पश्चिमी उत्तरी अमेरिका और उत्तर-पश्चिमी भारत में सबसे अधिक पानी का पुनर्वितरण किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

समुद्र में बहाया जा रहा पानी
वैज्ञानिकों का मानना है कि जमीन से निकालकर जो पानी इस्‍तेमाल किया जाता है और रिडिस्ट्रिब्‍यूट होता है, वह आखिर में समुद्र में ही पहुंचता है। फर्क इतना है कि वो पानी साफ नहीं गंदा होता है और हमारी नदियों को भी प्रदूषित करता है। अध्ययन की अगुवाई करने वाले सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी के एक भूभौतिकीविद् की-वेन सेओ ने कहा कि पृथ्वी का घूर्णन ध्रुव वास्तव में बहुत कुछ बदलता है। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु से संबंधित कारणों में, भूजल का दोबारा विभाजन वास्तव में घूर्णी ध्रुव के बहाव पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पानी की गतिविधि में बदलावों को किया दर्ज
पृथ्वी के घूमने की स्थिति बदलने की पानी की क्षमता की खोज 2016 में की गई थी। अब तक, इन घूमने वाले बदलावों में भूजल के अहम योगदान की खोज नहीं की गई थी। नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के घूमने वाले ध्रुव के बहाव और पानी की गतिविधि में देखे गए बदलावों को दर्ज किया। पहले, केवल बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों पर इसे लागू किया जाता था। अब भूजल के दोबारा विभाजन के विभिन्न परिदृश्यों को भी इसमें जोड़ा गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

समुद्र के स्तर में वृद्धि का अहम स्रोत
शोधकर्ताओं द्वारा भूजल के दोबारा विभाजन के लिए 2150 गीगाटन को शामिल किया गया, इसके बाद मॉडल में उन चीजों को शामिल किया गया जो केवल देखे गए ध्रुवीय बहाव से मेल खाता था। इसके बिना, मॉडल प्रति वर्ष 78.5 सेंटीमीटर यानी 31 इंच, या 4.3 सेंटीमीटर यानी 1.7 इंच बहाव से दूर था। सेओ ने कहा मैं अजीब तरीके से घूमने के इस अस्पष्ट कारण को देखकर बहुत खुश हूं। वहीं दूसरी ओर, पृथ्वी के निवासी और एक पिता के रूप में, मैं यह देखकर चिंतित और हैरान हूं कि भूजल को निकालने से समुद्र के स्तर में वृद्धि का यह एक अहम स्रोत होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इन उपायों से किया जा सकता है बदलाव
सेओ ने कहा कि देशों द्वारा भूजल की कमी की दर को धीमा करने का प्रयास, विशेष रूप से उन संवेदनशील क्षेत्रों में, सैद्धांतिक रूप से बहाव में परिवर्तन को बदल सकता है, लेकिन केवल तभी जब इस तरह के संरक्षण से संबंधित काम दशकों तक चलते रहें। घूर्णी ध्रुव सामान्य रूप से लगभग एक वर्ष के भीतर कई मीटर तक बदल जाता है। इसलिए भूजल निकालने के कारण होने वाले परिवर्तनों से मौसम बदलने का खतरा नहीं होता है, लेकिन भूगर्भिक समय आधार पर, ध्रुवीय बहाव का जलवायु पर प्रभाव पड़ सकता है। इस शोध का अगला चरण अतीत की ओर देखना हो सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ग्राउंड वॉटर की वजह से बढ़ा समुद्र का स्‍तर
इससे पहले वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया गया था कि इंसानों ने 1993 से 2010 के बीच महज 17 साल में 2150 गीगाटन ग्राउंट वॉटर निकाला हो सकता है। यह समुद्र के जलस्‍तर में कम से कम 6 मिलीमीटर की बढ़ोतरी के बराबर है। हालांकि इस अनुमान की पुष्टि करना कठिन है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

तालाबों-झीलों को पुनर्जीवित करने में दिलचस्‍पी नहीं
दुनियाभर में जिस तेजी से ग्राउंडवॉटर का इस्‍तेमाल बढ़ा है, उससे पता चलता है कि तालाबों और झीलों को पुनर्जीवित करने में कोई भी पक्ष दिलचस्‍पी नहीं दिखा रहा। शहरों में तो पोखरों को पाटकर वहां कॉलोनियां बसा दी गई हैं। बारिश के पानी को सहेजने का काम भी बड़े पैमाने पर नहीं हो रहा, जिससे भूजल का स्‍तर लगातार कम हो रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

क्‍या हैं इस रिसर्च के मायने
इस रिसर्च ने भविष्‍य के लिए नए दरवाजे खोले हैं। आने वाले वर्षों में वैज्ञानिकों के लिए यह समझना और आसान होगा कि भूजल के दोहन के कारण पृथ्‍वी किस तरह से रिएक्‍ट कर रही है। अभी तक पृथ्‍वी के 80 सेंटीमीटर पूर्व की ओर झुकने का पता चला है, क्‍या यह झुकाव भविष्‍य में बढ़ सकता है? ऐसे कई सवालों के जवाब आने वाले वक्‍त में सामने आ सकते हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *