नवरात्र में दुर्गा सप्तशती पाठ का है विशेष महत्व, बता रहे हैं डॉ. आचार्य सुशांत राज
17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र आरंभ हो गए हैं। नवरात्रि में मां को मनाने के लिए भक्त पूरे विधि-विधान से मां की पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं। मां की अनुकंपा पाने के लिए वैसे तो दुर्गा सप्तशती के पाठ को करने से हमेशा ही मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं। वहीं, नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती की पाठ का विशेष महत्व माना गया है।
इस पाठ के महत्व को बता रहे हैं देहरादून के डॉक्टर आचार्य सुशांत राज। दुर्गा सप्तशती के पाठ को करने से समस्त संकटो मुक्ति मिलती है। इस पाठ में 13 अध्याय हैं। इन अध्यायों को तीन भागों में बांटा गया है। हर अध्याय का अपना एक अलग महत्व है।
नियम और सावधानी
दुर्गासप्तशती का पाठ पूरे नियम और सावधानी के साथ करना चाहिए। आप इसे रोजाना पूरा भी पढ़ सकते हैं। अगर आपके पास इतना समय न हो तो इसे क्रंमानुसार इसे सात दिनों में भी पूर्ण कर सकते हैं। इस पाठ को करने से शांति, धन, सुख- समृद्धि, यश और मान- सम्मान में वृद्धि होती है। इसके अध्यायों का पाठ करने अलग-अलग मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जानते हैं किस मनोकामना के लिए कौन सा पाठ किया जाता है।
ये हैं लाभ
दुर्गासप्तशती के प्रथम अध्याय के पाठ से साधक को हर प्रकार की चिंताओं से मुक्ति मिल जाती है। चित्त प्रसन्न रहता है।
दुर्गासप्शती का दूसरा पाठ आपको कोर्ट केस आदि में विजय दिलाता है।
अगर आप शत्रुओं से परेशान है, तो दुर्गा सप्तशती का तीसरा अध्याय आपको विरोधियों और शुत्रओं से छुटकारा दिलवाता है।
दुर्गासप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ करने से मां दुर्गा की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। व्यक्ति के समस्त दुखों का निवारण होता है।
दुर्गासप्तशती के पांचवे अध्याय का पाठ करने से साधक को मां की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है।
दुर्गा सप्तशती के छठे अध्याय का पाठ हर तरह के भय, शंका और बुरी शक्तियों के प्रभाव से मुक्ति दिलाने वाला है। जिन लोगों को अकारण भय लगता है उनके लिए यह पाठ लाभकारी है।
दुर्गा सप्तशती के सांतवे अध्याय का पाठ का विशेष मनोकामना पूर्ति के लिए लाभकारी रहता है।
दुर्गासप्तशती के आठवें आध्याय का पाठ करने से विवाह संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। इस अध्याय का पाठ करने से मनचाहा साथी प्राप्त होता है।
संतान सुख पाने के लिए या किसी बिछड़े हुए अपने से मिलने के लिए नवें अध्याय के पाठ का विशेष महत्व माना गया है।
दुर्गासप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करने से साधक को रोग, शोक से मुक्ति मिलती है।
दुर्गासप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करने से सुख-शांति आती है। व्यापार में तरक्की और लाभ होता है।
दुर्गासप्तशती के बारहवें अध्याय के पाठ करने से समाज में मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। साधक को सुख संपत्ति प्राप्त होती है।
दुर्गासप्तशतीका तेरहवां अध्याय आपको मां की भक्ति और कृपा दृष्टि का पात्र बनाता है।

आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शिव मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।