निकाय चुनाव में अव्यवस्था के चलते जनता का उठा चुनावी प्रक्रिया से भरोसाः गरिमा मेहरा दसौनी

उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि जिस तरह से उत्तराखंड में निकाय चुनाव संपन्न कराए गए उससे जनता का भरोसा चुनावी प्रक्रिया से उठ गया है। उन्होंने कहा कि मतदान करना एक नागरिक का मौलिक अधिकार है, लेकिन चुनावी प्रक्रिया में जनता का विश्वास सर्वोपरि है। चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता और राजनीतिक सुचिता सुनिश्चित करना सरकार और निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है। इन सबके बावजूद 23 जनवरी को उत्तराखंड में 100 स्थानीय निकाय चुनावों में ऐसा खेल खेला गया कि लोगों का भरोसा चुनावों की प्रक्रिया से ही उठने लगा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देहरादून में प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में गरिमा ने कहा कि शहरी निकायों के चुनाव में मतदान के दिन पूरे प्रदेश भर में जिस तरह की अव्यवस्थाएं देखने को मिली, उससे आमजन का विश्वास चुनावी प्रणाली से पूरी तरह से उठ गया। रुड़की में लाठीचार्ज का मामला सामने आया। इसमें मतदाताओं को भेड़ बकरियों की तरह लाठियों से पीटा गया। दसौनी ने पूछा कि जिन मतदाताओं को लाठियां से कूटा गया, क्या वह जीवन में कभी मतदान के लिए बाहर निकल पाएंगे? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गरिमा ने कहा कि गोपेश्वर से सूचना मिली कि मतदान की जिम्मेदारी निभाने वाले जिला स्तर के अधिकारियों के बड़ी संख्या में नाम मतदाता सूची से गायब थे। हद तो तब हो गई जब लोग अपने नाम मतदाता आयोग की वेबसाइट में देखकर वोट डालने पहुंचे, तो उन्हें वोटर लिस्ट में उस क्रमांक पर अपना नाम नहीं मिला। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची में बहुत सारी त्रुटियां देखने को मिली। पुरुष को महिला बना दिया गयाय़ महिला को पुरुष। पिता को पुत्र और पुत्र को पिता। यही नहीं, 10 साल के बच्चों का नाम भी मतदाता सूची में पाया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दसौनी ने कहा कि ये समझ से परे है कि इसे सियासी खेल समझें या फिर षड्यंत्र, या फिर लापरवाही माना जाए। कुल मिलाकर उत्तराखंड की
चुनावी प्रणाली को बहुत गहरी चोट पहुंची है। उन्होंने कहा कि इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि वन नेशन वन इलेक्शन की बात करने वाले लोग एक छोटा सा लोकल बॉडीज का चुनाव तक ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दसौनी ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सूबे के मुख्यमंत्री रहे दो महत्वपूर्ण व्यक्ति मतदान से वंचित हो गए, जागर सम्राट प्रीतम भर्तवान् और प्रदेश के विख्यात, नामी लोगों के नाम भी मतदाता सूची से गायब मिले। गरिमा ने कहा कि प्रचंड बहुमत और ट्रिपल इंजन की सरकार में पहली बार ऐसा हुआ है की मतदाता सूची से इतनी बड़ी संख्या में और व्यापक स्तर पर मोहल्ले के मोहल्ले और गली की गली गायब कर दी गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऋषिकेश के स्ट्रांग रूम में देर रात तक हंगामा मचा रहा, पोलिंग बूथ पर सत्ताधारी दल के विधायकों और मंत्रियों के पहुंचने पर लोगों का गुस्सा चरम पर पहुंच गया, यह सब आखिर किसकी कोताही से हुआ? दसौनी ने कहा कि हैरत की बात तो यह है कि सत्ताधारी दल का एक भी नेता और प्रवक्ता इस पूरे गंभीर घटनाक्रम से चिंतित विचलित या परेशान नहीं दिखाई पड़ा। जिस तरह के वक्तव्य सत्ता रूढ़ दल की तरफ से आए वह सभी बेहद अपरिपक्व और असंवेदनशील थे। मामले की तह तक जाने की बात कहने के बजाय वह उल्टा जिनके नाम गायब हैं और जो मतदान से वंचित और मायूस हो गए उन्हीं पर हमला बोला जा रहा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गरिमा ने कहा कि चुनाव में मतदान मौलिक अधिकार है। चुनावी प्रणाली को सभी के लिए पारदर्शि और सुचारु प्रक्रिया सुनिश्चित करनी चाहिए थी, लेकिन चुनाव आयोग और सरकार एवं सरकारी मशीनरी की विफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण ये निकाय चुनाव रहा। निर्वाचन आयोग चुनाव कराने में पूर्णतया विफल साबित हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि पिछले आम चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले हजारो मतदाताओं के नाम मतदान केंद्रों की मतदाता सूची में नहीं थे। साफ तौर पर मतदाता सूची से अच्छे खासे स्तर पर नाम सूची से गायब होना लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन है और चिंताजनक एवं निंदनीय है।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।