शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-श्राद्ध मात्र एक परम्परा नहीं
श्राद्ध मात्र एक परम्परा नहीं
सम्मान है हमारे दिवंगतों का
श्राद्ध हमें सिखाता है कि
माता – पिता हमारी कितनी
चिंता फिक्र करते हैं सदैव
अन्य लोक से हमें मिलने आते हैं
श्राद्ध एक सीख है उन कुपुत्रों को
जो जीते जी अपने माँ बाप को
मरने छोड़ खुद मौज मनाते हैं ।
जिन माँ बाप ने पाला पोसा है
उनकी देख – रेख में हुए खर्चे
फिजूल खर्चा समझते हैं
पर औलाद पै खूब लुटाते हैं।
औलाद यही रीत अपनाएगी॥
ये सबक स्वयं ही भूल जाते हैं।
माँ – बाप के प्रति श्राद्ध पक्ष
का इन्तजार करने से बेहतर
जीते जी उन्हें खूब प्यार देना
शायद फिर हो ना हो उनका
गाय, कुत्ता या कौआ बन वापस
तेरे द्वार फिर कभी भी आना।
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।