डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-मेरा देश मेरा मुल्क

मेरा देश मेरा मुल्क
देश की एकता पर कभी आँच आने नहीं देना।
दिलों में दूरियां कभी बढाने नहीं देना॥
प्यार से आबाद रखना वतन के चमन को।
बीज नफरतों के यहाँ बोने नहीं देना॥
1- हर बार जो कत्ल एकता का हुआ।
जख्में ज़िगर मेरे मुल्क़ का था।
फिर भी क्यूं हर कोई यहाँ प्यार बाँटता नहीं।
2-मेरा मुल्क , तेरा मुल्क एक है
ये एक ही है, हम सबकी पहचान
फिर भी क्यूँ हर कोई इसे पहचानता नहीं॥
3 -एक आँख भी रोती है जो, तो रोता है, मेरा देश ।
फिर भी क्यूँ “सर्वे भवन्तु सुखिनः” का मंत्र हर कोई बाँचता नहीं।
हर बार जो कत्ल एकता का हुआ जख्में जिगर मेरे देश का था।
फिर क्यूँ हर कोई प्यार बांटता नहीं।
4- मैं हिन्दु, मैं मुस्लिम, मैं सिक्ख, मैं ईसाई।
ये दूरियाँ नहीं सुहाती मेरे देश को,
फिर क्यूँ ये खाई वैषम्य की कोई पाटता नहीं ॥
मेरा मुल्क तेरा मुल्क एक है
एक ही है पहचान हम सबकी ।
फिर भी क्यूँ हर कोई इसे पहचानता नहीं ॥
5- ये देश मेरा इक अहसास है
जो डाल -डाल है, पात-पात पर।
फिर क्यों खोजते रहते हो
उसे मजहबों में जात-पात पर॥
साम्प्रदायिकता का ये कहर
मेरे देश के लिए है ज़हर ।
फिर भी क्यूँ ये बयार, साजिशें -बगावतों की कोई रोकता नहीं ॥
मेरा मुल्क तेरा मुल्क है,
ये एक ही है हम सबकी पहचान,
फिर क्यों हर कोई इसे पहचानता नहीं॥
6 -अन्न -धन बढ़ा, दौलत बढ़ी, बढ़ा मान – सम्मान ,
शोध बढ़ी ,अनुसंधान हुए , बढ़ा ज्ञान – विज्ञान।
फिर भी क्यूँ जाने निकल गया
जन – जीवन से “ईमान “!
” ईमान” ही सबसे बड़ा धर्म है।
फिर क्यों हर कोई ईमान निभाता नहीं॥
हर बार जो क़त्ल एकता का हुआ
वो जख्में ज़िगर मेरे मुल्क का था
फिर क्यों हर कोई क्यों प्यार बांटता नहीं॥
मेरा मुल्क तेरा मुल्क एक है,
एक ही है हम सबकी पहचान ।
फिर क्यों हर कोई इसे पहचानता नहीं ॥
कवयित्री का परिचय
डॉ पुष्पा खण्डूरी
डी.लिट, एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग
डीएवी (पीजी ) कालेज देहरादून, उत्तराखंड
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।