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June 17, 2025

न स्वयं किसी से रूठें, न किसी को रूठने का मौका देंः स्वामी रसिक महाराज

नृसिंह पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित स्वामी रसिक महाराज भी श्रद्धालुओं के लिए वर्चुअली प्रवचन कर रहे हैं। स्वामी रसिक महाराज ने वर्चुअल प्रवचन करते हुए बताया कि जीवन उसी मानव का सफल है कि जो रुठने और मनाने के फेर में नहीं पड़ता, बल्कि संबंधों को निभाने का प्रयास करता है।


इस दिनों कोरोनाकाल में सब कुछ बंद है। धार्मिक व सामाजिक आयोजन भी सीमित कर दिए गए हैं। चारधाम यात्रा स्थगित कर दी गई है। सिर्फ उत्तराखंड में चारधामों के कपाट अपने निश्चित समय पर खुलेंगे और नियमित पूजा अर्चना होगी। धामों में भी पुजारी, रावत, तीर्थ पुरोहित, हक हकूकधारियों को ही कोरोना के नियमों के पालन के तहत मंदिरों में प्रवेश की अनुमति है। ऐसे में नृसिंह पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित स्वामी रसिक महाराज भी श्रद्धालुओं के लिए वर्चुअली प्रवचन कर रहे हैं।
स्वामी रसिक महाराज ने वर्चुअल प्रवचन करते हुए बताया कि जीवन उसी मानव का सफल है कि जो रुठने और मनाने के फेर में नहीं पड़ता, बल्कि संबंधों को निभाने का प्रयास करता है। संबंध को जोड़ना और संबंध को निभाना दोनों अलग-अलग घटनाओं पर आधारित है।
दिया कथा का उदाहरण
प्रसंग को बढ़ाते हुए उन्होंने बताया कि किसी गांव में दो भाई परस्पर बडे़ ही स्नेह तथा सद्भावपूर्वक रहते थे। दोनो भाई, जब भी कोई वस्तु लाते तो, एक दूसरे के परिवार के लिए भी अवश्य ही लाते। छोटा भाई भी सदा उनको आदर तथा सम्मान की दृष्टि से देखता। एक दिन किसी बात पर दोनों में कहा सुनी हो गई। बात इतनी बढ़ गई कि, छोटे भाई ने बडे़ भाई के प्रति अपशब्द कह दिए। बस फिर क्या था? दोनों के रिश्तों के बीच दरार पड़ गई। उस दिन से ही दोनों अलग-अलग रहने लगे और दोनों के बीच बोलचाल भी बंद हो गई। इसी तरह कई वर्ष बीत गये। मार्ग में जब दोनों आमने-सामने भी पड़ जाते तो, कतराकर दृष्टि बचा जाते।
कुछ वर्षों बाद, छोटे भाई की कन्या का विवाह आया। उसने सोचा, बडे़ आखिर बडे़ ही होते हैं, जाकर मना लाना चाहिए, अब ऐसी भी क्या नाराजगी। वह बडे़ भाई के पास गया और पैरों में पड़कर, पिछली बातों के लिए क्षमा माँगने लगा। बोला अब चलिए और विवाह कार्य संभालिए। पर बड़ा भाई नहीं पसीजा और उसके घर जाने से साफ मना कर दिया। छोटे भाई को बहुत दुःख हुआ। अब, वह इसी चिंता में रहने लगा कि, कैसे भाई को मनाया जाए। इधर विवाह के भी बहुत थोड़े दिन ही रह गये थे। बाकी सगे संबंधी आने लगे थे। एक सम्बन्धी ने बताया कि तुम्हारा बड़ा भाई, एक संत के पास प्रतिदिन जाता है और उनका बहुत आदर भी करता है। उनका कहना भी मानता है।
छोटा भाई, उन संत के पास पहुँचा और पिछली सारी बातें बताते हुए, अपनी गलती के लिए क्षमा याचना की तथा गहरा पश्चात्ताप व्यक्त किया। उनसे प्रार्थना की कि आप किसी भी तरह मेरे भाई को, मेरे यहाँ आने के लिए राजी कर दे। दूसरे दिन, जब बड़ा भाई सत्संग में गया तो संत ने उससे पूछा, क्यों, तुम्हारे छोटे भाई के यहाँ कन्या का विवाह है? तुम क्या-क्या काम संभाल रहे हो ? मैं तो विवाह में सम्मिलित ही नहीं हो रहा हूँ, गुरुदेव। कुछ वर्ष पूर्व, मेरे छोटे भाई ने, मुझे ऐसे कड़वे वचन कहे थे, जो आज भी मेरे हृदय में, काँटे की तरह खटक रहे हैं बड़े भाई ने कहा।
संत जी ने कहा, सत्संग के बाद मुझसे मिल कर जाना, जरूरी काम है। सत्संग समाप्त होने पर, वह संत के पास पहुँचा। उन्होंने पूछा-मैंने, गत रविवार को जो प्रवचन दिया था, उसमें मैंने क्या कहा था, जरा याद करके बताओ? अब बड़ा भाई बिलकुल मौन। काफी देर सोचने के बाद, हाथ जोड़ कर बोला, माफी चाहता हूँ गुरुदेव, कुछ याद नहीं आ रहा है कि, कौन सा विषय था? संत बोले, देखा! मेरी बताई हुई अच्छी बातें तो, तुम्हें आठ दिन भी याद न रहीं और छोटे भाई के कड़वे बोल, जो वर्षों पहले कहे गये थे, वे तुम्हें अभी तक, हृदय में चुभ रहे हैं। जब तुम अच्छी बातों को याद ही नहीं रख सकते, तब उन्हें जीवन में कैसे उतारोगे। जब जीवन नहीं सुधारा, तब सत्संग में आने का लाभ ही क्या रहा? अतः कल से यहाँ मत आया करो, अपना समय व्यर्थ मत करो।
अब बडे़ भाई की आँखें खुली। उसने आत्म-चिंतन किया और स्वीकार किया कि, मैं वास्तव में गलत मार्ग पर हूँ। उसके बाद, वह अपने छोटे भाई के घर गया और उसे, अपने गले से लगा लिया।दोनों भाईयों के आँखों में खुशी के आँसू थे। हमारे साथ भी, ऐसा ही होता है। अक्सर दूसरों की कही, किसी बात का हम बुरा मान जाते हैं और बेवजह, उससे दूरी बना लेते हैं जबकि, चाहिए ये कि, हम आपसी बातचीत से, मन में उपजी कटुता को भुलाकर, सौहार्द पूर्ण वातावरण बनाएं।
परिचय
नृसिंह पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित स्वामी रसिक महाराज ( प्रवक्ता अठारह पुराण, वेद वेदांत)
परमाध्यक्ष ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम हिमालय,
नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार उत्तराखंड।
नृसिंह कुटिया सैक्टर 40 चंडीगढ़
सम्पर्क- 9872751512, 9411190555

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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