घस्यारी महिलाओं को न्याय मिले, सहना पड़ रहा है अपमानः सुरेश भाई का आलेख

हम मानते हैं कि राज्य में जरूर छोटी पनबिजली बने, लेकिन ऐसी भी क्या कि बांधों के निर्माण के नाम पर हमारे चारागाह भी विकास कर्ताओं के पास चले गए हैं। गांव के लोग जो पशुपालन का काम करते हैं, उनको तो अपने गांव में रहकर पशुओं के के लिए चारागाह चाहिए। किसी भी कंपनी को चारागाह सौंपने से पहले सोचना चाहिए कि उस गांव के दुधारू पशुओं का और उस चारागाह के आसपास रहने वाले जंगली जानवरों का क्या होग। आजकल वृक्षारोपण भी बहुत हो रहा है। चारों ओर जैव विविधता बचाने की बात भी हम यदा-कदा सरकारी और गैर सरकारी मीटिंग में सुनने को मिल रहा है। लेकिन, यह केवल चर्चाओं तक सीमित दिखाई देता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हेलंग गांव के मुद्दे पर इन बैठकों में कोई चर्चा नहीं करता है। मैंने इस बीच कई महत्वपूर्ण बैठकों में भाग लिया है, लेकिन लोग पेड़ लगा रहे हैं, लेकिन उस पेड़ पर हमारा अधिकार है कि नहीं ? कल आग लगेगी तो हमारी चिंता उस पर है कि नहीं ? उस पेड़ से हमें चारा मिलेगा कि नहीं ? यह बहुत अनिश्चितता के दौर में है। चुनौती है कि हमारी व्यवस्था को लोगों को प्राकृतिक संसाधनों पर पूरा अधिकार सौंपना चाहिए और पर्यावरण को न्याय मिलना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अभी हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति ने विदाई लेते समय देश का आह्वान किया है कि लोग पर्यावरण की रक्षा के लिए आगे आयें। इससे हमें महसूस हुआ कि कहीं ना कहीं हमारे देश के राष्ट्रपति जी ने पिछले 5 सालों में पर्यावरण की जो स्थिति देखी होगी। वह जाते-जाते आखिर इस संदेश को दे गए। यह हमारे देश के लिए संदेश है। जल ,जंगल, जमीन पर जनता के अधिकारों की मांग करने वाले लोग विकास के दुश्मन नहीं है। वे विकास के असली पहरेदार हैं। इन्हीं लोगों के कारण आज कुछ बचा हुआ है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हमें पता है कि 2002 में जब जल नीति का मसौदा राज्य सरकार ने सामने लाया था, तो उसका हम लोगों ने विरोध किया। राज्य सरकार ने जल नीति लगभग डेढ़ दशक तक नहीं बनाई। इसका मतलब यह हुआ कि राज्य को कहीं न कहीं महसूस हुआ कि यदि हम 2002 की जल नीति के अनुसार राज्य की जल नीति बनाएंगे तो नदियां, जंगल तो बिकेंगे ही। इसी तरह 2013-14 में छरबा गांव के लोगों ने अपने गांव के हजारों पेड़ बचाए और पानी को प्रदूषित करने वाली कोका कोला कंपनी का कारखाना अपने गांव की जमीन पर नहीं खुलने दिया । ऐसे ऐतिहासिक कई काम है जो पिछले 22 सालों में लोग उत्तराखंड में करते आ रहे हैं और इस समय भी हेलंग एक उदाहरण बन गया है।
लेखक का परिचय
नाम-सुरेश भाई
लेखक रक्षासूत्र आन्दोलन के प्रेरक है। वह सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरणविद हैं। वह उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन से भी जुड़े हैं। सुरेश भाई उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष भी हैं। वर्तमान में वह उत्तरकाशी के हिमालय भागीरथी आश्रम में रहते हैं।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।