क्या हरिद्वार कुंभ महापर्व पर संस्कृत विद्वानों की जुबान फिसलीः भूपत सिंह बिष्ट
कोरोना वैश्विक आपदा के बीच कल हरिद्वार कुंभ महापर्व का सोमवती अमावस्या शाही स्नान दिव्य और भव्य अलौकित दृश्यों के साथ सृखद और सफल संपन्न हो गया।
कोरोना वैश्विक आपदा के बीच कल हरिद्वार कुंभ महापर्व का सोमवती अमावस्या शाही स्नान दिव्य और भव्य अलौकित दृश्यों के साथ सृखद और सफल संपन्न हो गया। उत्तराखंड सरकार ने इस आयोजन के सीधे प्रसारण के लिए प्रसार भारती के दूरदर्शन उत्तराखंड की सेवायें मुहैया करायी और अगले दो शाही स्नान वैशाखी पर्व 14 अप्रैल और चैत्र पूर्णिमा 27 अप्रैल में भी यही व्यवस्था रहने वाली हैं।
लोगों ने एलईडी में देखा नजारा
सूचना और लोक संपर्क विभाग ने देहरादून में घंटाघर पर स्वर्गीय इंदरमणि बडोनी प्रतिमा के समीप और अन्य स्थलों पर 12 अप्रैल के शाही कुंभ स्नान के सीधे प्रसारण के लिए बड़ी स्क्रीन लगायी गई। ताकि तेरह अखाड़ों से जुड़े हजारों साधु – नागा सन्यासियों और लाखों भक्तों की पावन गंगा में आस्था की डुबकी और उल्लास में आम जन भी भागीदारी कर सकें।
साधु सन्यासियों ने समझाया महत्व
दूरदर्शन उत्तराखंड ने शाही स्नान के सजीव प्रसारण के लिए डा. देवी प्रसाद त्रिपाठी, कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्व विद्यालय, डा बुद्धिनाथ मिश्र, प्रख्यात कवि और समालोचक, डा शैलेश तिवारी, डा शैलेंद्र उनियाल, आनंद श्रीवास्तव, लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, शशि शर्मा और ब्रह्मचारी वागीश और अंग्रेजी में आंखों देखा हाल सुनाने के लिए प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल, कुलपति दून यूनिवर्सिटी व लोकेश अहोरी जैसे विद्वानों को शाही प्रसारण से जोड़ा और देश विदेश में लाखों लाख दर्शकों ने दूरदर्शन के पर्दे पर सनातन संस्कृति के कुंभ आस्था पर्व और गंगा मैया के प्रति अपार श्रद्धा के भाव विभोर दर्शन किए।
कुंभ महापर्व पर गंगा स्नान कर अमृत पान करने की कथा को साधु संयासियों ने मार्मिक ढंग से समझाया। अमृत ग्रहण करने का अर्थ जीवन में सांसारिक मोह माया का त्याग करना है। इस अवसर पर मानवता के गुणों को अंगीकार हम असुरों की दिनचर्या से बाहर आ सकते हैं। आस्था और समर्पण से जीवन में निश्चस ही विजयश्री मिलती है।
किन्नर अखाड़े ने रचा इतिहास
निरंजनी अखाड़े के बाद, दूसरे क्रम में जूना अखाड़े के साथ किन्नर अखाड़े के संतों ने शाही स्नान में भाग लेकर नया इतिहास रच दिया है। किन्नर अखाड़े की प्रमुख लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, अपने सैकड़ों अनुयायी और ठाठ बाट के साथ शाही स्नान में शामिल हुई।
ऐसी खबर है कि कुछ समय के लिए उनकी तबीयत खराब हो गई और उन्हें त्वरित चिकित्सा दी गयी। भगवान शिव के गिरिजा शंकर अर्द्ध नारीश्वर रूप का परिचय, इस शाही स्नान में किन्नर अखाड़े के संतों ने कराया है। वैसे हर अखाड़े के साथ महिला अनुयायी भी बड़ी संख्या में हर की पैड़ी पर स्नान के लिए अपने गुरूजनों के साथ चल रहे थे।
कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना
हर की पैड़ी पर तेरह अखाड़ों और संतों के लिए शाही स्नान का दौर देर शाम तक जारी रहा और इस बीच हरिद्वार के तमाम घाटों पर लगभग तीस लाख श्रद्धालुओं ने पुण्य स्नान किया। अधिकांश संत इस बार भारत और पूरे विश्व के मानव समाज को कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते सुने गए।
एक उद्घोषक ने किया चकित
कुंभ महापर्व से जुड़ी कहानियों को सुनाते संस्कृति के विद्वान उदघोषक ने यह कहकर चकित कर दिया कि हरिद्वार, प्रयागराज इलाहाबाद, नासिक और उज्जैन में गंगा, प्रयाग गंगा, यमुना और सरस्वती, गोदावरी और शिप्रा नदियों में ही सनातन कुंभ मेले की सृष्टि की गई है। अपितु राशियों के सक्रांति काल में देश के विभिन्न 12 स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित करने की परम्परा चली आ रही है। इस में कई स्थान भगवान शिव की स्तुति से और कुछ वैष्णव मत की आस्थ से जुड़े हैं।
एक उदघोषक ने बताया कि राशि फल के अनुसार रामेश्वरम, सिमरिया तुलार्क, कुरूक्षेत्र, गंगासागर, कलकत्ता, कुंभकोणम तमिलनाडु, ब्रह्मपुत्र असम, श्री बदरीनाथ धाम और जगन्नाथ धाम जैसे धार्मिक स्थलों में कुंभ आयोजन की प्राचीन मान्यता है।
तिब्बत में भी कुंभ जैसे मेले की परंपरा
गूगल में सर्च करने पर मालूम हुआ कि त्रिम्बकेश्वर बारह ज्योर्तिलिंगों में एक है और नासिक से तीस किमी दूर गोदावरी के तट पर है। नासिक को दक्षिण काशी भी कहते हैं और यहां बनवास काल में भगवान राम ने अज्ञात वास किया है।
उज्जैन को महाकालेश्वर नगरी या प्राचीन काल में अवंतिका या अवंतिकापुरी कहा गया है। शिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन को सनातन सात मोक्षपुरी अयोध्या, मथुरा, काशी – वाराणसी, कांचीपुरम और द्वारका के साथ पुण्य सप्तपुरी में गिना जाता है।
इस प्रकार हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के अलावा बनारस, वृंदावन, कुंभकोणम, रजि़म कुंभ और तिब्बत में भी कुंभ जैसे मेले आयोजित करने की परम्परा चली आ रही है। और सभी स्थानों पर आयोजन की तिथियां राशिफल के अनुसार वृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा की स्थिति देखकर अग्रिम तय कर ली जाती हैं।
तमिलनाडु में भी होता है आयोजन
तमिलनाडु के कुंभकोणम में प्रत्येक बारह साल बाद 20 एकड़ के विशाल में कुंड में हिंदु आस्था से जुड़े कुंभ मेले का आयोजन कर रहे हैं। शिव भक्त तमिल हिंदुओं की मान्यता है कि भारत की गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्र, कावेरी और सरयू इन नौ पवित्र नदियों का संगम इस कुंड में होता है। प्रत्येक 12 साल बाद होने वाले इस आयोजन में दक्षिण भारत से कुंभ जैसी भव्यता और दिव्यता जुटती है।
पांचवे कुंभ के नाम से जाना जाता है ये मेला
राजिम कुंभ का आयोजन हर साल छतीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जनपद में आयोजित होता है। महानदी, पैरी और सोंदुर नदियों के संगम पर राजीव लोचन मंदिर के समीप इस मेले को पांचवे कुंभ की संज्ञा दी जाती है। रंजिम कुंभ में वैष्णव और शैव अनुयायी प्रयागराज की तरह यहां कल्पवास कर पुण्य अर्जित करते हैं।
गूगल में संरक्षित है जानकारी
चार प्रमुख कुंभ स्थलों के बाद देश की पवित्र नदियों में अमृत और कुंभ जैसे पवित्र आयोजन स्थलों की जानकारी गूगल में संरक्षित है और इस का उपयोग समय और स्थान की नजाकत समझ कर करना बहुत आवश्यक है। धार्मिक आयोजन हमेशा पोंगा पंडित नहीं बनाते, बल्कि समय और परिस्थितियों के अनुरूप आस्था, समर्पण और मेधा मानवता के लिए कल्याणकारी होती है। देश विदेश से जुटे इस समागम कुंभ में समरस्ता और संवेदना के मूल्यों में निश्चित ही श्रीवृद्धि होती है।
लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट
स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
कुम्भ का सुंदर आयोजन