धोबी का कुतका या कुत्ता, जानिए क्या है असल मुहावरा

हिंदी की कहावत या फिर कहें इस मुहावरा तो अधिकांश लोगों ने या तो सुना होगा, या फिर उसे बोला भी होगा। ये कहावत है कि- धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का। इस कहावत का मतलब है कि कोई ठिकाना न होना। इसका मतलब है कि व्यक्ति का अपना कोई निश्चित घर या स्थान नहीं है। अस्थिरता के चलते वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता रहता है। किसी के योग्य न होना और वह किसी भी जगह पर पूरी तरह से उपयोगी या फिट नहीं बैठता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब कोई व्यक्ति या वस्तु किसी ऐसी स्थिति में फंस जाते हैं, जहाँ वह न तो अपने मूल स्थान पर रह पाता है और न ही किसी दूसरे स्थान पर अपना स्थान बना पाता है। अब आपको चौंकाने वाली जानकारी हम दे रहे हैं। क्या ये कहावत ऐसी ही थी या फिर लोगों ने इसमें कुत्ता शब्द को जोड़ दिया। जो बाद में चलन में आ गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जब ये कहावत बनी होगी तो उस समय धोबी के पास गधा तो जरूर होता था, लेकिन ये जरूरी नहीं कि कुत्ता भी धोबी पालता हो। फिर कभी आपने ये गौर भी नहीं किया कि कुत्ता यदि धोबी के साथ घाट पहुंचेगा तो फिर वह उसके साथ घर भी पहुंच सकता है। ऐसे में- धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का, वाली कहावत धोबी और कुत्ते को लेकर फिट नहीं बैठती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कुत्ता नहीं तो फिर क्या है शब्द
दरअसल कहावत में ‘कुतका’ शब्द का प्रयोग किया गया, जिसे समय के साथ लोगों ने कुत्ता शब्द में बदल दिया। कहावत थी कि- धोबी का कुतका न घर का न घाट का। अब आप कहोगे कि कुतका क्या होता है, जो ना तो घर का है और ना ही घाट का। मुहावरे में कुतका शब्द को लेकर आप चक्कर में पढ़ जाओगे कि आखिर ये कुतका क्या है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
घाट पर कपड़े धोते थे धोबी
किसी समय शहर, मोहल्लों, गांव आदि में धोबी घाट ऐसे स्थान पर होते थे, जहां नदी हो, तालाब हो, झरना हो, या फिर पानी का जमाव हो। घाट में कपड़े धोने के लिए धोबी पत्थर के धरातल का उपयोग करते थे। इसी में कपड़े पटक पटक कर धोए जाते थे। आज से कई साल पहले जाओगे तो घरों में भी जब वाशिंग मशीन नहीं होती थी, तो लोग जमीन में पटककर कपड़े धोते थे। साथ ही ज्यादा मैल छुड़ाने के लिए लकड़ी की थपकी का इस्तेमाल किया जाता था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
धोबी करते हैं कुतका का प्रयोग
ठीक थपकी की तरह धोबी भी कुतका का प्रयोग कपड़े धोने के लिए करते थे। ये एक तुर्की का शब्द है। कुतका का मतलब लंबा और मोटा डंडा होता है। इसी डंडे को कपड़े के ऊपर मार मार कर धोबी कपड़ों से मैल निकालते थे। अब आप कहोगे कि- धोबी का कुतका ना घर का ना घाट का, कहावत क्यों बनी। क्योंकि कुतका तो घाट में कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके पीछे भी मजेदार कहानी है। कहा जाता है कि कुतके को घर से घाट और घाट से घर हर दिन ले जाने की परेशानी से बचने के लिए धोबी ने जो उपाय निकाला, उसी को लेकर ये मुहावरा बन गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
घाट पर यदि धोबी कुतका छोड़ता तो कोई डंडे को उठाकर कर ले जाता। ऐसे में धोबाी घर और घाट के रास्ते में कुतके को छिपाने का कोई स्थान तलाशते थे और उसे वहीं छिपाकर घर लौटते थे। ऐसे में कुतका ना तो घर में ही रखा जाने लगा और ना ही घाट में। मूल कहावत का “कुतका ” उच्चारण की गलती से या भाषायी अपभ्रंशता के कारण “कुत्ता” हो गया और हम इस कहावत का प्रयोग इसी तरह करने लगे।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।