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March 15, 2025

कार्यशाला में हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर और झीलों के अध्ययन की विस्तार से दी जानकारी

उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क) देहरादून की ओर से देव भूमि विज्ञान समिति के संयुक्त तत्वावधान में आज वाटर एजुकेशन व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत " हिमालय क्षेत्र में बर्फ, हिमनद एवं हिमनद झीलों का अध्ययन विषय पर ऑनलाइन कार्यशाला आयोजित की गई।

उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क) देहरादून की ओर से देव भूमि विज्ञान समिति के संयुक्त तत्वावधान में आज वाटर एजुकेशन व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत ” हिमालय क्षेत्र में बर्फ, हिमनद एवं हिमनद झीलों का अध्ययन विषय पर ऑनलाइन कार्यशाला आयोजित की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो. (डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क की ओर से जल स्रोतों के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष आयोजित विश्व पर्यावरण दिवस कार्यक्रम की विशेषज्ञ संस्तुतियों के क्रम में जुलाई 2021 से प्रतिमाह वाटर एजुकेशन लेक्चर सीरीज कार्यक्रम को आयोजित किया जा रहा है। इसी क्रम में आज का व्याख्यान राज्य के विद्यार्थियों के लिए यूसर्क द्वारा आयोजित किया जा रहा। यूसर्क द्वारा राज्य के जल स्रोतों का वैज्ञानिक अध्ययन, जन जागरूकता सबंधी कार्यों को संपादित किया जा रहा है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ भवतोष शर्मा ने कहा कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियर एवम् उनसे बनने वाली झीलों का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है। इन सभी का आधारभूत ज्ञान होने के साथ साथ इनके संरक्षण हेतु सभी के प्रयास आवश्यक हैं। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रूड़की के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ संजय जैन ने “हिमालय क्षेत्र में बर्फ, हिमनद एवम् हिमनद झीलों का अध्ययन विषय पर अपना व्याख्यान दिया।

उन्होंने अपने व्याख्यान में ग्लेशियरों की वर्तमान एवं पूर्व की स्थितियों, उनकी संख्या, उन पर उपलब्ध बर्फ की मात्रा, गंगा बेसिन के ग्लेशियर, रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस के माध्यम से अध्ययन आदि विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने ग्लेशियरों के पिघलने, पर्वतीय भाग में ग्लेशियरों से बनने वाली झीलें, उनके फटने से होने वाले खतरे एवं बचाव पर महत्वपूर्ण जानकारी दी। केदारनाथ आपदा के कारणों को उन्होंने विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि अर्ली वार्निग सिस्टम के अलावा ग्लेशियरों की लगातार निगरानी, उनसे बनने वाले ग्लेशियर झीलों का लगातार अध्ययन व निगरानी, तकनीकी के अधिकतम प्रयोग आदि के द्वारा इस तरह की आपदा के कारण होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
धन्यवाद ज्ञापन डॉ ओम प्रकाश नौटियाल ने दिया। कार्यक्रम में मुख्यरूप से डॉ मंजू सुंदरियाल, डॉ राजेंद्र राणा, आईसीटी टीम के ओम जोशी, उमेश चंद्र, राजदीप ने भौतिक रूप से प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम में 191 प्रतिभागियों ने आनलाइन माध्यम से प्रतिभाग किया गया।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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