दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल-सात फेरा
सात फेरा
शादि- ब्योम , पौंणा खुज्यांणा हुयां छीं.
चलि ल्यावा शादिम, मनांणा हुयां छीं..
ठकठ्याट रैंदु छौ, ब्यो- काज म जांड़ा कु,
आज सब निरदुंद पोड़ीं, घुच्यांणा हुयां छीं..
कनु लगणूं छूं, पुछदा छा एक- हैंकम रोज,
अब त लारा बि, अफथैं दिखांणा हुयां छीं..
दुन्या भरा खर्च कयूं, घोड़ी टैंट- बैंड फरी,
वापिस दींणा नौ फरि, अणसुणा हुयां छीं..
फिफ्टी-फिफ्टी लिमिट, दुछोड़ि ह्वे फिफ्टी,
को लिजांण-को छोड़ण , बिरांणा हुयां छीं..
शनिवार- ऐत्वारा ब्यो लगन, लग लौकडौन,
कनम बरात पैटांण , गोटि बिछांणा हुयां छीं..
कन ! संजोग बिगड़ , पोरु बटि ऐंसु तलक,
खतीं मोत्यूं माऴा जन, गठ्यांणा हुयां छीं..
‘दीन’ ! अबत बस, कनम बि काम निभि जा,
ब्योला-ब्योलिक, सात फेरा पुर्यांणा हुयां छीं..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
सात फेरो फरि कोरोना नियमों कु साया कन्या पड़, वे फरि मेरी रचना.