गरीबों के घरों पर बुलडोजर चलाने का फैसला आचार संहिता का उल्लंघन, राजनीतिक और सामाजिक संगठनों का विरोध
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में गरीबों के घरों पर बुलडोजर की कार्रवाई के अभियान के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने कड़ा विरोध किया है। जिला प्रशासन के फैसले को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन बताते हुए जिला प्रशासन को ज्ञापन दिया गया। साथ ही चेतावनी दी गई कि एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ कड़ा विरोध जारी रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गौरतलब है कि उत्तराखंड के देहरादून में 524 घरों पर बुलडोजर का भय सता रहा है। नगर निगम और एमडीडीए इसकी तैयारी कर रहे हैं। रिस्पना नदी किनारे रिवर फ्रंट योजना की तैयारी है। ये भवन नगर निगम की जमीन के साथ ही मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की जमीन पर हैं। नगर निगम और वर्ष 2016 के साथ से नदी किनारे बसी हुई बस्तियों को 30 जून तक हटाने के नोटिस भेज रहा है। साथ ही अब एमडीडीए ने भी नोटिस भेजने की कार्रवाई शुरू कर दी है। इस संबंध में 27 बस्तियों में 524 घर चिह्नित किए गए हैं। इन बस्तियों पर कभी भी बुलडोजर चल सकता है। ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ ही सामाजिक संगठनों के देहरादून में आएदिन प्रदर्शन हो रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसी कड़ी में आज सोमवार को राजनीतिक दलों, मजदूर संगठनों के साथ ही सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि जिला मुख्यालय पहुंचे। उन्होंने उप जिलाधिकारी शालिनी नेगी को जिलाधिकारी को संबोधित ज्ञापन सौंपा। साथ ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त भारत, मुख्य निर्वाचन अधिकारी उत्तराखंड, उत्तराखंड के मुख्य सचिव, शहरी विकास मंत्री, एसएसपी देहरादून, एमडीडीए उपाध्यक्ष देहरादून, नगर निगम आयुक्त को भी जिला प्रशासन के माध्यम से ज्ञापन भेजे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञापन में कहा गया है कि बस्तियों के पुर्नवास किये बिना वहां लोगों के घरों को तोड़ना गलत है। कई प्रभावितों ने वर्षों से घर बनाकर रहने के सबूत दिए हैं। इसके बावजूद जब चुनाव आचार संहिता लगी है, तब ऐसी कोई कार्रवाई उचित नहीं है। क्योंकि वर्तमान में कोई भी कार्रवाई चुनाव आयोग के स्वीकृति के बिना सम्भव नहीं हो सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञापन में कहा गया कि उत्तराखंड में मेहनतकश वर्ग और गरीब परिवारों के हक पर लगातार हमले हो रहे हैं। प्रशासन की ओर से बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये बिना और प्रभावितों की पुनर्वास की व्यवस्था किये बिना गरीबों को उजाड़ने का फैसला चुनाव आचार संहिता का भी उल्लंघन है। अविलंब बस्तियों को ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया तत्काल रोक लगाई जाए। कोर्ट एवं एनजीटी के दिशानिर्देशों की आड़ में यह कार्यवाही गरीब, अनूसूचित जाति की आबादी के साथ की जा रही है। वहीं, बड़े लोगों जो अतिक्रमण किये हुऐ हैं उन्हे हर समय बचाया जाता रहा है, ऐसा सर्वविदित है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बताया गया कि वर्ष 2018 में ही मलिन बस्तियों का नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए कानून बनाया गया था। चुनाव के दौरान बीजेपी ने भी आश्वासन दिया था कि मलिन बस्तियों को तुरन्त मालिकाना हक़ दिया जाएगा। जन आंदोलन होने के बाद 2018 में सरकार की ओर से कानून लाकर धारा 4 में ही लिख दिया कि तीन साल के अंदर बस्तियों का नियमितीकरण या पुनर्वास होगा। वह कानून जून 2024 में खत्म होने वाला है। सरकार ने आज तक किसी भी बस्ती में मालिकाना हक देने के वायदे को पूरा नहीं किया। सूचना के अधिकार द्वारा पता चला है कि 2018 से 2022 के बीच सरकार ने इस मामले को लेकर एक भी बैठक नहीं की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञापन के बिंदु
-अपने ही वादों के अनुसार सरकार तुरंत बेदखली की प्रक्रिया पर रोक लगाए। कोई भी बेघर न हो। इसके लिए या तो सरकार अध्यादेश द्वारा क़ानूनी संशोधन करे या कोर्ट के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में जाए।
-2018 का अधिनियम में संशोधन कर जब तक नियमितीकरण और पुनर्वास की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी, जब तक मज़दूरों के रहने के लिए स्थायी व्यवस्था नहीं बनती, तब तक बस्तियों को हटाने पर रोक लगे।
-दिल्ली सरकार की पुनर्वास नीति को उत्तराखंड में भी लागू किया जाये।
-राज्य के शहरों में उचित संख्या के वेंडिंग जोन को घोषित किया जाये। पर्वतीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में वन अधिकार कानून पर अमल युद्धस्तर पर किया जाये।
-बड़े बिल्डरों एवं सरकारी विभागों के अतिक्रमण पर पहले कार्यवाही की जाये।
-एलिवेटेड रोड़ के नाम पर रिस्पना तथा बिंदाल नदी बसी बस्तियों को उजाड़ना बन्द हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञापन देने वालों में ये रहे शामिल
ज्ञापन देने वालों में सीआईटीयू, एटक, इन्टक, चेतना आन्दोलन, महिला मंच, महिला समिति, एसएफआई, उत्तराखंड पीपुल्स फ्रन्ट, एआईएलयू , इफ्टा, सीपीआईएम, सीपीआई, सपा, आयूपी, सर्वोदय मण्डल, नेताजी संघर्ष समिति के लोगों में प्रमुख रूप से शंकर गोपाल, राजेन्द्र पुरोहित, अनन्त आकाश, लेखराज, अशोक शर्मा, अनिल कुमार, शम्भु प्रसाद ममगाई, अनुराधा, नितिन मलेठा, रविन्द्र नौडियाल, दिप्ती सिंह सहित बड़ी संख्या में प्रभावित शामिल थे।
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I born & brought up in Dehradun & witnessed the encroachment both in Rispna and Bindal rivers. The political parties & organisations who are making hue & cry doing it for their personal agenda. If they are really concerned they must have stopped this encroachment. Where are they when government is chopping the tres in Dehradun ?