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December 23, 2024

स्वप्न में यमलोक के दर्शन, लेखिका-हेमलता बहुगुणा

उस रास्ते पर अनेक रंग विरंगे फूल खिले हैं। जो मन को मोह रहे है। उन फूलों के ऊपर अनेक लोग चलें जा रहें थे। परन्तु, जब वह लोग उन फूलों के ऊपर चल रहे थे तो कुछ लोग कराह और चिल्ला रहे थे।

एक दिन स्वप्न में मैने यमलोक की रहस्यमय घटना देखी। मैंने देखा कि मैं और मेरी दो चार सहेलियों के साथ घुमने के लिए कहीं दूर जा रहीं हूं। जिस रास्ते से हम जा रहे हैं वह एक सुरंग जैसा हैं। उस रास्ते पर अनेक रंग विरंगे फूल खिले हैं। जो मन को मोह रहे है। उन फूलों के ऊपर अनेक लोग चलें जा रहें थे। परन्तु, जब वह लोग उन फूलों के ऊपर चल रहे थे तो कुछ लोग कराह और चिल्ला रहे थे। क्योंकि उनके पैरों में शूल व कांटे चुभे थे और खून निकल रहा था। वहीं, कुछ हंसते और बाते करते हुए जा रहे थे। उन्हे कोई कष्ट नहीं था। वह रास्ता अंधेरे से भरा था।
उन लोगों के साथ एक मोटा तकडा आदमी चल रहा था। मैंने उस आदमी से पूछा -जो ये लोग रो रहे हैं ये क्यो रो रहें हैं। इनके पैर में सूल क्यो चुभ रहें हैं। जो अन्य लोग भी हैं, इनके क्यो नही चुभ रहे हैं। वे रो भी नहीं रहें हैं। इसका क्या कारण है।
उस आदमी ने मेरी तरफ देखा और बोला-सुनो, यह यमलोक जाने का रास्ता हैं। यमलोक जाने का एक ही रास्ता है। इस रास्ते में जो फूल तुम देख रहें हों वह कांटो में भी बदलते रहते हैं और कभी वह रुवें में। इस रास्ते में सभी कर्मो के लोग चलते हैं। पापकर्म भी और पुण्यकर्म भी। परन्तु, जब पुण्य कर्म वाला व्यक्ति जाता है तब यह फूल रूवें में बदल जाते हैं और जब पापकर्म का जाता है तब यह कांटे या शूल में बदल जाता हैं। इसलिए जो पापी हैं वो रो रहें हैं और जो धर्मी हैं, वह खुशी खुशी से झूम कर चल रहे हैं।
मैं यह सुनकर दंग रह गयी और अपनी सहेलियों के साथ आगे बढ़ गई। चलते-चलते हम लोग यमलोक पहुंच गए। वहां जाकर देखा तो भयंकर प्रकार के लोग। किसी के सिंगें, किसी का विकराल चेहरा था। किसी के हाथो में शूल, किसी के पास आग, कहीं फांसी का फंदा, कहीं गन्दे नाले‌। मैं यह देखकर कर डर गयी। पर चुपचाप आगे बढ़ती गई। मैंने आगे देखा एक विशालकाय पेड़ है, जो नीचे से पतला और ऊपर से मोटा था। उस पेड़ के बगल में एक नहर थी। जो खून और पाक से सनी थी। वहां के लोग जिसने जैसा कर्म किया था वैसा ही वे दण्ड दे रहें थे। किसी को शूली पर चढ़ा रहे थे। किसी को गरम गरम सब्बल से दाग रहें थे। किसी को फांसी और किसी को जमीन पर रगड़ रगड़कर मार रहें थे। हर प्राणी चिल्ला रहा था। छोड़ने की दुआएं मांग रहा था। पर वहां पर इन बातों को सुनने वाला कोई नहीं था।
उसी समय एक व्यक्ती एक आदमी को पकड़ कर लाए। उसे उस पेड़ पर चढ़ने को कहा। वह उस पेड़ पर चढ़ने लगा, परन्तु जैसे जैसे ऊपर चढ़ने लगा उसके हाथ ढिले पड़ गए और वह धम्म से नीचे गिर गया। तभी उन लोगों ने उसकी गर्दन पकड़ कर उस पाक और खून की नदी में धकेल दिया। वह रोया चिल्लाया पर किसी ने भी उसकी बात नहीं सुनी।
परन्तु जो पुण्यात्मा थी उन पर वह शूल, आग, फांसी, सब्बल, पेड़ का कुछ असर नहीं होता था। वह आसानी से आगे बढ़ते हुए चले जा रहे थे। उनके लिए वह पाक की नदी भी गंगा नदी बन गई थी। हम आगे बढ़ते ही जा रहे थे। वहां मैंने देखा कि एक बहुत सुंदर कमरा हैं और उस कमरे पर बहुत सुंदर सुंदर औरतें बैंठी है। उनके बीच में एक बहुत ही सुन्दर औरत बैंठी है। मैं उनको खिड़की से देखने लगी, परन्तु जैसें ही उस सुंदर औरत ने मुझे देखा तो उसने मुझे आंखों से इशारा किया कि तुम यहां क्यों आई हो। जल्दी से जल्दी तुम यहां से चले जाओ। यहां मरने के बाद ही आया जाता है। उसने जोर से इशारा किया और मैं डर गई। जैसे ही भागी मेरी नींद खुल गई। मैं अपने पलंग पर लेटी हुई थी और कांप रही थी। यह सपना मैंने सबको सुनाया और आज इसे लिख रही हूं। ‌मैं सोचती हूं कि यदि सपने में देखा यह सत्य है तो मानव धर्म को कभी मत छोड़ो और अच्छे मार्ग पर चलो। बुराई का मार्ग हमेशा के लिए छोड़ दो। क्योंकि बुराई का नतीजा वहां बहुत बुरा है।

लेखिका का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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