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September 10, 2025

क्राइम लिटरेचर फेस्टिवलः लेखकों ने साझा किए अनुभव, श्रोताओं की थमी सांसे, बांधी कुर्सी की पेटियां

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में दून कल्चरल एण्ड लिटरेरी सोसाइटी की ओर से वेल्हम ब्वॉयज स्कूल में क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल का तीन दिवसीय आयोजन किया जा रहा है। इस तीन दिवसीय समारोह में क्राइम से संबंधित जानेमाने लेखक, फिल्म निर्माता, कलाकार और ऐसे पुलिस अधिकारी भाग ले रहे हैं, जो समय समय पर अपनी लेखनी का लोहा मनवाते रहे हैं। आज फेस्टिवल का तीसरा दिन था, लेकिन आज के सत्र और अधिक दिलचस्प थे। पुलिस लेखकों ने अपने अनुभवों को साझा किया तो श्रोताओं की सांसे थम सी गई। लोगों ने कुर्सी की पेटियां बांध ली और गौर से उन्हें सुनने लगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कार्यक्रम में कई लोग अपने पसंदीदा अपराध लेखकों को सुनने और अपराध फिल्में और शो देखने के लिए बड़े समूहों में आए। इस कार्यक्रम में फिल्म निर्माण, साहित्य, कानून प्रवर्तन और कहानी कहने के क्षेत्र से उल्लेखनीय हस्तियों का विविध जमावड़ा हुआ। सम्मोहक विषयों और कार्यों का एक स्पेक्ट्रम प्रदर्शन पर था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

तीसरे दिन की शुरुआत आकर्षक सत्र ‘जासूसी थ्रिलर’ के साथ हुई । पैनलिस्ट के रुप में शामिल सिद्धार्थ माहेश्वरी ने कहा कि जासूसी उपन्यास को लिखना रोमांचकारी एवं कठिन कार्य है। पैनलिस्ट मुरलीमुर्ति ने कहा कि थिसिस पर कार्य करना, साहित्य लेख से अधिक चुनौतिपूर्ण है। उन्होने कहा कि देश की प्रमुख संस्थाओ में हुइ संदिग्ध जासूसी घटनाओं पर प्रकाश डाला। इस सत्र का संचालन मनिका कौर (मॉडरेटर) ने किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वीरपन्न पर आधारित “ऑपरेशन ककून” के बारे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के विजय कुमार ने बताया कि शुरुआत में वीरपन्न जंगलों में शिकार किया करता था। धीरे-धीरे शिकारी वीरपन्न ने कानून तोड़ते हुए, बड़ा गिरोह बनाकर जंगल पर एकछत्र राज करना शुरू किया। उन्होने बताया कि सामुहिक प्रयास से ही ऑपरेशन ककून को सफलता मिल पाई। दो विभिन्न राज्यों में संचालित ऑपरेशन ककून आपसी समन्वय का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इस सत्र में पैनलिस्ट के रुप में पूर्व डीजी आलोक बी लाल एवं डीवी गुरु प्रसाद सामिल रहे व इस सत्र का संचालन डॉ सृष्टि सेठी (मॉडरेटर) ने किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अगले सत्र में ‘श्रीप्रकाश शुक्ला एनकाउंटर केस पर आधारित’ “ऑपरेशन बाजूका” पर विस्तृत चर्चा की गयी। पैनलिस्ट के रुप में शामिल आरके गोस्वामी एवं वरिष्ठ पुलिस अधिकारी राजेश पाण्डेय ने बताया कि श्रीप्रकाश शुक्ला एनकाउंटर केस की शुरुआत में एसटीएफ के पास अभियुक्त की फोटो नही थी। शातिर श्रीप्रकाश लालबत्ती की कारों का उपयोग कर हाईप्रोफाइल लोगों को किडनेप कर फिरौती मांग करता था। उन्होने कहा पुलिस की लापरवाही की खबरे हमेशा अखबारों के पहले पन्ने पर दिखती है, लेकिन पुलिस की सफलता अखबार के आखरी पन्ने पर ही नजर आती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

उन्होने कहा कि आमतौर पर पाठक साहित्य को दिल से पढ़ता है, किन्तु अपराध साहित्य पढ़ने में दिमाग का प्रयोग करना होता है। इस सत्र का संचालन सोहेल माथुर (मॉडरेटर) ने किया। बाटला हाउस एनकाउंटर केस पर आधारित सत्र में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी करनैल सिंह ने बताया कि शुरुआत में पुलिस दल को हतोउत्साहित करने के लिए एनकाउंटर को फेक बताने की होड मची थी। वहीं उन्होने बहादुर पुलिस अधिकारी मोहन चन्द्र शर्मा की सराहना करते हुए बताया कि एनकाउन्टर्स से एक दिन पूर्व उनका बच्चा अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद उन्होने एनकाउंटर में पुलिस टीम का नेतृत्व किया। इस सत्र का संचालन मनोज बर्तवाल (मॉडरेटर) ने किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रसिद्ध वेब सिरीज “भौकाल” पर आधारित सत्र को शुरू करते हुए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नवनीत सिकेरा ने अपने ट्रैनर एवं पूर्व डीजीपी उत्तरखण्ड अनिल के0 रतूड़ी का खड़े होकर अभिवादन करते हुये बताया कि सर के द्वारा दिया गया प्रशिक्षण आज भी उनके लिए अमुल्य है, उन्होने बताया कि पुलिस को डेडबाडी उठाने से लेकर पोस्टमार्टम तक के कार्यों में सहयोग देना पडता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पैनलिस्ट के रुप में शामिल भौकाल वेब सिरीज के प्रोडयुसर हरमन बावेजा एवं जयशीला बंसल ने कहा की फिल्म बनाने के दौरान पुलिस के नियमों को ध्यान में रखकर फ्रेम बनाना काफी चुनौतिपूर्ण था। इस सत्र का संचालन आरजे काव्य (मॉडरेटर) ने किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

तराई में आतंकवाद शीर्षक पर आधारित विशेष सत्र में पूर्व डीजी आलोक बी लाल ने बताया कि उन दिनों पुलिस के पास हथियार के साथ ही अन्य संसाधनो की भारी कमी थी, रेगुलर क्राईम पर नकेल कसने वाली पुलिस को अचानक से तराई में फैल रहे आतंकवाद से जुझना पड़ा, बावजूद इसके पुलिस ने तराई में आतंवाद को जड़ से समाप्त करने में सफलता पायी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पूर्व डीजीपी अनिल के रतूड़ी ने बताया कि तराई में पोस्टिंग के दौरान एसपी के बंगले पर लगभग 100 पुलिस के जवान तैनात थे ओर हर 30 गज पर एक अलार्म उपलब्ध था, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है पुलिस ने तराई में आतंकवादी घटनाओं के दौरान मुश्किल समय को देखा है। पैनलिस्ट के रुप में शामिल डीजीपी उत्तराखण्ड अशोक कुमार ने बताया कि 1971 की सीधी लडाई के बाद दुशमनो नें प्रोक्सीवॉर की प्रथम शुरुआत तराई में आतंकवाद को प्रायोजित कर की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होने बताया कि तराई क्षेत्र में पोस्टिंग के दौरान 100 से अधिक आतंकवादी घटनाएं हुई। जिसके बाद पुलिस ने मौर्चा समालते हुए, आखिरकार तराई में आतंकवाद को खत्म किया. सत्र का संचालन अनुपमा खन्ना (मॉडरेटर) ने किया। इसके अतिरिक्त अन्य सत्रों में ‘किडनैप्ड’, ‘ए डॉन्स नेमेसिस’, ‘त्रिपुरा ब्रेवहार्ट्स’, ‘द मेकिंग ऑफ स्कैम 1992’, ‘द मेकिंग ऑफ ट्रायल बाय फायर’ और ‘द ट्रू’ जैसे काम निठारी हत्याकांड की कहानी को उत्सुक और जिज्ञासु दर्शकों के सामने पेश किया गया। इसके अतिरिक्त ‘बार्ड ऑफ ब्लड’ और प्रतिष्ठित ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी श्रृंखलाओं में अपराध के चित्रण ने उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

“खाकी में इंसान” विषय पर आयोजित सत्र में उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि ड्यूटी के दौरान विभिन्न घटनाओं से प्रेरित एवं पुलिस की छवि में परिवर्तन करने के लिए पुस्तक लिखने का विचार आया। उन्होनें बताया कि गरीब एवं पीडित व्यक्ति के लिए पीडित केंद्रित पुलिस पर जोर देना जरुरी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होने कहा कि पुलिस को ट्रिपल पॉवर (यूनिफार्म, वेपन एवं कानून) का सदुपयोग करना चाहिए, पुलिसिंग मानव संवेदनशीलता पर केन्द्रित होनी चाहिए। पैनलिस्ट वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, देहरादून अजय सिंह ने कहा कि किताब से रोजमर्रा की पुलिसिंग में सहायता मिलती है, साथ ही सिस्टम को सुधारने के लिए किसी एक को आगे रहकर नेतृत्व करना होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पुस्तक के सहलेखक लोकेश ओहरी ने बताया कि इसमें अच्छी कविताओं एवं विभिन्न प्रसंगों का मिश्रण है। सत्र का संचालन करते हुए रिचा अनिरुद्ध (मॉडरेटर) ने कहा कि यह किताब फिल गुड के साथ ही बहुत ही सकारात्मक संदेश देती है। खाकी में इंसान को पढ़कर इंसानियत पर भरोसा शुरू होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

इसके अलावा, ‘मुंबई मेहेम: एक्सप्लोरिंग द क्रिमिनल्स अंडरबेली’, ‘द इंस्पिरेशन बिहाइंड भौकाल’ और ‘द मेकिंग ऑफ बटला हाउस’ जैसे सत्रों ने विभिन्न संदर्भों में अपराधों की जांच और उनके चित्रण पर अंतर्दृष्टि प्रदान की। इस महोत्सव ने ”खाकी में इंसान – संभावित?”, ‘बिहाइंड द मास्क: फूलन देवी एंड वीरप्पन’, ‘इंडियाज शर्लक होम्स- करमचंद’ जैसी चर्चाओं के साथ अपराध पर भी गहरा प्रभाव डाला।
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Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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