आगामी चुनाव को लेकर सिर जुड़ा रहे कांग्रेस दिग्गज, चेहरे की मांग खारिज, सामूहिक नेतृत्व की पैरवी, निकालेंगे पदयात्रा
उत्तराखंड कांग्रेस में दिग्गजों के अपने अपने गुट और एक दूसरे गुट के खिलाफ बयानबाजी गाहे बहाहे नजर आती है। ऐसे में इसका नुकसान कांग्रेस को पिछले चुनाव और उपचुनाव में भी भुगतना पड़ा। अब कांग्रेस के दिग्गज फिर से सिर से सिर जुड़ाकर भविष्य की रणनीति पर चर्चा कर रहे हैं।
हाल ही में दिल्ली में हुई बैठक को आगामी चुनाव की रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है। कारण ये है कि अगले साल 2022 में यूपी और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में जनवरी माह के बाद कभी भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। इसके बाद कुछ अन्य राज्यों में अक्टूबर माह में चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसे में अब कांग्रेस पर गुटबाजी दूर करके मजबूती से चुनाव मैदान में उतरने की चुनौती है। कांग्रेस के कई दिग्गजों को भय है कि यदि चेहरा घोषित होगा तो असंतुष्ट होकर दूसरे गुट के लोग ही हराने में दमखम लगा देंगे। ऐसा कांग्रेस के कलचर में कई बार देखने को मिल चुका है।
दिल्ली में हुई बैठक में तय किया गया है कि राज्य के ज्वलंत मुद्दों को लेकर राज्य आंदोलनकारियों के ऐतिहासिक शहीद स्मारकों खटीमा से लेकर मसूरी तक परिवर्तन यात्रा निकाली जाएगी। साथ ही चुनाव संचालन समिति का गठन किया जाएगा। मजबूती से सभी एकजुट होकर पार्टी संगठन के लिए कार्य करेंगे।
सूत्रों की मानें तो बीते दिनों हुई पहली बैठक में भी प्रभारी के साथ सीटों के फार्मूले पर भी चर्चा हुई। बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता डा इंदिरा हृदयेश ने हिस्सा लिया था। इस बैठक के साथ आगे होने वाली बैठकों के केंद्र में विधानसभा सीटों का मुद्दा अहम हो चला है।
बताया जा रहा है कि प्रदेश की 50 फीसद यानी 35 सीटों पर प्रत्याशियों को लेकर विवाद की स्थिति न के बराबर है। शेष सीटों के लिए जरूर मारामारी है। पार्टी हाईकमान इस मुद्दे पर अपने पत्तों जल्द खोलने के पक्ष में नहीं है। दरअसल पार्टी नेतृत्व की असली चिंता यही है कि क्षत्रपों की जोड़-तोड़ और खींचतान में कहीं सीट ही हाथ से निकल न जाए।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का हश्र देखने के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रहा है। दिग्गजों को मूल मंत्र यही दिया जा रहा है कि पहले एकजुट होकर चुनावी जंग लड़ी जाए। इसे ध्यान में रखकर ही चुनाव संचालन समिति का गठन पहले करने की तैयारी है।
पार्टी शुरुआती दौर से चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने पर जोर लगाना चाहती है। दिग्गजों को पहले यही समझाया जा रहा है। यह भविष्य ही तय करेगा कि कांग्रेस की चुनावी सियासत पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के मुताबिक करवट लेती है या दिग्गज अपनी बिसात पर पार्टी को चलने के लिए मजबूर करते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
कांग्रेस को मिलकर ही चुनाव लड़ना होगा