बधाई, बधाई, बधाई, दिल पर हाथ रखकर कहो कि हमने कैसी पत्रकारिता अपनाई

सुबह से ही संदेश आने लगे कि हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई। अब यहां भी हमारे मन में सवाल उठा कि कितने पत्रकारिता दिवस होते हैं। इसी माह पहले भी कई ने बधाई दी थी, कुछ ऐसे ही संदर्भ में। मन में सवाल कई उठे और ये सोचकर दब गए कि आज के दिन सवाल कितने उठा रहे हैं। अब ये मत करना कि सवाल किससे पूछे जाएंगे। सवाल का जवाब देने की जिम्मेदारी उन सभी लोगों पर है, जो उनके लिए जिम्मेदार हैं। हम आज इस मुद्दे पर इसलिए बात कर रहे हैं कि आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है। ऐसे में कुछ सवाल हमारे मन में भी हैं। इसलिए प्रयास है कि हम इन सवालों के जवाब की जिम्मेदारी किस पर तय करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पत्रकारिता दिवस और उससे जुड़े सवाल
आज 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस है। भारत में राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस 16 नवंबर को मनाया जाता है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस प्रत्येक वर्ष तीन मई को मनाया जाता है। अब सवाल ये है कि पत्रकारिता का धर्म क्या है। क्या हम सत्ता और जिम्मेदार लोगों से सवाल पूछते हैं। या फिर विपक्ष को ही निशाना बनाकर एक पक्ष की ही बात करते हैं। ये सब मैं इसलिए कह रहा हूं कि क्योंकि, भारत 2025 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में 151वें स्थान पर है। यह सूचकांक प्रेस की आजादी का मूल्यांकन करता है। पिछले साल भारत की रैंकिंग 159 थी। इस सूचकांक में नॉर्वे पहले और इरीट्रिया सबसे निचले पायदान पर हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कितना सच छपा है
एक नाटक के गीत की पंक्तियां आद आती हैं। ये नाटक युगमंच नैनीताल के संस्थापक जहूर आलम के निर्देशन में तैयार किया गया था। इस नाटक का नाम मैं भूल रहा हूं, लेकिन इसके गीत की कुछ लाइन मुझे आज भी याद है। वर्ष 1990 में मैने इसका प्रदर्शन देखा था। इसकी पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं। हो सकता है मैरे शब्द कुछ अलग हो गए हों, लेकिन भाव वही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सब छपा है, सब छपा है। आज इन अखबारों में
मैं छपा है, तू छपा है, ये छपा है, वो छपा है।
देखना है कि कितना सच छपा है।
फिर दूसरे सीन में एक गीत ये भी था कि-
चूना लगाओ पोतो सफेदी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आज की पत्रकारिता का स्वरूप
सच ही तो है कि आज पत्रकारिता का भाव कुछ इसी तरह से रह गया है। जिनसे सवाल पूछने चाहिएं। जिनकी गलतियां हो रही हैं। सवाल ये है कि पहलगाम में आतंकी हमला क्यों हुआ। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। अमेरिका के दखल के आगे हम क्यों झुक गए। इन सवालों के आज की पत्रकारिता में कोई मायने नहीं है। पाकिस्तान के साथ तीन से चार दिन के संघर्ष के दौरान या कहें अघोषित युद्ध के दौरान कैसी पत्रकारिता हुई। देश और विदेश में मीडिया ने कहां से कितना झूठ फैलाया। हमने सीज फायर करके क्या हासिल किया। सेना का इस्तेमाल क्यों वोट की राजनीति के लिए किया जा रहा है। 11 साल में 135 से ज्यादा विदेश यात्राओं के बाद अब ऐसी क्या नौबत आई कि हमें विदेशों को अपनी बात समझाने के लिए सांसदों और अधिकारी भेजने पड़ रहे हैं। सवाल ये भी है कि इन लोगों की मुलाकात क्या उन देशों के विदेश मंत्रियों से या भी राष्ट्राध्यक्ष से हो रही है। एक सवाल ये भी है कि हमारे साथ दुनियां के कितने देश खड़े हुए। सवाल ये भी है कि आपरेशन सिंदूर को लेकर अब रोड शो, लोगों के घरों में सिंदूर भेजने से आम जनता को क्या लाभ मिलेगा। ये सब पत्रकारिता के बिंदु होने चाहिए थे। सब ये सच जानते हैं कि शायद ऐसा नहीं होगा कि ऐसे मामलों में मीडिया भी सवाल करेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
और अंत में
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि जितने भी पत्रकारिता दिवस आते हैं। उन सब के लिए सबको बधाई। साथ ही ये भी पूछना चाहूंगा कि अपने दिल पर हाथ रखकर कहो कि हमने कैसी पत्रकारिता अपनाई। एक खबर आती है कि भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। फिर दूसरी खबर आती है कि छह माह में बनेगा। अच्छी बात है। सवाल यहां भी है कि ये पैसा किसकी जेब में है। क्योंकि 80 करोड़ लोग तो पांच किलो मुफ्त राशन पर निर्भर हैं। प्रति व्यक्ति आय भारत में कितनी है। सिर्फ सौ या दो सौ लोगों की जेब में पैसा ठूंसने के बाद अब किसके लिए ताली बजा रहे हैं। आम लोगों को इसमें क्या मिल रहा है। ऐसा झूठ किसने फैलाया। ये भी देखना होगा। कारण ये है कि हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के दौरान मीडिया ने इतना झूठ फैलाया कि उनकी टीआरपी कम हो गई। इस दौरान लोगों ने आईपीएल के पुराने मैच देखना ज्यादा पसंद किया। मीडिया ने पता नहीं कहां कहां पाकिस्तान पर कब्जा कर दिया। कब्जा किया तो फिर तुर्की के हथियार से परेशानी क्यों हुई। चीन के हथियारों से परेशानी क्यों हुई। हथियारों का बिजनेस है। जो बनाएगा वो बेचेगा भी। हम क्यों नहीं बनाते। क्या मैक इन इंडिया के नाम पर अडानी की ओर से सप्लाई किए जा रहे ड्रोन को मेक इन इंडिया मानेंगे। इजराइल से खरीदे गए ड्रोन पर अपना लेबिल चिपका देने से क्या मेक इन इंडिया हो जाता है। तेजस फाइटर प्लेन के खोल हमने तैयार कर दिए, लेकिन इंजन के लिए अमेरिका का इंतजार है। खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
फिर ध्यान भटकाने के लिए बात हुई स्वदेशी की। अच्छी बात है। गांधीजी ने अपना सूट, कोट, पेंट, टाई त्यागा और लंगोटी में आ गए। इसके बाद उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की बात की । देशभर की जनता ने उनका साथ दिया। देश में अकाल की स्थिति पैदा हुई तो तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पहले अपने परिवार यानि बच्चों के साथ कुछ दिन व्रत रखा। फिर उन्होंने देश के लोगों से अपील की कि आप यदि सप्ताह में एक दिन व्रत रखोगे तो खाद्यान्न संकट कम हो जाएगा। इसका पूरे देशवासियों ने साथ दिया। अब हमारे बड़े वाले ने भी स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने की आह्वान किया। अच्छी बात है। क्या आपको पता है कि उनका चश्मा, उनका पैन, उनकी कार, उनकी घड़ी, उनका हवाई जहाज, उनका सूट, उनका मोबाइल स्वदेशी नहीं है। इनमें एक एक चीज की कीमत लाखों और करोड़ों में है। आप इनका बहिष्कार करो तो हम भी अपने से ऐसी चीजों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। खुद खाएं सोने की थाली में, हमें कहें तुम जाओ नाली में। बाकि बात रही सिंदूर के सम्मान की। पहले ये काम अपने घर से होना चाहिए। हमारे देश की गरीब जनता को धार्मिक उन्माद में भड़काओ और अपने बच्चों को सांसद और विधायक विदेश में पढ़ने भेजें। दिल पर हाथ रखने की बात लिखने के लिए मुझे अदम गोंडवी की कविता प्रेरित करती है। जो इस प्रकार है। —- (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं
दिल रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है
कोठियों से मुल्क़ के मेआर को मत आँकिए
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है
जिस शहर में मुंतज़िम अंधे हों जल्वागाह के
उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है
ये नई पीढ़ी पे निर्भर है वही जजमेंट दे
फ़ल्सफ़ा गाँधी का मौज़ूँ है कि नक्सलवाद है
यह ग़ज़ल मरहूम मंटो की नज़र है दोस्तो
जिसके अफ़साने में ठंडे गोश्त की रूदाद है।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।