उत्तराखंड में धामी नहीं होंगे सीएम का चेहरा, कार्यकर्ताओं के दम पर चुनाव लड़ेगी बीजेपी, बीएल संतोष कर गए थे इशारा
राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष के बाद हाल ही में उत्तराखंड में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने भी इशारों में संतोष की बात को आगे बढ़ाया। उन्होंने 12 अगस्त को कार्यकर्ताओं की बैठक में की कहा कि आज हमारे पास लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं। 2022 में भाजपा 2017 से भी बड़ी विजय हासिल करेगी और 60 से प्लस विधानसभा क्षेत्रों में विजय प्राप्त करेंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा आगामी चुनावों में कमल के निशान तथा 60 प्लस के लक्ष्य के साथ मैदान में उतरेगी। कमल के निशान यानी की भाजपा के बैनर, संगठन के दम पर ही पार्टी चुनाव लड़ने जा रही है। इस इशारे को कोई न समझे तो फिर क्या कहा जाएगा।
नारंगी की तरह है भाजपा
भाजपा नारंगी की तरह नजर आती है। जो बाहर से सारी एक समान दिखती हैं, लेकिन भीतर से कई नेताओं और उनके समर्थकों के गुट हैं। इन नेताओं में कई पूर्व सीएम हैं तो अन्य भी कई दिग्गज हैं। इनकी अपने क्षेत्र में पकड़ है। कार्यकर्ताओं की इनके साथ लंबी चौड़ी फौज जुड़ी है। ऐसे में यदि सीएम का चेहरा घोषित हो जाता है तो सीएम बनने की आस में बैठे बीजेपी के कई नेता और उनके कार्यकर्ता नाराज हो सकते हैं और उनमें उत्साह खत्म हो सकता है। हालांकि भाजपा का कार्यकर्ता अनुसाशित है और सार्वजनिक रूप से पार्टी के खिलाफ नहीं बोलता। फिर भी हर एक ही निष्ठा किसी न किसी नेता से जुड़ी है।
सीएम धामी ने अभी तक नहीं हासिल की कोई उपलब्धि
भाजपा के सूत्र बताते हैं कि सीएम धामी को ही आगामी सीएम का चेहरा घोषित करना भाजपा के लिए मुश्किल है। क्योंकि अभी तक उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसके बल पर चुनाव लड़कर जीता जा सकता है। इसे पार्टी आलाकमान भी अच्छी तरह जानता है। देस्थानम बोर्ड का मामला हो, या फिर ग्रामीण एरिया में प्राधिकरण का मामला। भू कानून हो या फिर अन्य मुद्दे। अभी तक सरकार ने किसी से भी पार पाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए हैं। हालांकि उन पर किसी तरह के आरोप फिलहाल नहीं हैं।
बार बार सीएम बदलने से नाराज हैं कार्यकर्ता
नारंगी के भीतर की हकीकत तो कुछ ये भी बयां करती है कि प्रदेश में बार बार सीएम बदलने से भाजपा की हो किरकिरी हुई, उससे उबरना भी मुश्किल दिख रहा है। साढ़े चार साल में पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत, फिर तीरथ सिंह रावत, उसके बाद पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया गया है। ऐसे में कार्यकर्ताओं का उत्साह भी ठंडा पड़ने लगा है। नाराजगी का आलम यहां तक है कि धामी के शपथ ग्रहण समारोह में देहरादून महानगर के कार्यकर्ताओं ने खुद को अलग रखा। वे इस कार्यक्रम में नहीं गए।
पूर्व सीएम की फौज, कई दावेदार
भाजपा में इस समय पूर्व सीएम की फौज है। इनमें कई सीएम पद के दावेदार हैं। इनमें भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विजय बहुगुणा, तीरथ सिंह रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत, भुवन चंद्र खंडूड़ी सहित लंबी चौड़ी पूर्व सीएम की फौज है। इन सभी के अपने अपने समर्थक हैं। ऐसे में इनमें भी कई सीएम पद के दावेदार हो सकते हैं या फिर वे किसी को सीएम बनाना चाहते हैं। ऐसे में यदि चुनाव से पहले चेहरा घोषित किया गया तो इनके समर्थक भी बिखर सकते हैं।
ये भी हैं दावेदार
पूर्व सीएम के अलावा भाजपा में कई कद्दावर नेता ऐसे हैं, जिनका गाहे बगाहे सीएम के दावेदारों के रूप में नाम सामने आता रहा है। इनमें सांसद अजय भट्ट, सुबोध उनियाल, हरक सिंह रावत, राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी, सतपाल महाराज, धनसिंह रावत हैं। सूत्र बताते हैं कि नारंगी के भीतर इन लोगों की बहुत अहमियत है। सभी के साथ कार्यकर्ताओं और समर्थकों की लंबी लाइन है। ऐसे में यदि पहले ही सीएम का चेहरा घोषित किया गया तो चुनाव लड़ने में दिक्कत हो सकती है।
कार्यकर्ता ही हैं मुख्य ताकत
इस समय बीजेपी आलाकमान भी जानता है कि पिछले साढ़े चार साल में उत्तराखंड में सरकार की जो किरकिरी हुई, उसके बल पर चुनाव जीतना संभव नहीं है। ऐसे में सरकार के पास भी ऐसी कोई उपलब्धि फिलहाल नहीं है कि जनता के बीच उसे लेकर जाए और लोग हाथोंहाथ ले। ऐसी स्थिति में सिर्फ संगठन के दम पर ही चुनाव जीतने का लक्ष्य रखा जाएगा। तभी बीजेपी के नेता बार बार ये ही दोहरा रहे हैं कि कमल के निशान और 60 प्लस के लक्ष्य को लेकर चुनाव में भाजपा उतरेगी। ये तो सभी जानते हैं कि भाजपा का निशान कमल है। फिर इसे दोहराने का मतलब क्या है। मतलब ये है कि चेहरा कोई नहीं होगा। सिर्फ पार्टी के झंडे और संगठन के बल पर ही चुनाव लड़ा जाएगा।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।