उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में शुरू हुआ चिपको आंदोलन 2.0, रोजाना दो सिगरेट के बराबर हवा में सांस ले रहे नागरिक
उत्तराखंड में पेड़ों के अंधाधुंध कटान के चलते पर्यावरण पर संकट छा रहा है। इसके बावजूद सरकार को शायद इन बातों से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में एक बार फिर से सामाजिक संगठनों और पर्यावरण प्रेमियों ने चिपको आंदोलन शूरू कर दिया है। इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन 2.0 रखा गया है। चिंता जताई गई कि देहरादून में रोजाना हर व्यक्ति दो सिगरेट के बराबर प्रदूषित हवा सांस में ले रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देहरादून में विभिन्न सड़कों के निर्माण के नाम पर पेड़ों का कटान जारी है। पर्यवरण प्रेमी इसके खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। देहरादून से ऋषिकेश का रास्ता हो या फिर मसूरी के लिए अलग सड़क का निर्माण। इन सबके लिए हजारों पेड़ों का कटान प्रस्तावित है। ऐसे में पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में देहरादून और उसके आसपास के क्षेत्रों में पर्यावरणीय असंतुलन तेजी से बढ़ा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि बढ़ते तापमान, घटते भूजल स्तर और खराब होती वायु गुणवत्ता लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं। हाल के वर्षों में यहाँ का तापमान 43°C तक पहुँच चुका है। भूजल स्तर 200 फीट से नीचे चला गया है, और वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 80 से 90 के बीच बना हुआ है, जिसका मतलब है कि लोग रोज़ाना औसतन दो सिगरेट के बराबर प्रदूषित हवा में साँस ले रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन गंभीर संकेतों के बावजूद, बिना किसी दीर्घकालिक पर्यावरणीय योजना के बड़ी बड़ी विकास परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं। उत्तराखंड के लोग लंबे समय से वनों की अंधाधुंध कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के विनाश का विरोध कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि उत्तराखंड में सतत विकास (Sustainable Development) को प्राथमिकता दी जाए। इसी संकल्प के साथ ‘चिपको आंदोलन 2.0’ का आयोजन आज 16 मार्च 2025 को किया गया। ऋषिकेश जौलीग्रांट हाईवे पर सातवें मोड़ पर पेड़ों के कटान के खिलाफ पर्यावरण प्रेमी एकजुट हुए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हैं मुख्य मांगे
1.ऋषिकेश-जोलीग्रांट हाईवे परियोजना और इसके तहत 3,300 पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई जाए। वर्तमान में, नेपाली फार्म से भानियावाला तक हाईवे पहले से मौजूद है, फिर भी नए हाईवे के नाम पर हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं। यह परियोजना उत्तराखंड में सतत विकास की मिसाल बन सकती है, यदि पेड़ों का संरक्षण किया जाए। यह न केवल पर्यावरण बल्कि वन्यजीवों और जैव विविधता के लिए भी आवश्यक है।
2.देहरादून और इसके आसपास के पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में वनों के व्यावसायिक उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। भविष्य की सभी परियोजनाओं में सतत विकास को प्राथमिकता दी जाए। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को अनिवार्य बनाया जाए ताकि कोई भी विकास परियोजना जंगलों के विनाश की कीमत पर न हो।
3.देहरादून की पारंपरिक नहरों का संरक्षण और पुनरुद्धार किया जाए। ये नहरें भूजल रिचार्ज और अत्यधिक गर्मी के दौरान तापमान को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
4.देहरादून की प्रमुख नदियों (रिस्पना, बिंदाल और सौंग) को पुनर्जीवित किया जाए। ये नदियाँ जल संरक्षण के लिए बेहद जरूरी हैं, लेकिन बढ़ते प्रदूषण और अतिक्रमण के कारण इनका अस्तित्व खतरे में है। इन्हें प्लास्टिक कचरे और अनुपचारित सीवेज से बचाया जाना चाहिए।
5.हरे भरे स्थानों को बढ़ावा देने के लिए सख्त नियम लागू किए जाएं। देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में आने वाली सभी नई आवासीय और व्यावसायिक परियोजनाओं में कम से कम 25% भूमि हरित क्षेत्र के लिए आरक्षित होनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
6.वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए त्वरित कार्रवाई की जाए। वर्तमान AQI 80-90 के बीच बना हुआ है, जो गंभीर स्वास्थ्य खतरे पैदा कर रहा है। यहाँ तक कि नवजात शिशु भी जहरीली हवा में साँस ले रहे हैं। इस संकट को दूर करने के लिए ठोस उपाय किए जाने चाहिए।
7.1980 के वन अधिनियम में संशोधन कर जंगलों में लगने वाली आग को रोकने के लिए प्रभावी रणनीतियाँ अपनाई जाएं। उत्तराखंड के जंगल हर साल भयानक आग की चपेट में आते हैं, जिससे लाखों पेड़ नष्ट हो जाते हैं। चीड़ के पेड़ों (Chir Pine) को नियंत्रित रूप से हटाने और आग से बचाव के लिए बेहतर उपाय किए जाने चाहिए।
8.सभी नागरिकों, स्थानीय समुदायों और व्यापार संगठनों से अपील है कि वे इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाएँ और इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाएँ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये रही खासियत
आंदोलन के दौरान पर्यावरणीय जागर अनुष्ठान का आयोजन किया गया। इसमें पद्मश्री बसंती देवी ने पारंपरिक लोकगीत (जागर) और वृक्ष पूजन का नेतृत्व किया। साथ ही गौरा देवी की शपथ ली गई। इसमें महिलाओं ने गौरा देवी के रूप में वृक्षों की रक्षा की शपथ ली। जनता हस्ताक्षर अभियान के तहत चार्ट पेपर या सफेद कपड़ों पर नागरिकों ने अपने हस्ताक्षर कर सरकार से पर्यावरण संरक्षण की अपील की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये रहे मुख्य वक्ता
पद्मश्री डॉ. माधुरी बर्तवाल, वह प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और लोक कलाकार हैं। पद्मश्री कल्याण सिंह रावत मैती आंदोलन के संस्थापक हैं। लोकगायिका कमला देवी एक पर्यावरण कार्यकर्ता भी हैं। पद्मश्री बसंती देवी एक जागर कलाकार और पर्यावरणविद् हैं। इरा चौहान सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अनूप नौटियाल एक पर्यावरणविद् और समाज सुधारक हैं। सूरज सिंह नेगी सामाजिक कार्यकर्ता और जलवायु रक्षक हैं। नितिन मलेथा पर्यावरण कार्यकर्ता और शोधकर्ता हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये की गई अपील
आंदोलनकारियों ने कहा कि यह आंदोलन सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं है। यह हमारे भविष्य के लिए एक संघर्ष है। हम उत्तराखंड के लोगों और देशभर के सभी जागरूक नागरिकों से चिपको आंदोलन 2.0 में शामिल होने और इस अभियान को मजबूती देने की अपील करते हैं। यह सिर्फ पेड़ों को बचाने की बात नहीं है। यह हमारी हवा, पानी, जंगल और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा का प्रश्न है। अगर हमने अब कदम नहीं उठाया, तो आने वाली पीढ़ियाँ इसकी भारी कीमत चुकाएँगी।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।




