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November 13, 2024

नहाय खाय के साथ 28 अक्टूबर से शुरू होगा छठ पर्व, जानिए पूजन की विधि, छठ पूजा की मान्यता

छठ पर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर को नहाय-खाय के साथ हो रही है। इसके बाद क्रमशः खरना, शाम का अर्घ्य और सुबह का अर्घ्य निवेदित किया जाएगा। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में छठ पर्व को काफी उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। अब तो उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में भी ये त्योहार मनाया जाने लगा है। छठ पर्व को लेकर बहुत सारी धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। मान्यता है इस व्रत को करने से सूर्य देव और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इससे अखंड सौभाग्य के साथ-साथ संतान को उत्तम स्वास्थ्य का वरदान मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि जो कोई छठ पर्व को पूरे विधि-विधान के साथ करता है, उसकी हर मनोकामना सूर्य देव पूरी करते हैं। छठ पूजा में मुख्य रूप से सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ-साथ छठी मैया की पूजा होती है। इस साल छठ पूजा की मुख्य तिथि 30 और 31 अक्टूबर को है। दरअसल 30 अक्टूबर को संध्याकालीन अर्घ्य है, जबकि 31 अक्टूबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

छठ पूजा के लिए जरूरी सामग्री
छठ पूजा के लिए कुछ सामग्रियों की विशेष आवश्यकता होती है। माना जाता है कि इन पूजन सामग्रियों के बिना छठ पर्व पूरा नहीं होता है। छठ पूजा की पूजन सामग्रियों में बांस की टोकरी, सूप, नारियल, पत्ते लगे गन्ने, अक्षत, सिंदूर, धूप, दीप, थाली, लोटा, नए वस्त्र, नारियल पानी भरा, अदरक का हरा पौधा, मौसम के अनुकूल फल, कलश (मिट्टी या पीतल का) , कुमकुम, पान, सुपारी की जरूरत होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

छठ पूजा की विधि
छठ पूजा के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान आदि से निवृत होकर छठ व्रत का संकल्प लें. इस क्रम में सूर्य देव और छठी मैया का ध्यान करें। व्रती को छठ पूजा के दिन अन्न ग्रहण करना नहीं होता है. संभव हो तो निर्जला व्रत रखकर उसका विधिवत पालन करें। छठ के पहले दिन संध्याकाली अर्घ्य होता है. जिसमें डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। ऐसे में इस दिन सूर्यास्त से थोड़ा पहले छठ घाट पर पहुंचे और वहां स्नान करने के बाद अस्ताचलगामी सूर्य को पूरी निष्ठा के साथ अर्घ्य दें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बांस या पीतल की टोकरी या सूप का उपयोग किया जाता है। ऐसे में बांस या पीतल की टोकरी का इस्तेमाल करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें। छठ पूजा में जिन टोकरियों या सूपों का इस्तेमाल किया जाता है। उसमें फल, फूल, गन्ने, पकवान इत्यादि समेत पूरी पूजन सामग्रियों को अच्छी प्रकार रखें। इसके साथ ही सूप या टोकरी पर सिंदूर लगाएं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सूर्य देव को अर्घ्य देते वक्त टोकरी में सभी पूजन सामग्रियों का होना बेहद जरूरी होता है। ऐसे में इस बात का विशेष ध्यान रखें। इसके साथ ही पूरे दिन और रात भर निर्जला व्रत रखकर अगले दिन सुबह उगते हुए सूर्य को जल अर्पित करें। सूर्य देव को अर्घ्य निवेदित करने के साथ ही मन ही मन उनसे अपनी मनेकामना कहें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

छठ पूजा के दौरान किया जाता है ऐसा
छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय होता है। इस दिन व्रती स्नान-ध्यान करने के बाद कद्दू-भात का सेवन करती हैं। छठ व्रती को नहाय-खाय के दिन शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करना होता है। इसके साथ ही इस दिन जब छठ व्रती भोजन कर लेती हैं तभी घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं। इस साल छठ पूजा का नहाय खाय 28 अक्टूबर को है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना करते हैं। इस दिन व्रती महिलाएं स्नान के बाद चावल और गुड़ का खीर बनाकर खरना माता को अर्पित करती हैं। शाम को पूजा के बाद घर सभी सदस्य पहले खरना प्रसाद ग्रहण करते हैं फिर भोजन करते हैं। खरना प्रसाद को बेहद शुभ माना जाता है। इस साल छठ पर्व का खरना 29 अक्टूबर को है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

रामायण से मान्यता
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।

महाभारत से
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पुराणों से मान्यता
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
नोटः यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि से लोकसाक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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