विज्ञान का करिश्मा, पैदा हुआ तीन पैरेंट वाला दुनिया का पहला सुपरकिड, नहीं होगा इन बीमारियों का असर, जानिए विशेषता
ये विज्ञान का युग है। ऐसे में जो चमत्कार लगता था, अब वह साकार होता नजर आ रहा है। चांद और मंगल तक विज्ञान ने पहुंच बना ली है। वहां जीवन की संभावनाएं खोजी जा रही है। वहीं, धरती पर भी विज्ञान के करिश्में आज पूरी दुनिया देख रही है। मेडिकल के क्षेत्र में अनोखे कारनामों की जानकारी हर दिन मिल जाती है। अब बड़ी खबर ये है कि मेडिकल साइंस की तरक्की का प्रतीक दुनिया का पहला सुपरकिड (Superkid) पैदा हो चुका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खास बच्चे को किसी भी तरह की जेनेटिक बीमारी नहीं होगी और न ही कोई ऐसा नुकसानदेह जेनेटिक म्यूटेशन का वह शिकार होगा, जिसका इलाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि इसे तीन लोगों के डीएनए को मिलाकर बनाया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जानिए कहां पैदा हुआ ये बच्चा
यह बच्चा इंग्लैंड में पैदा किया गया है। माता-पिता के डीएनए के अलावा इस बच्चे में तीसरे इंसान का डीएनए भी डाला गया है। DNA की खासियत को बरकरार रखने के लिए IVF तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इस बच्चे को माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन ट्रीटमेंट (MDT) तकनीक से बनाया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
थ्री-पैरेंट बेबी है यह बच्चा
वैज्ञानिकों ने एक स्वस्थ महिला के Eggs से ऊतक लेकर IVF भ्रूण तैयार किया था। इस भ्रूण में बायोलॉजिकल माता-पिता के स्पर्म और Eggs के माइटोकॉन्ड्रिया (कोशिका का पावर हाउस) को साथ मिलाया गया। माता-पिता के डीएनए के अलावा बच्चे के शरीर में तीसरी महिला डोनर के जेनेटिक मटेरियल में से 37 जीन को डाला गया। यानी असल में यह थ्री-पैरेंट बेबी (Three-parent Baby) है। हालांकि, 99.8 फीसदी DNA माता-पिता का ही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जेनेटिक बीमारियों को रोकना था मकसद
MDT को MRT यानी माइटोकॉन्ड्रियल रीप्लेसमेंट ट्रीटमेंट भी कहा जाता है। इस पद्धत्ति को इंग्लैंड के डॉक्टरों ने विकसित किया है। यह बच्चा भी इंग्लैंड के ही न्यूकैसल फर्टिलिटी सेंटर में पैदा किया गया है। दुनिया में करीब हर 6 हजार में से एक बच्चा माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों, यानी गंभीर जेनेटिक बीमारियों से पीड़ित है। इस बच्चे को बनाने के पीछे वैज्ञानिक मकसद यही था कि माता-पिता की जेनेटिक बीमारियां बच्चे में ट्रांसफर न हों। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जानिए MDT प्रोसेस के बारे में
सर्वप्रथम पिता के स्पर्म की मदद से मां के एग्स को फर्टिलाइज किया जाता है। उसके बाद किसी दूसरी स्वस्थ महिला के एग्स से न्यूक्लियर जेनेटिक मटेरियल निकाल कर उसे माता-पिता के फर्टिलाइज एग्स से मिक्स कर दिया जाता है। इसके बाद इस एग पर स्वस्थ महिला के माइटोकॉन्ड्रिया का प्रभाव हो जाता है। इस सब के बाद इसे भ्रूण में स्थापित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में काफी सावधानी बरतनी पड़ती है और मेडिकल साइंस के नजरिए से इस प्रक्रिया में कई तरह की चुनौतियां और खतरे भी रहते हैं।
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Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।