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March 10, 2025

देहरादून में 504 घरों पर बुलडोजर अभियान, राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों का शहरी विकास मंत्री के आवास पर जोरदार प्रदर्शन

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में 504 घरों पर चल रहे बुलडोजर अभियान का विरोध कर रहे विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों का गुस्सा फूट पड़ा। आज गुरुवार छह मई को सीआईटीयू, एटक, इंटक, सीपीएम, सपा, आयूपी, बसपा, किसान सभा, एसएफआई, पीएसएम, बीजीवीएस से जुड़े लोगों के साथ ही बुलडोजर से प्रभावित होने वाले लोगों ने उत्तराखंड के शहरी विकास मंत्री डॉ. प्रेमचंद अग्रवाल के आवास पहुंचकर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान मंत्री को ज्ञापन भी सौंपा गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गौरतलब है कि देहरादून में रिस्पना नदी किनारे रिवर फ्रंट योजना की तैयारी है। ये भवन नगर निगम की जमीन के साथ ही मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की जमीन पर हैं। देहरादून में रिस्पना नदी के किनारे वर्ष 2016 के बाद 27 मलिन बस्तियों में बने 504 मकानों को नगर निगम, एसडीडीए और मसूरी नगर पालिका ने नोटिस जारी किए थे। इसके बाद सोमवार 27 मई को मकानों को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की गई। 504 नोटिस में से मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण ने 403, देहरादून नगर निगम ने 89 और मसूरी नगर पालिक ने 14 नोटिस भेजे थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नगर निगम की सीमा में बने मकानों में 15 लोगों ने ही अपने साल 2016 से पहले के निवास के साक्ष्य दिए हैं। 74 लोग कोई साक्ष्य नहीं दिखा पाए हैं। उन सभी 74 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। अधिकांश लोगों ने नोटिस के बाद अपने अतिक्रमण खुद ही हटा लिए थे। जिन्होंने नहीं हटाए थे, उनको अभियान के तहत हटाया जा रहा है। इस अभियान के खिलाफ विभिन्न विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ ही सामाजिक संगठनों की ओर से धरने और प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जुलूस के रूप में मंत्री के आवास पहुंचे प्रदर्शनकारी
आज बड़ी संख्या में राजनैतिक दलों, सामाजिक संगठनों जिसमें से जुड़े कार्यकर्ताओं ने प्रभावितों के साथ मिलकर जलूस निकाला और शहरी विकास मंत्री डॉ. प्रेमचंद अग्रवाल के आवास पहुंचे। इस मौके पर मंत्री के पीआरओ ताजेंद्र नेगी को शहरी विकास मंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में मांग की गई कि बस्तियों को उजाड़ने से रोका जाए। किसी को बेघर न किया जाये। सभी बस्तियों के नियमितीकरण या पुनर्वास के लिये सरकार तत्काल कानून लाये। मंत्री के पीआरओ ने प्रदर्शनकारियों को आश्वासन दिया वह एक दो दिन में मंत्री से वार्ता करेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

इस अवसर पर आयोजित को शंकर गोपाल, लेखराज, राजेन्द्र पुरोहित, अनन्त आकाश, अनिल कुमार, गंगाधर नौटियाल, हेमा वोरा, नितिन मलेठा, हिमांशु चौहान, हरबीर कुशवाहा, एसएस रजवार आदि सम्बोधित किया। प्रदर्शनकारियों में रामसिंह भण्डारी, रविन्द्र नौडियाल, विनोद‌ बडोनी, विजय भट्ट, शैलेन्द्र परमार, हरीश कुमार, गुरू प्रसाद पेटवाल,रेखा आदि शामिल थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ज्ञापन के बिंदु
-मज़दूरों को न कोई कोठी मिलने वाली है और न ही कोई फ्लैट। 2016 में ही बस्तियों का नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए कानून बना था। साथ ही प्रधानमंत्री का आश्वासन था कि वर्ष 2022 तक हर परिवार को घर मिलेगा। साथ ही उत्तराखंड सरकार ने 2021 तक सारी बस्तियों का नियमितीकरण या पुनर्वास की बात कही थी। दोनों पर बेहद कम काम हुआ है। इसकी वजह से यह स्थिति आज बनी है, तो इस स्थिति के लिए सरकार पूरी तरह से ज़िम्मेदार है।
-बड़ा जन आंदोलन होने के बाद 2018 में सरकार अध्यादेश लाई थी। इसमें लिखा गया था कि तीन साल के अंदर बस्तियों का नियमितीकरण या पुनर्वास होगा। वह कानून 2024 में खत्तम होने वाला है। आज तक किसी भी बस्ती में मालिकाना हक़ नहीं मिला है। वह कानून खत्म होने के बाद किसी भी बस्ती को उजाड़ा जा सकता है, चाहे वे कभी भी बसे हों। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

-बेदखली के लिए क़ानूनी प्रक्रिया है, लेकिन वर्त्तमान अभियान में कानून को ताक पर रख कर मनमानी तरीकों से अनाधिकृत रुप सेअधिकारी लोगों को बेदखल कर रहे हैं। यह क़ानूनी अपराध है।
-देहरादून की नदियों एवं नालियों में होटल, रिसोर्ट, रेस्टोरेंट और अनेक अन्य निजी संस्थानों द्वारा और सरकारी विभागों की ओर से भी  अतिक्रमण हुए हैं।  हरित प्राधिकरण के आदेश में कोई ज़िक्र नहीं है कि कार्रवाई सिर्फ मज़दूर बस्तियों के खिलाफ करनी है। किसी भी अन्य बड़े या सरकारी अतिक्रमणकारी को नोटिस तक नहीं दिया गया है। इसलिए  यह अभियान न केवल गैर क़ानूनी है, बल्कि भेदभावपूर्ण भी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

-सरकार की लापरवाही की वजह से लोग बेघर हो जाये। इससे ज्यादा कोई जन विरोधी नीति नहीं हो सकती है। बार बार सरकार कोर्ट के आदेशों का बहाना बना कर लोगों को उजाड़ने की कोशिश कर रही है। आपकी सरकार आने के बाद यह तीसरी बार हो रहा है।
-इस गैर क़ानूनी अभियान पर तुरंत रोक लगाया जाये और सरकार अध्यादेश द्वारा तत्काल कानून बना दे कि बिना पुनर्वास किसी को बेघर नहीं किया जायेगा। अपने ही वादों के अनुसार सरकार युद्धस्तर पर नियमितीकरण की प्रक्रिया को शुरू कर दे। सभी परिवारों एवं मज़दूरों के लिए किफायती घरों का व्यवस्था पर काम करे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये दिया गया तर्क
-2016 से पहले बसे लोगों की सम्पति को क़ानूनी सुरक्षा मिला है। लोगों के साक्ष्यों पर मनमानी आपत्तियां की जा रही हैं। कांठ बांग्ला बस्ती के लोगों के बिजली बिलों को नहीं लिया जा रहा है। इसके लिए यह तर्क दिया जा रहा है कि उस पर “कांठ बांग्ला बस्ती” लिखा हुआ है, जबकि MDDA के समस्त कर्मचारियों को पता है कि कांठ बांग्ला बस्ती तरला नागल में ही पड़ती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

-कुछ लोगों के पास नगर निगम की हाउस टैक्स रसीद है। इसमें स्पष्ट रूप से दिखाया जा रहा है कि 2020 तक पांच साल का टैक्स लिया गया है, लेकिन उनको भी कहा जा रहा है कि यह सबूत नहीं है। आवेदकों को बार बार अन्य विभागों में भेजा जा रहा है, जबकि कागज़ से ही स्पष्ट है कि प्रभावित लोग 2016 से पहले रह रहे हैं। दैनिक दिहाड़ी मज़दूरी से कमानेवाले परिवारों को इस रूप में अनावश्यक परेशान करना जन विरोधी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

– लोगों को अपना साक्ष्य पेश करने के लिए मात्र दो से छह दिन तक का समय दिया गया है। MDDA की और से जारी किया गया नोटिसों के ऊपर 22 तारीख अंकित है, जबकि हकीकत में 22 तारीख को यह नोटिस पहुंचा नहीं, यहाँ तक कि कुछ लोगों को 27 और 28 को ही नोटिस मिला है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

– यह बेदखली की प्रक्रिया कौन सी क़ानूनी प्रावधान के तहत की जा रही है। इसका ज़िक्र कहीं नहीं है। हरित प्राधिकरण के आदेश में भी स्पष्ट है कि बेदखली कानून के अनुसार किया जायेगा। चल रही प्रक्रिया में मौजूदा कानून यानी UP पब्लिक प्रेमिसेस (एविक्शन ऑफ़ अनऑथोराइज़्ड ऑक्यूपेशन) अधिनियम का घोर उल्लंघन हो रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

– उच्चतम न्यायालय के अनेक फैसलों के अनुसार बिना पुनर्वास का व्यवस्था कर किसी को बेघर करना संविधान के खिलाफ है। इस अभियान के दौरान ऐसे कोई व्यवस्था नहीं दिख रहा है।
– राष्ट्रीय हारीत प्राधिकरण के आदेश का उल्लंघन करते हुए सिर्फ और सिर्फ मज़दूर बस्तियों पर कार्रवाई की जा रही है। बिल्डरों, होटलों और सरकारी विभाग द्वारा किये गए अतिक्रमणों पर कार्यवाही नहीं हो रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये की गई हैं मांग
– कर्मचारियों को निर्देशित किया जाए कि किसी भी साक्ष्य या दस्तावेज को वे लें, अगर कोई भी साक्ष्य है, जिससे पता चलता है कि लोग 2016 से पहले बसे हैं, तो प्रभावित परिवार का नाम को अवैध अतिक्रमण की सूची से हटाया जाये।
– किसी को भी बेदखल करने से पहले क़ानूनी प्रक्रिया को पूरा करे। साक्ष्य पेश करने के लिए कम से कम तीस दिन का समय दिया जाये और हर व्यक्ति की सुनवाई हो।
– बेदखल करने से पहले कानून और उच्चतम न्यायलय के फैसलों के अनुसार नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए कदम उठाया जाये।
– कार्यवाही पूरी तरह से निष्पक्ष हो और बेदखली की कार्यवाही बड़े इमारतों एवं प्रतिष्ठानों से शुरू करें।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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