धर्म के नाम पर हत्या पर उबाल, जाति के नाम पर हत्या पर चुप्पी, यूपी में युवक को बम से उड़ाने वाले पकड़ से बाहर
इन दिनों राजस्थान के उदयपुर में धर्म के नाम पर हुई हत्या को लेकर पूरे देशभर में उबाल मचा हुआ है। सोशल मीडिया में भड़काऊ पोस्ट डालकर लोगों को उकसाने वाले भी सक्रिय हैं।
इन दिनों राजस्थान के उदयपुर में धर्म के नाम पर हुई हत्या को लेकर पूरे देशभर में उबाल मचा हुआ है। सोशल मीडिया में भड़काऊ पोस्ट डालकर लोगों को उकसाने वाले भी सक्रिय हैं। हत्या किसी की भी हो, निंदनीय है। हत्यारे पुलिस की गिरफ्तर में होने चाहिए और उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए। वहीं, हत्या को अलग अलग चश्मे से नहीं देखना चाहिए। जिस राजस्थान में हुई हत्या को लेकर लोग हल्ला मचा रहे हैं, वहीं यूपी में युवक की हत्या को लेकर ऐसे लोगों के मुंह से दो शब्द तक नहीं निकल रहे हैं। हत्या के सात दिन बाद भी युवक को बम से उड़ाने वालों को यूपी पुलिस गिरफ्तार तक नहीं कर पाई है। इस किशोर की चारपाई के नीचे बम लगाकर हत्या की गई थी। इससे उसके चीथड़े उड़ गए थे। कन्हैया लाल की हत्या को आतंकी घटना से जोड़ते हुए इसकी जाँच गृह मंत्रालय ने NIA को सौंप दिया है। जांच होनी भी चाहिए और यदि ये आतंकवादी घटना है तो उससे जुड़े अन्य लोगों की गिरफ्तारी भी होनी चाहिए। वहीं, यूपी की घटना को लेकर भी सरकार को संवेदनशील रहना चाहिए। क्योंकि हत्या किसी की भी हो, हत्यारा पकड़ा जाना चाहिए।उत्तर प्रदेश के राजधानी लखनऊ जनपद में जातिगत विद्वेष को लेकर हत्या की वारदात हुई। यूपी में दावा किया जाता है कि ये राज्य अपराधीमुक्त है। इसके बावजूद अब तक इस मामले में एक भी आरोपी गिरफ्तार नहीं हुआ है। लखनऊ के माल क्षेत्र के गोपरामऊ पंचायत के रानियामऊ में रहने वाले मेवालाल रावत के बेटे शिव कुमार रावत (18) को कथित जातिय द्वेष के कारण उच्च जाति (सवर्ण) दबंगों ने सोते समय खटिया ने नीचे बम रखकर उड़ा दिया। इससे युवक के चीथड़े उड़ गए।
जानकारी के मुताबिक मेवालाल लम्बे समय से बीमारी के कारण शारीरिक मेहतन करने में असमर्थ हैं। उसका एक बेटा बेटा शिव कुमार रावत (18) हरिद्वार में मजदूरी करता था। इससे परिवार का पालन पोषण होता था। 22 जून को दोपहर 12 बजे शिव कुमार रावत हरिद्वार से लौटा था। रात में खाना खाने के बाद बाहर चारपाई लगा ली और सो रहा था। चारपाई के नीचे किसी ने बम लगा दिया और धमाके के साथ शिव कुमार के चीथड़े उड़ गए।
इकलौते बेटे शिवकुमार को मेवालाल का परिवार ट्रामा सेंटर ले गया। जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। पीड़ित पिता की तहरीर पर पुलिस ने सवर्ण जाति के लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की है। हालाँकि अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुयी है। जयपुर और लखनऊ की दोनों घटनाएं एक समान है। अगर इन घटनाओं का आकलन करते हैं तो एक घटना में धर्म के नाम पर हत्या हुई है तो दूसरी जाति के नाम पर। एक घटना को लेकर कार्रवाई होती है और राजनीतिक बयानबाजी का दौर शुरू हो जाता है। वहीं, यूपी में बीजेपी शासित सरकार है तो इस घटना को लेकर नेता भी मौन हैं। नामजद रिपोर्ट के बाद भी कोई गरिफ्तारी नहीं हुयी है।
भारत जैसे देश में आजादी के 70 साल बाद भी जाति के नाम पर हिंसा और हत्या का कोई नया मामला नहीं। चुनाव के समय जिन अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोग पैर छूते हैं, उनके घर खाना खाते हैं, चुनाव खत्म होते ही उनके पैर तोड़े जाते है। उनके साथ बर्बरतापूर्वक हिंसा की घटनाएं सामने आने लगती है। उदयपुर और लखनऊ की घटना एक आतंकी घटना के सामान है। कार्रवाई के नाम पर कथित भेद भाव है। एक पर NIA की जाँच तो एक पर आवाज ही नहीं। ऐसी घटनाओं पर कानूनी प्रक्रिया तेजी लाने और निष्पक्ष तरीके से जांच की जरूरत है। ताकि लोगों का सरकार और संवैधानिक न्यायिक प्रक्रिया पर विश्वास बना रहे।





