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December 23, 2024

भाजपा सांसद वरुण गांधी ने उठाया जनता का सवाल, कहा-जब अग्निवीर पेंशन के हकदार नहीं तो जनप्रतिनिधियों को क्यों

बीजेपी नेता वरुण गांधी अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए अक्सर चर्चा पर रहते हैं। वह अपनी ही सरकार की नीतियों की आलोचना से पीछे नहीं रहते। ऐसे में बीजेपी नेतृत्व भी उनसे खफा रहता है।

बीजेपी नेता वरुण गांधी अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए अक्सर चर्चा पर रहते हैं। वह अपनी ही सरकार की नीतियों की आलोचना से पीछे नहीं रहते। ऐसे में बीजेपी नेतृत्व भी उनसे खफा रहता है। बीजेपी कार्यसमिति से उन्हें और उनकी मां दोनों को दरकिनार भी कर दिया गया। वहीं, वरुण गांधी समाज के हर ज्वलंत मुद्दों को सोशल मीडिया में उठाने में पीछे नहीं रहते। अग्निपथ योजना को लेकर उन्होंने ऐसा ही सवाल उठा दिया, जो आमजन की ओर से भी पूछा जा रहा है।
भाजपा नेता वरुण गांधी केंद्र की अग्निपथ योजना में रिटायर्ड सेना के जवानों को पेंशन नहीं दिये जाने पर मुखर आवाज उठाई है। इस योजना के तहत रिटायर होने के बाद अग्निवीरों को पेंशन नहीं दी जाएगी। इसके बाद से सरकार की ओर से सांसदों और विधायकों को दी जाने वाली करोड़ों की पेंशन को लेकर लोग लगातार सवाल उठा रहे हैं। इसी को लेकर वरुण गांधी ने शुक्रवार को एक ट्वीट किया। इसमें उन्होंने सांसद के तौर पर मिलने वाली पेंशन को छोड़ने की बात कही। साथ ही उन्होंने सभी सांसदों और विधायकों से सवाल भी किया- क्या हम विधायक और सांसद अग्निवीरों के लिए पेंशन नहीं छोड़ सकते?
वरुण ने ट्वीट कर कहा कि अल्पअवधि की सेवा करने वाले अग्निवीरों को पेंशन का अधिकार नहीं है तो जनप्रतिनिधियों को यह सहूलियत क्यों? राष्ट्रीय रक्षकों को पेंशन का अधिकार नहीं है तो मैं अपनी पेंशन छोड़ने को तैयार हूं। क्या हम विधायक और सांसद अपनी पेंशन छोड़ यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि अग्निवीरों को पेंशन मिले?

अग्निपथ योजना को लेकर वरुण गांधी ने मंगलवार 21 जून, 2022 को सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि अग्निपथ योजना लागू होने के बाद सरकार के कई विभाग और देश भर के तमाम बड़े उद्योगपतियों की तरफ से अग्निवीरों को नौकरी पर रखने की घोषणा की जा रही है, जो स्वागत योग्य है। उन्होंने इस योजना को लेकर युवाओं से भी बात की है, जो इस पर काफी असंतोष की याद आ रहे हैं। उनका कहना है कि सरकारों का रिटायर फौजियों के प्रति रवैया उदासीन रहा है। आंकड़े भी इसी बात की गवाही दे रहे हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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